कभी मैरी कॉम के चलते नहीं मिला था वर्ल्ड बॉक्सिंग चैम्पियनशिप में खेलने का मौका, अब गोल्ड जीत रचा इतिहास
नई दिल्ली। भारतीय महिला बॉक्सर निखत जरीन ने गुरुवार को अपना नाम इतिहास के पन्नों में शुमार करते हुए उस बेहतरीन लिस्ट में जोड़ दिया, जिसमें पहुंचना दुनिया की हर बॉक्सर का एक सपना होता है। इस्तानबुल में खेले जा रहे वर्ल्ड बॉक्सिंग चैम्पियनशिप के 52 किग्रा भारवर्ग फाइनल मैच में निखत जरीन ने थाईलैंड की जिपॉन्ग जुआतमस को 5-0 से हराकर वर्ल्ड चैम्पियनशिप का खिताब अपने नाम कर लिया है। निखत जरीन यह कारनामा करने वाली 5वीं भारतीय महिला बॉक्सर बनी है, जबकि आखिरी बार इस टूर्नामेंट में मैरी कॉम ने 4 साल पहले जीत हासिल की थी।
तेलंगाना की इस बॉक्सर ने वर्ल्ड चैम्पियनशिप के इस टूर्नामेंट में लगातार शानदार प्रदर्शन करते हुए यह खिताब अपने नाम किया। जरीन से पहले यह कारनामा मैरी कॉम ने 6 बार (2002, 2005, 2006, 2008, 2010 and 2018), सरिता देवी (2006), जेनी आरएल (2006), और लेखा केसी (2006) ने एक-एक बार किया था। अब निखत जरीन भी इन दिग्गज भारतीय बॉक्सर्स की लिस्ट में शुमार हो गई हैं।
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जरीन ने 4 साल बाद जीता भारत के लिये गोल्ड
जरीन के गोल्ड के अलावा भारत के लिये मनीषा मौन (57kg) और पहली बार इस टूर्नामेंट में भाग ले रही परवीन हुड्डा (63kg) ने भी कांस्य पदक जीतने का कारनामा किया। भारत की ओर से 12 सदस्यीय टीम इस टूर्नामेंट का हिस्सा लेने पहुंची थी, जहां पर उसके खाते में भले ही एक पदक कम आया हो लेकिन 4 साल के बाद वर्ल्ड बॉक्सिंग चैम्पियन का ताज भारत के हिस्से में जरूर आया है। मैरी कॉम ने आखिरी बार यह खिताब साल 2018 में 48 किग्रा भारवर्ग में जीता था।
मैरी कॉम के चलते 2019 में नहीं मिला था ट्रॉयल्स का मौका
जरीन खान शायद इस खिताब को 2019 में ही घर ले आती लेकिन दुर्भाग्यवश उस साल बॉक्सिंग की दिग्गज खिलाड़ी और डिफेंडिंग चैम्पियन मैरी कॉम ने फ्लाईवेट कैटेगरी में उतरने का फैसला किया। जिसके चलते निखत जरीन को बॉक्सिंग फेडरेशन ऑफ इंडिया की तरफ से ट्रॉयल्स का मौका देने से इंकार कर दिया। बीएफआई ने मैरी कॉम के प्रदर्शन में निरंतरता देखते हुए उन्हें ही भेजने का फैसला किया और उन्होंने वर्ल्ड बॉक्सिंग चैम्पियनशिप में अपना 8वां पदक जीतते हुए भारत के लिये कांस्य पदक अपने नाम किया।
कभी पहनावे तो कभी रख रखाव पर उठे सवाल
जरीन के लिये यह पहली बार नहीं था जब उन्हें अपने भाग्य से लड़ना पड़ा था। बचपन से ही उनका यहां तक पहुंचने का सफर मुश्किलों से भरा हुआ था और इसमें उनके माता-पिता ने उनका भरपूर साथ दिया। जरीन बॉक्सर बनना चाहती थी जिसके चलते उन्हें अपने पहनावे और बालों के रख-रखाव में काफी बदलाव करना पड़ा। जहां समाज और उनके रिश्तेदारों ने इसको लेकर काफी जली कटी बातें कहीं तो वहीं पर उनके माता-पिता ने अपनी बेटी के सपने को साकार करने को ठानी और हमेशा उनका साथ दिया।
माता-पिता के चलते बनी चैम्पियन
अपनी जीत को लेकर जब जरीन ने न्यूज एजेंसी एएनआई से बात की तो बताया कि यह सबकुछ सिर्फ और सिर्फ मेरे माता-पिता की वजह से संभव हो सका जिन्होंने हर मोड़ पर मेरा साथ दिया और मुश्किल समय में मेरे साथ खड़े रहे। मेरी चोट ने मुझे पहले से ज्यादा मजबूत बनाया। मैंने लड़ने का फैसला किया और पिछले 2 साल में अपनी कमजोरियों पर काम करते हुए अपने गोल को न छोड़ने का फैसला किया। मैं अपना सर्वश्रेष्ठ देने के लिये प्रतिबद्ध थी।
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फरवरी में भी जरीन ने रचा था इतिहास
गौरतलब है कि यह उनके दृढ़ संकल्प और कड़ी मेहनत का ही नतीजा है कि उन्होंने अपने करियर में दूसरी बार थाईलैंड की जुआतमस को हराकर यह खिताब जीता है। उन्होंने इससे पहले 2019 में खेले गये थाइलैंड बॉक्सिंग ओपन में भी इस बॉक्सर के खिलाफ जीत हासिल की थी। जरीन के लिये यह साल उपलब्धियों से भरपूर रहा है। फरवरी में उन्होंने स्ट्रैंडजा मेमोरियल में दो गोल्ड मेडेल जीते और ऐसा करने वाली पहली भारतीय महिला बॉक्सर बनीं। वर्ल्ड बॉक्सिंग चैम्पियनशिप में भारत का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन साल 2006 में आया था जब उसने 4 गोल्ड, एक सिल्वर और 3 ब्रॉन्ज समेत 8 पदक जीते थे। भारत अब तक इस टूर्नामेंट में कुल 39 पदक (10 गोल्ड, 8 सिल्वर और 21 ब्रॉन्ज) जीत चुका है।