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मोहर्रम के मातम में अनोखे तरीके से बहाया खून, हर तरफ है चर्चा!

By Rajeevkumar Singh
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हरदोई। मोहर्रम का महीना मुसलमानों के लिए बेहद अहम होता है। यह सिर्फ इसलिए अहम नहीं होता कि इस्लामिक कैलेंडर की शुरुआत मुहर्रम के महीने से होती है बल्कि इस महीने को शहादत का महीना कहा जाता है। इस महीने की 10 तारीख को पैग़म्बर हज़रत मोहम्मद के नवासे इंसानियत की ख़ातिर शहीद हो गए। लिहाज़ा मुस्लिम समुदाय पूरे ही महीने इस महीने को गम के साथ मनाते हैं।

रक्तदान कर मनाया मोहर्रम

रक्तदान कर मनाया मोहर्रम

मुसलमानों का एक फिरका शिया हज़रात मोहर्रम की 7 और विशेषकर 10 तारीख जिस दिन हजरत इमाम हुसैन को शहीद किया गया था, उस दिन मातम करते हैं और पीठों पर छुरियां चलाते हैं जिससे इनका बहुत ज्यादा खून जमीनों पर फैलता है, जिन सड़कों से ये मातम गुज़रता है वो लहू से लाल हो जाती है। गम जाहिर करने का यह सिलसिला यजीद से जंग के दौरान शहीद हुए इमाम हुसैन की शहादत के बाद से चला आ रहा है। सिर्फ भारत मे ही नहीं बल्कि दुनिया के हर उस मुल्क में जहाँ मुस्लिम हैं, इस महीने को बड़े अदब और एहतराम से मनाया जाता है। ये रिवाज़ साल दर साल पुराना है और हमेशा की तरह यह बराबर चला रहा है लेकिन इस बार हरदोई में रक्तदान कर लोगों ने मोहर्रम मनाया।

ब्लड डोनेट करने आए हिंदू-मुस्लिम

ब्लड डोनेट करने आए हिंदू-मुस्लिम

जब हिंदू समुदाय के वकील विकास मिश्रा ने अपने साथ कचहरी में मुस्लिम समुदाय के वकील साहब को समझाया और मातम के दौरान जो खून ज़मीनों में बह जाता है और बेकार हो जाता है यह किसी की रगों में काम आ सकता है, इंसानियत के काम आ सकता है, ऐसा समझाने पर वकील साहब ने इस बात को अपनी कम्युनिटी में आगे बढ़ाया जिसके बाद समर्थन और विरोध दोनों हासिल हुए लेकिन 21वीं सदी के इस युग में लोगों ने खासकर युवाओं ने और महिलाओं ने इस कदम को सराहा। इस बार होने वाले मातम में तलवार की मातम मनाने से परहेज करने की बात कही और वह खून इंसानियत के काम आ सके इसलिए सभी ने रक्तदान किया जो अपने आप में बड़ा मिसाल बना हुआ है और एक छोटे से जिले से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक संदेश दिया गया है। ज़ाहिर तौर पर सदियों से चले आ रहे धर्म और आस्था की इन बेड़ियों से आज़ाद होकर लोगों ने नई रवायत शुरू की है जहां के लोगों ने सिद्ध कर दिया कि लहू बहाने से नहीं बल्कि किसी की रगों में जब दौड़ेगा तब ही इसका असली मकसद सिद्ध होगा।

कौमी एकता की मिसाल

कौमी एकता की मिसाल

आज देश में जहां एक और फिरकापरस्त ताकतें हिंदू और मुसलमानों के बीच में विभिन्न माध्यमों से नफरत के बीज बोने में लगी है, वहीं दूसरी तरफ कुछ ऐसे लोग भी हैं जो कौमी एकता की एक नई मिसाल पेश कर रहे हैं। ऐसी ही एक मिसाल पेश की हरदोई के मुस्लिम लोगों ने। कुछ लोगों ने मोहर्रम के पाक महीने में हजरत इमाम हुसैन की शहादत दिवस के अवसर छुरियों के मातम करने पर बहने वाले खून की एक बूंद भी जाया नहीं होने दी और इसी खून को दान करके ब्लड डोनेशन कैंप लगाया गया जहां सैकड़ों शिया और सुन्नी समुदाय के लोगों ने अपना खून देकर लोगों की जान बचाने में अपना अहम योगदान दिया।

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English summary
A new way to celebrate muharram in Hardoi, Uttar Pradesh.
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