नीरव मोदी के बाद अब 5 हजार करोड़ के बैंक घोटाले में विक्रम कोठारी की तलाश
कानपुर। विक्रम कोठरी को अनियमित तरीकों से दिये गये 5 हजार करोड़ के ऋण के मामले एनसीएलटी पर एक्शन में आ गया है। इस मामले एनसीएलटी यानि नेशनल कम्पनी लॉ टियूब्नल ने बीस फरवरी को कानपुर में कोठारी को एलओयू जारी करने वाले बैंकों के साथ बैठक बुलाई है। कोठारी को फायदा पहुंचाने वाले बैंक प्रबन्धन के बड़े अधिकारी अपनी कुर्सी बचाने के लिये कोठरी को सेटलमेण्ट की मेज पर लाने के रास्ते तलाशने लगे हैं।
150 करोड़ की रकम 5 हजार करोड़ पहुंच गई
'किंग ऑफ पेन' के नाम से मशहूर रहे विक्रम कोठारी की मुश्किलें अगले दो तीन दिनों में और बढ़ सकती है और यदि जांच शुरू हुई तो उन बैंको के कुछ अफसर भी फंस सकते हैं जिन्होने कोठारी को पांच हजार करोड़ के ऋण एनपीए में बदलने दिये। कोठारी को कर्ज की भारी भरकम रकम उसकी सम्पत्तियों का अधिमूल्यन ओवर वैल्यूएशन करके दी गयी थी। कोठरी की डूबती कम्पनी रोटोमैक ग्लोबल की रिस्ट्रक्चरिंग के नाम पर अनाप शनाप कर्ज दिया गया और लेटर ऑफ अण्डरटेकिंग भी जारी किये गये। मामले को संज्ञान में लेने वाले बैंक स्टाफ यूनियनों की एक नहीं सुनी गयी और कर्ज की रकम 150 करोड़ से शुरू हुई थी वो लगभग 5 हजार करोड़ तक पहुंच गई।
बैंक ऑफ इंडिया ने दिया सबसे ज्यादा लोन
कोठारी पर जिन बैंकों पर बड़ी देनदारी है, उनमें से एक है बैंक ऑफ इण्डिया। कानपुर स्थित बैंक ऑफ इण्डिया के जोनल आफिस मे जब हमारी टीम पहुंची तो जोनल मैनेजर ने कोई भी अधिकारिक बयान करने से इनकार कर दिया। उन्होने ऑफ कैमरा स्वीकार किया कि बैंक ऑफ इण्डिया की 1395 करोड़ की रकम कोठरी की कम्पनियां में डूबी पड़ी है और इसे वसूलने के लिये बैंक ने एनसीएलटी को केस रेफर कर दिया है। एनसीएलटी के अलावा अब बैंक यूनीयने भी अब मुखर हो रही हैं। यूनीयनों की फेडरेशन ने 15 मार्च को राष्टव्यापी हड़ताल का ऐलान किया है जिसमें एनपीए एक मुद्दा होगा। यूनीयन लीडर्स का कहना है कि चाहे यूपीए की सरकार रही हो अथवा मौजूदा एनडीए सरकार सभी ने एनपीए घोटालों पर पर्दा डाल रही हैं।
एलओयू से हुआ जमकर नुकसान
यूनियन नेताओं का कहना है कि विक्रम कोठारी घोटाले में लेटर ऑफ अण्डरस्टैडिंग के जरिये बैंकों को जमकर नुकसान पहुंचाया गया और ओवर वैल्यूशन के जरिये कोठारी को फायदा पहुंचाया गया। वे ये भी आरोप लगाने से नहीं चूकते कि सार्वजनिक क्षेत्र की बैंकों को सत्ता के दबाव में बड़े कारपोरेट घरानों को ऐसे एलओयू जारी करने पड़ते हैं और बाद में आरबीआई की गाईड लाईन का दिखावटी अनुपालन करने के लिये इसे बैंक की बैलेन्स शीट में प्रॉफिट से समायोजित किया जाता है। सार्वजनिक क्षेत्र की बैंकों में जमा आम जनता की गाढ़ी कमाई का हजारों करोड़ रूपया घोटालेबाज पूॅजीपति निगल जाऐं और इसे ‘‘एनपीए'' का नाम देकर बैंकों की बैलेंस शीट में समायोजित कर दिया जाय, क्या देश के साथ ये सबसे बड़ा आर्थिक अपराध नहीं है। देश की जनता को एनपीए का सच समझना होगा और इसे आर्थिक घोटाले की शक्ल में ही देखना होगा।