30 वर्षीय बहू ने लिवर डोनेट कर 61 वर्षीय ससुर को दिया जीवनदान, बिना बताए करवाई खुद की जांचें
30 वर्षीय बहू ने लिवर डोनेट कर 61 वर्षीय ससुर को दिया जीवनदान, बिना बताए करवाई खुद की जांचें
उदयपुर। 61 साल के दिनेश अग्रवाल की जान पर बन आई थी। लिवर प्रत्यारोपण के अलावा कोई दूसरा विकल्प नहीं बचा था। खुद के 6 भाई-बहन और तीन बेटों में से किसी का भी लिवर मैच नहीं हुआ। फिर अचानक 30 वर्षीय बहू गरिमा अग्रवाल सामने आई और जिद करने लगी कि ससुर को लिवर वो ही डोनेट करेगी। इसके पीछे की जो कहानी गरिमा ने पूरे परिवार को बताई उससे हर किसी के दिल में गरिमा के लिए सम्मान अधिक बढ़ गया। दरअसल, गरिमा को जब पता चला कि ससुर का लिवर और ब्लड ग्रुप परिवार में किसी नजदीकी व्यक्ति से नहीं मिल रहा तो वह ससुराल में किसी को बिना बताए मुम्बई गई और खुद की जांचें करवाई। उसका और ससुर का लिवर और ब्लड ग्रुप मैच होने के बाद उसने लिवर डोनेट करने का फैसला लिया।
उदयपुर की रहने वाली है गरिमा
गरिमा अग्रवाल मूलरूप से राजस्थान के उदयपुर की रहने वाली हैं। उदयपुर के हिरणमगरी सेक्टर 11 निवासी विनोद अग्रवाल की बेटी गरिमा की शादी चार साल पहले अहमदाबाद के एयरपोर्ट रोड निवासी दिनेश अग्रवाल के बेटे रौनक अग्रवाल से हुई थी। नवंबर 2019 में गरिमा के ससुर दिनेश अग्रवाल की हालत खराब हो गई थी। उनकी स्थिति को देखते हुए मुंबई, हैदराबाद, चेन्नई, बैंगलोर, दिल्ली और अहमदाबाद के केंद्रों में एक डॉक्टर से परामर्श और लिवर के लिए पंजीकरण कराया गया था, लेकिन लॉकडाउन के कारण मामला ठप हो गया था। फिर उन्हें जून 2020 में एसजी राजमार्ग पर एक निजी अस्पताल में भर्ती कराया गया था। जहां उनकी बहू गरिमा ने 60 प्रतिशत लिवर दान किया।
मैं बहू के भविष्य का कर्जदार हूं-दिनेश अग्रवाल
जब दिनेश अग्रवाल को पता चला कि उनकी बहू उन्हें लिवर डोनेट करने को तैयार हुई तो उनकी आंखें भर आई। दिनेश अग्रवाल ने कहा कि जो काम मेरे पूरे परिवार में से कोई नहीं कर सका वो बहू ने कर दिखाया। उसने अपने नाम के अनुरूप काम किया है। मैं बहू के भविष्य के लिए हमेशा कर्जदार रहूंगा।
मुझे बेटी की तरह रखते हैं ससुर-गरिमा अग्रवाल
मीडिया से बातचीत में गरिमा अग्रवाल ने कहा कि मैं खुद को खुशनसीब समझती हूं कि मैं पिता तुल्य ससुर की जान बचाने में योगदान दे सकी हूं। शादी के बाद मुझे कभी नहीं लगा कि मैं ससुराल में हूं। खुद ससुर मुझे अपनी बेटी की तरह रखते हैं। ससुर कभी नहीं चाहते थे कि मैं अपना लिवर उनको डोनेट करूं। डॉ दिनेश जी ने भी बहू का लिवर लेने से मना कर दिया था, मगर मैंने उन्हें अपना पिता मानकर लिवर दिया है। मेरे माता-पिता और भाई दो बार उदयपुर राजस्थान से आए और उनको खूब समझाने के बाद लीवर लेने के लिए तैयार हुए।
मुझे बेटी पर गर्व है-विनोद अग्रवाल
मुझे बेटी गरिमा के इस फैसले पर गर्व है। अगले जन्म में भी परमात्मा मुझे तेरा ही पिता होने का गौरव प्रदान करें। बेटी गरिमा को जब पता चला कि परिवार में किसी का लिवर ससुर के लिवर से मैच नहीं हुआ तो उसने सिर्फ मुझे बताया और अकेले ही मुम्बई जाकर खुद की जांच करवाई। फिर लिवर देने का फैसला लिया। उसके मुम्बई के जाने की बात ससुराल में किसी को पता नहीं थी।
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