लोकसभा चुनाव 2019: मेनका के सामने महिला उम्मीदवार की हार का मिथक तोड़ना चुनौती
Sultanpur news, सुल्तानपुर। लोकसभा चुनाव के इतिहास में उत्तर प्रदेश के सुल्तानपुर जिले के अंदर आजतक किसी महिला प्रत्याशी के सिर जीत का सेहरा नहीं बंधा। ऐसे में बीजेपी उम्मीदवार और केंद्रीय मंत्री मेनका गांधी के सामने इस मिथक को तोड़ना मुश्किल नहीं तो आसान भी नहीं है। फिलवक्त के राजनैतिक समीकरण में यहां मुकाबला त्रिकोणीय है, कांग्रेस और गठबंधन उम्मीदवार उन्हें सीधी टक्कर दे रहे हैं। हालांकि, हर बार के चुनाव में जिले मे प्रत्याशियों की हार-जीत का गुणा-गणित "ब्राहमण, दलित और मुस्लिम" मतदाताओं ने तय किया है। जिसमे ब्राहमण मतदाता अधिक संख्या में तो दलित भी बड़ी संख्या में बीजेपी के पाले मे जाता दिख रहा है। जबकि मुस्लिम वोटर कांग्रेस और गठबंधन मे बराबर से बंट रहा।
क्या है इतिहास
मालूम हो कि 1998 में जिले के राजनीति इतिहास में पहली बार महिला उम्मीदवार के रूप में इलाहाबाद की निर्दलीय मेयर रही डॉ. रीता बहुगुणा जोशी सपा प्रत्याशी बनाई गई। पूर्व प्रधान मंत्री स्व. अटल बिहारी बाजपेयी की शहर के खुर्शीद क्लब में भाजपा प्रत्याशी देवेन्द्र बहादुर सिंह के पक्ष में जनसभा कर हवा का रुख मोड़ दिया था और रीता बहुगुणा को करारी शिकस्त मिली थी। इसके बाद 1999 के चुनाव में गांधी परिवार की करीबी रही दीपा कौल कांग्रेस प्रत्याशी बनाई गई। इस चुनाव में भाजपा प्रत्याशी सत्यदेव सिंह का पर्चा खारिज हो गया। उनका मुकाबला बीएसपी प्रत्याशी जयभद्र सिंह और एसपी प्रत्याशी एवं अम्बेडकरनगर निवासी रामलखन वर्मा से हुआ। बाहरी बनाम स्थानीय का नारा इस चुनाव में जोर से चला। नतीजे में दीपा कौल चौथे पायदान पर पहुंच गईं थी। बीएसपी से जयभद्र सिंह चुनाव जीते थे। फिर, 2004 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने डॉ.वीणा पांडेय को प्रत्याशी बनाया। बीएसपी ने मो. ताहिर खां को प्रत्याशी बनाया था और सपा ने विधान परिषद सदस्य रहे शैलेन्द्र प्रताप सिंह को प्रत्याशी बनाया था। कांग्रेस से गांधी परिवार के करीबी रहे पूर्व केन्द्रीय मंत्री कैप्टन सतीश शर्मा को प्रत्याशी बनाया था। सतीश शर्मा को बाहरी होने का दंश झेलना पड़ा और अंत में त्रिकोणीय मुकाबले मे बीएसपी के ताहिर खां विजयी हुए। वीणा पांडेय चौथे स्थान पर पहुंच गई थी।
2014 लोकसभा चुनाव में क्या हुआ
ऐसा ही कुछ 2014 के लोकसभा चुनाव में हुआ। कांग्रेस ने वर्तमान में कांग्रेस प्रत्याशी सांसद डॉ. संजय सिंह की पूर्व मंत्री डॉ.अमिता सिंह को पार्टी प्रत्याशी बनाया। भाजपा ने गांधी परिवार के वरुण गांधी पद दांव लगाया तो सपा ने शकील अहमद और बसपा ने पूर्व विधायक पवन पांडेय को प्रत्याशी बनाया था। त्रिकोणीय मुकाबले में वरुण गांधी को बड़ी जीत मिली। कांग्रेस प्रत्याशी डा.अमिता सिंह चौथे पायदान पर चली गईं। अब 17वीं लोकसभा में बीजेपी ने मेनका गांधी को मैदान मारने के लिए भेजा है। इतिहास को देखते हुए इनका सफर चुनौती भरा है।
सुल्तानपुर की पांच विधानसभा सीटों में चार पर बीजेपी का कब्जा
गौरतलब हो कि गोमती किनारे बसे सुल्तानपुर जिले में पांच विधानसभा सीटें आती हैं। इनमें इसौली, सुल्तानपुर, सदर, कादीपुर (सुरक्षित) और लम्भुआ सीटें शामिल हैं। मौजूदा समय में इसौली को छोड़ चार सीटों पर बीजेपी का कब्जा है। इसौली सपा के कब्जे में हैं, लेकिन यहां के विधायक अबरार अहमद पार्टी के निर्णय से नाराज होकर गठबंधन प्रत्याशी का खुला विरोध कर रहे, जिसमे वो कामयाब भी हुए हैं। वहीं, बीएसपी से निष्कासित पूर्व मंत्री विनोद सिंह और सपा से निष्कासित जिला पंचायत अध्यक्ष पति शिवकुमार सिंह ने मेनका गांधी को समर्थन देकर गठबंधन की नींद उड़ा रखी है। वहीं, बीएसपी से टिकट नही मिलने से नाराज पूर्व प्रमुख राजमणि वर्मा ने कांग्रेस ज्वॉइन कर पार्टी की मुश्किल बढ़ा दी है।
क्या है वोट प्रतिशत
सुल्तानपुर लोकसभा सीट पर 2011 के जनगणना के मुताबिक कुल जनसंख्या 23,52,034 है। इसमें 93.75 फीसदी ग्रामीण औैर 6.25 शहरी आबादी है। अनुसूचित जाति की आबादी इस सीट पर 21.29 फीसदी हैं और अनुसूचित जनजाति की आबादी .02 फीसदी है। इसके अलावा मुस्लिम, ठाकुर और ब्राह्मण मतदाताओं के अलावा ओबीसी की बड़ी आबादी इस क्षेत्र में हार-जीत तय करने में अहम भूमिका रही है। यह जिला फैजाबाद मंडल का हिस्सा है। सुल्तानपुर लोकसभा सीट की अपनी एक खासियत है। बीजेपी के विश्वनाथ शास्त्री को छोड़ दे तो दूसरा कोई ऐसा चेहरा नहीं है जो इस सीट पर दूसरी बार सांसद बनने में कामयाब रहा हो। यही वजह रही कि इस सीट पर किसी एक नेता का कभी दबदबा नहीं रहा है। आजादी के बाद कांग्रेस यहां 8 बार जीती, लेकिन हर बार चेहरे अलग रहे। इसी तरह से बसपा दो बार जीती और दोनों बार अलग-अलग थे, जबकि बीजेपी चार बार जीती जिसमें तीन-चार चेहरे शामिल रहे।
2014 में 56.64 फीसदी मतदान हुआ
2014 के लोकसभा चुनाव में सुल्तानपुर सीट पर 56.64 फीसदी मतदान हुए थे। इस सीट पर बीजेपी उम्मीदवार वरुण गांधी ने बसपा उम्मीदवार को 1 लाख 78 हजार 902 वोटों से मात दी थी। इस तरह 1998 के बाद बीजेपी इस सीट पर कमल खिलाने में कामयाब हुई थी। वहीं, कांग्रेस उम्मीदवार जमानत भी नहीं बचा सकी थी। बीजेपी के वरुण गांधी को 4,10,348 वोट मिले। बसपा के पवन पांडेय को 2,31,446 वोट मिले। सपा के शकील अहमद को 2,28,144 वोट मिले। कांग्रेस की अमित सिंह को 41,983 वोट मिले। बात अगर वरुण गांधी की करें तो 2014 में जीतने के बाद पांच साल चले सदन के 321 दिन में वो 239 दिन उपस्थित रहे। इस दौरान उन्होंने 416 सवाल उठाए और 16 बहसों में हिस्सा लिया। दिलचस्प बात ये है कि वरुण गांधी 9 बार निजी विधेयक लेकर आए। इतना ही नहीं उन्होंने पांच साल में मिले 25 करोड़ सांसद निधि में से 21.36 करोड़ रुपये विकास कार्यों पर खर्च किया।
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