सामने खड़ी 'मौत' को मात देकर मिसाल बन गई उदयपुर की जयश्री, स्टोरी पढ़ आप भी करोगे इन्हें सैल्यूट
उदयपुर। 'जिंदगी कभी ना कभी किसी ना किसी मोड़ पर इम्तिहान जरूर लेती है, मगर पास सिर्फ वो ही शख्स होता है, जो हौसला रखता है। हिम्मत से काम लेता है। अपने जज्बे से हरा देता है जिंदगी के उन तमाम मुश्किल हालात को, जिनमें अक्सर लोग टूट जाया करते हैं। जीने की ख्वाहिश तक छोड़ देते हैं...'
इस बात की उदाहरण हैं राजस्थान के मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय में बतौर फैकल्टी कार्यरत जयश्री पालीवाल। इन्हें वर्ष 2009 में ब्रेस्ट कैंसर का पता चला। तब इनकी बेटी भूमि महज तीन साल की थी। गनीमत यह रही कि ब्रेस्ट कैंसर का शुरुआती स्टेज में ही पता लग गया था।
फिर जयश्री ने जो हिम्मत और जिंदगी के प्रति सकारात्मक नजरिया दिखाया उसकी वजह से कैंसर को न केवल आगे बढ़ने से रोका बल्कि बीमारी को जड़ से ही खत्म कर दिखाया। बता दें कि जयश्री मूलरूप से मुम्बई की रहने वाली हैं। उदयपुर में इनकी शादी हुई है।
कमजोरी को ही बनाया सबसे बड़ी ताकत
बकौल जयश्री, वर्ष 2009 से पहले मैं बहुत भावुक हुआ करती थी। छोटी-छोटी मुश्किलों में भी घबरा जाया करती थी, मगर जब ब्रेस्ट कैंसर का पता चला और उस समय बेटी की उम्र कम थी तो मैंने जीने का तरीका ही बदल दिया। भावुक होने व घबरा जाने की अपनी कमजोरी को ही सबसे बड़ी ताकत बना लिया। तभी तो कैंसर से लड़ने व खुद हार जाने की बजाय उसे ही हराने का फैसला कर पाई।
कैंसर
के
खिलाफ
इनके
सहयोग
से
लड़ी
'जंग'
जयश्री
बताती
हैं
कि
कैंसर
के
खिलाफ
'जंग'
लड़ने
में
मुझे
पिता
दिनेश
बागोरा,
मांं
मधु,
भाई
मयंक,
भरत,
भाभी
खुशबू,
बहन
मिनाक्षी,
कॉलेज
की
प्रोफेसर
सीमा
मलिक,
प्रदीप
त्रिखा
व
दरियाव
सिंह
चूंड़ावत
का
साथ
ना
मिला
होता
तो
शायद
मैं
कमजोर
पड़
जाती
है।
इनके
सहयोग
व
प्रेरणा
से
ही
मैं
कैंसर
को
हरा
पाई
हूं।
कीमोथैरेपी
का
अनुभव
बहुत
बुरा
रहा
जयश्री
के
अनुसार
ब्रेस्ट
कैंसर
का
पता
लगने
पर
माता-पिता
ने
मुम्बई
में
इलाज
करवाया।
कीमोथैरेपी
का
बहुत
बुरा
व
दर्दनाक
अनुभव
कभी
नहीं
भूल
सकूंगी।
कीमोथैरेपी
हुई
तो
उसने
शरीर
को
तोड़
कर
रख
दिया,
मगर
हिम्मत
नहीं
हारी।
नतीजा
सबके
सामने
है।