मुलायम सिंह यादव की राजनीतिक विरासत को एक एक कर लुटा रहे अखिलेश ?, जानिए कैसे
लखनऊ,1 जुलाई : उत्तर प्रदेश में हाल ही में सम्पन्न हुए विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव को उम्मीद के अनुसार सफलता नहीं मिली थी। इसके बाद यूपी में रामपुर और आजमगढ़ सीट पर हुए लोकसभा उपचुनाव में सपा को करारा झटका उस समय लगा जब बीजेपी ने उनके गढ़ में सेंध लगा दी। इसमें सबसे आश्चर्यजनक ये रहा कि अखिलेश यादव दोनों ही सीटों पर प्रचार प्रसार के लिए नहीं निकले थे। इसको लेकर उनके अपने सहयोगियों ने भी उनपर निशाना साधना शुरू कर दिया। अब अखिलेश की रणनीति को लेकर सवाल तो उठ ही रहे हैं लेकिन साथ ही यह भी कहा जा रहा है कि क्या अखिलेश यादव अपने पिता मुलायम सिंह यादव की विरासत को एक एक कर लुटाते जा रहे हैं।

मुलायम ने यूपी में अपने परिवार के लिए तैयार की कई सीटें
समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव के पिता और यूपी के पूर्व सीएम मुलायम सिंह यादव ने अपनी मेहनत की वजह से यूपी में समाजवादी पार्टी को खड़ा किया था। उनको राजनीति का माहिर खिलाड़ी माना जाता था। मुलायम ने अपने राजनीतिक कुशलता से कन्नौज, इटावा, फिरोजाबाद, संभल, मैनपुरी को सपा का गढ़ बनाया। इसमें मैनुपरी, फिरोजाबाद और कन्नौज में वह या तो उनके परिवार का सदस्य सांसद रहा। इसके साथ ही उन्होंने 2014 के लोकसभा चुनाव में मोदी की लहर को कम करने के लिए खुद आजमगढ़ से मोर्चा संभाला था। उस मोदी लहर भी उन्होंने आजमगढ़ में सपा का परचम लहराया था और इस सीट को भी अपने परिवार के लिहाज से तैयार की थी।

पिछले चुनाव में बदायूं और कन्नौज सपा के हाथ से निकला था
अखिलेश की राजनीतिक कुशलता की कमी देखी जा रही है। विरोधी आरोप लगाते रहते हैं कि अखिलेश अपने पिता मुलायम सिंह यादव की विरासत को संभाल नहीं पा रहे हैं। पिछले आम चुनाव में सपा को अपनी सबसे खास सीट बदायूं और कन्नौज भी हाथ से फिसल गई। बदायूं में जहां अखिलेश के चचेरे भाई धर्मेंद्र यादव सांसद रहे हैं तो पिछले चुनाव में बीजेपी ने इस गढ़ को अपने कब्जे में कर लिया था। यहां स्वामी प्रसाद मौर्य की बेटी संघमित्रा मौर्या बीजेपी की सांसद हैं। वहीं कन्नौज में अखिलेश की पत्नी डिंपल यादव संसाद रह चुकी हैं लेकिन पिछले चुनाव में यह सीट भी बीजेपी के कब्जे में चली गई थी।

लोकसभा उपचुनाव में रामपुर और आजमगढ़ का दुर्ग भी ढ़हा
पिछले आम चुनाव में मिली हार से अखिलेश ने कोई सबक नहीं लिया। विधानसभ चुनाव में निराशाजनक प्रदर्शन के बीच अखिलेश खुद करहल से चुनाव मैदान में थे। करहल में जीतने के बाद अखिलेश ने आजमगढ़ से और उनके कद्दावरत नेता आजम खान ने रामपुर सीट से इस्तीफा दे दिया था। दोनों नेताओं के इस्तीफे से खाली हुई इस सीट पर अखिलेश ने आजमगढ़ से अपने चचेरे भाई धर्मेंद्र यादव और रामपुर में आजम के करीबी कासिम राजा को चुनावी मैदान में उतार दिया। ऐसा माना जा रहा था कि ये दोनों सीटें सपा के पास जाएंगी लेकिन बीजेपी ने अपनी मजबूत रणनीति के दम पर इन दोनों सीटों पर कब्जा जमाकर सपा को बड़ा झटका दे दिया। इन दोनों सीटों पर हुई हार के बाद अब अखिलेश सवालों के घेरे में हैं।

परिवार के अंदरूनी कलह में फिरोजाबाद भी गवां दी थी
अखिलेश यादव और शिवपाल यादव के बीच मची रार की वजह से समाजवादी पार्टी ने पिछले आम चुनाव में फिरोजाबाद की सीट भी गवां दी थी। 2019 के आम चुनाव में फिरोजाबाद में प्रो रामगोपाल के बेटे अक्षय प्रताप यादव चुनाव लड़े थे। पिछले आम चुनाव में फिरोजाबाद सीट से शिवपाल यादव भी चुनाव लड़े थे। शिवपाल यादव के चुनाव लड़ने की वजह से फिरोजाबाद के समीकरण बदल गए और वहां भी समाजवादी पार्टी चुनाव हार गई। समाजवादी पार्टी के इस किले को भी बीजेपी ने शिवपाल के सहारे जीत लिया था।

अखिलेश के सहयोगी ओम प्रकाश राजभर ने उठाए सवाल
विधानसभा चुनाव में मिली हार के बाद ऐसी अटकलें लगाई जा रही थीं कि ओम प्रकाश राजभर अलग हो सकते हैं लेकिन उन्होंने अखिलेश यादव का साथ दिया। इस दौरान राज्यसभा चुनाव और एमएलसी के चुनाव में भी अखिलेश के साथ मतभेद की बाते सामने आई थीं। इन सबके बीच लोकसभा उपुचनाव में राजभर ने अखिलेश यादव के लिए प्रचार किया लेकिन अखिलेश खुद ही नहीं गए। चुनाव में नतीजे आने के बाद इसको लेकर राजभर ने अखिलेश पर निशाना साधा। उन्होंने कहा कि मैने पहले कहा था कि उनको एसी कमरे से बाहर निकलने की जरूरत है। लेकिन वह प्रचार के लिए ही नहीं निकले। वो अपने पिता की बनाई हुई राजनीतिक विरासत को लुटाने का काम कर रहे हैं। इस तरह से राजनीतिक पार्टियां नहीं चलती हैं।