कभी घर में नहीं होते थे खाने को पैसे, आज देश में गांव को दिलाई ब्रांडेड पहचान, पढ़े संघर्ष की ये कहानी
अमरोहा। उत्तर प्रदेश के अमरोहा के छोटे से गांव बीलना की एक गरीब महिला की जिद और उसकी हिम्मत ने नही इबारत लिखी है। फहमीदा बेगम ने अपनी दृढ़ इच्छाशक्ति से न केवल गरीबी को परास्त किया, बल्कि पूरे क्षेत्र के लिए नारी सशक्तीकरण की मिसाल पेश की। फहमीदा की हिम्मत और जस्बे ने आज एक छोटे से गांव को देश में ब्रांड बनाकर खड़ा कर दिया है।
ऐसे हुई शुरुआत
अमरोहा जनपद के नौगावां तहसील के एक छोटे से गावं बीलना की रहने वाली फहमीदा बेगम देश भर में अपने नाम और अपने हुनर से जानी और पहचानी जाती है। करीब दस साल पहले जब फहमीदा बेगम के शौहर का इंतकाल हुआ था तो उनके ऊपर ही परिवार की जिम्मेदारी आ गई। आर्थिक तंगी के चलते कभी घरों में काम किया तो कभी मजदूरी भी की, लेकिन दिल में तो कुछ कर दिखाने की उमंग थी। इसी के चलते फहमीदा बेगम ने उधार कर्ज कर एक कालीन बुनाई की खड्डी लगाई। मेहनत की और बनाये गए माल को बाज़ारो तक पहुंचाया।
एक परिवर्तन नाम से खड़ा किया समूह
फहमीदा के बनाए कालीन, बेडशीड, चादर में इतनी अधिक सुंदरता होती की देखने वाले देखते रह जाते। यही वजह रही की उत्तर प्रदेश सरकार दुवारा लगये जाने वाले राष्ट्रीय मेलो में फहमीदा के बनाये वस्त्रों को जगह मिलने लगी। 2 सालों की मेहनत जब रंग लाने लगी तब फहमीदा बेगम की हिम्मत और बड़ी उन्होंने आसपास की गरीब लड़कियों और महिलाओ को भी साथ मिला कर 'एक परिवर्तन' नाम से एक समूह का गठन किया। उनकी मेहनत रंग लाई और फहमीदा बेगम ने एक छोटे से गावं बीलना को देश भर में बीलना ब्रांड बना दिया।
प्रमाण पत्र भी मिले
देश भर में लगने वाले राष्ट्रिय और अंतर्राष्ट्रीय हथकरघा वस्त्र मेलों में फहमीदा बेगम के बने बीलना ब्रांड कालीन, बैडशीड, चादर और अन्य उत्पाद की मांग है। जिसके लिए उनको कई पुरस्कार और प्रमाण पत्र भी मिल चुके है। आज कई महिलायें फहमीदा बेगम के समूह से जुड़ का अपने परिवार को पालन-पोषण कर रही है और एक इज़्ज़त की ज़िन्दगी बसर कर रही है।
मेहनत से किया मुकाम हासिल
फहमीदा बेगम की बेटी ने कहा कि उनकी मां ने बहुत मेहनत के बाद आज इस मुक़ाम को आज हासिल किया है। जिसके बाद गांव भर में महिलाएं इस काम को कर के अपनी मेहनत से अपने परिवार को पाल रही है। बताया कि सरकार की अभी तक कोई भी मदद उन तक पहुंची है, जिस वजह से उनकी मां उस मुकाम को हासिल नहीं कर पाई है जिनकी उनको तम्मना है।