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भगत सिंह की फांसी से नाराज होकर गवर्नर हेली पर गोली चलाने वाली 'दुर्गा भाभी' जिन्हें आज भी देश गर्व से याद करता है

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इलाहाबाद। अंग्रेजों द्वारा गुलामी की जंजीरों में जकड़े हिंदुस्तान को आजाद कराने के लिए जिस मशहूर क्रांतिकारी टोली को हर हिंदुस्तानी जानता है उसी टोली का हिस्सा दुर्गा भाभी भी थी। चंद्रशेखर आजाद, भगत सिंह जैसे क्रांतिकारियों के साथ दुर्गा भाभी कदम से कदम मिलाकर आजादी की लड़ाई में अपना सर्वस्व न्योछावर कर रही थीं। दुर्गा भाभी मशहूर क्रांतिकारियों में से एक भगवती चरण बोहरा की पत्नी थी। जिसके कारण ही उन्हें हर कोई दुर्गा भाभी ही कह कर बुलाता था। पिछले हफ्ते ही क्रांतिकारी दुर्गा भाभी की याद में एक स्मारक भवन उनके गांव में बनवाया गया जिसका उद्घाटन राज्यपाल राम नाईक ने किया था। बहुत कम ही लोग होंगे जो दुर्गा भाभी के बारे में जानते होंगे। दुर्गा भाभी इलाहाबाद की रहने वाली थीं। हालांकि मौजूदा समय में इलाहाबाद का वह हिस्सा कौशांबी जिले के रूप में अलग हो गया है।

कौशांबी के शहजादपुर में हुआ जन्म

कौशांबी के शहजादपुर में हुआ जन्म

कौशांबी ( तत्कालीन इलाहाबाद) जिले के सिराथू तहसील के अन्तर्गत शहजादपुर गांव में पं. बांके बिहारी के घर दुर्गा का जन्म 7 अक्टूबर 1902 को हुआ था। पिता बांके बिहारी इलाहाबाद कलक्ट्रेट में नाजिर थे और बाबा महेश प्रसाद भट्ट जालौन जिला में थानेदार थे। जबकि दुर्गा के दादा पं. शिवशंकर भट्ट शहजादपुर के जानेमाने जमींदार थे। दस वर्ष की अल्प आयु में दुर्गा की शादी लाहौर के क्रांतिकारी भगवती चरण बोहरा से हो गई। लेकिन 28 मई 1930 को रावी नदी के तट पर साथियों के साथ बम बनाते समय भगवती चरण शहीद हो गए। जिसके बाद दुर्गा भाभी ने अपना पूरा जीवन क्रांतिकारी के रूप में अंग्रेजों से लड़ने के लिये समर्पित कर दिया था

 दुर्गा भाभी की उपलब्धियां

दुर्गा भाभी की उपलब्धियां

दुर्गा भाभी के बारे में इतिहासकारों ने बहुत कुछ तो नहीं लिखा। लेकिन, कई घटनाक्रम उनके साहसिक जीवन का परिचय कराते हैं। क्रांतिकारियों के लिए पिस्टल बम बारूद का बंदोबस्त दुर्गा भाभी ही करती थी। वह राजस्थान के अलवर से पिस्टल आदि लाकर क्रांतिकारियों तक पहुंचाया करते हैं। सान्डर्स की हत्या के बाद भगत सिंह और राजगुरु को दुर्गा भाभी ने ही अंग्रेजी साहब बनाकर अपने साथ ट्रेन से लखनऊ और फिर कलकत्ता पहुंचा दिया था। उन्होंने पूरी ब्रितानिया सरकार को चकमा दिया था। दुर्गा भाभी के साहस ने इसे विश्व इतिहास की सबसे चालाक फरारी में से एक बना दिया था।

गवर्नर हैली पर चलाई थी गोल

गवर्नर हैली पर चलाई थी गोल

जब सरदार भगत सिंह व बटुकेश्वर दत्त केंद्रीय असेंबली में बम फेंकने जाने लगे तो दुर्गा भाभी और सुशीला मोहन ने अपने हाथ पर चाकू से काटकर उसके रक्त से दोनों लोगों को तिलक लगाया था। दुर्गा भाभी अपनी जमा पूंजी का इस्तेमाल क्रांतिकारियों की मदद व उनके लिए हथियार उपलब्ध कराने में किया करती थीं। 9 अक्टूबर 1930 को दुर्गा भाभी ने भगत सिंह को फांसी दिये जाने पर गुस्से में गवर्नर हैली पर गोली चला दी थी, जिसमें गवर्नर हैली तो बच गया। लेकिन, सैनिक अधिकारी टेलर घायल हो गया। फिर मुंबई के पुलिस कमिश्नर को भी दुर्गा भाभी ने गोली मारी थी जिसके परिणाम स्वरूप अंग्रेज पुलिस इनके पीछे पड़ गई। मुंबई के एक फ्लैट से दुर्गा भाभी व साथी यशपाल को गिरफ्तार कर लिया गया।

साथियों की शहादत से अकेली पड़ीं

साथियों की शहादत से अकेली पड़ीं

इतिहास की किताबों में लिखा गया है कि क्रांतिकारी साथियों के शहीद हो जाने के बाद जब दुर्गा भाभी अकेली पड़ गई। तब वह अपने 5 वर्षीय बेटे सचिंद्र को शिक्षा दिलाने के लिए दिल्ली चली गई। ब्रिटेन सरकार ने उनका पीछा वहां भी नहीं छोड़ा और उन्हें गिरफ्तार कर 3 वर्ष तक नजरबंद रखा गया। बताया जाता है कि 1931 से 1935 तक दुर्गा भाभी की गिरफ्तारी, फरारी, रिहाई का क्रम चलता रहा बाद में लाहौर से दुर्गा भाभी को जिला बदर कर दिया गया और 1935 में दुर्गा भाभी ने गाजियाबाद स्थित प्यारेलाल कन्या विद्यालय में अध्यापिका की नौकरी कर ली। कुछ समय उन्होंने कांग्रेस के लिए भी काम किया, लेकिन कांग्रेस की मानसिकता में वह खुद को ढाल न सकी और कांग्रेस छोड़ दिया। उन्होंने 1940 में लखनऊ में सिर्फ पांच बच्चों के साथ मांटेसरी विद्यालय खोला। आज भी यह विद्यालय लखनऊ में मांटेसरी इंटर कालेज के नाम से जाना जाता है। 14 अक्टूबर 1999 को गाजियाबाद में दुर्गा भाभी ने इस दुनिया को अलविदा कह दिया।

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English summary
Allahabad freedom fighter Durga Bhabhi' who will be remember for her sacrifice for the country proudly
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