'लोग कहते थे छोटे कपड़े मत पहना करो', बेटी आज वर्ल्ड चैम्पियन है, पापा बिरयानी बनवा रहे हैं
नई दिल्ली, 20 मई: भारत की मुक्केबाज निखत जरीन ने महिला विश्व मुक्केबाजी चैंपियनशिप के 52 किग्रा फाइनल में गोल्ड मेडल जीतकर देश का नाम रोशन किया। वे मैरी कॉम द्वारा ये चैम्पयिनशिप जीतने के चार साल बाद पहली वर्ल्ड चैम्पियन बनीं।
उनके पिता पूर्व फुटबॉलर और क्रिकेटर मोहम्मद जमील हैं। वे चाहते थे कि उनकी चार बेटियों में से एक कोई खेल चुने। निजामाबाद के मूल निवासी ने अपनी तीसरी बेटी निखत जरीन के लिए एथलेटिक्स चुना लेकिन चाचा की सलाह पर वह बॉक्सिंग रिंग में आ गईं। अपने चाचा समसमुद्दीन के बेटों एतेशामुद्दीन और इतिशामुद्दनी के मुक्केबाज होने के कारण निखत को घर में ही माहौल भी मिलता गया।
14 साल की उम्र में सुनहरे भविष्य के संकेत
14 साल की उम्र में वह भविष्य की स्टार बनती दिखाई देने लगीं थीं क्योंकि तब उन्होंने वर्ल्ड यूथ बॉक्सिंग चैंपियन खिताब जीता।
लेकिन 2017 में कंधे की चोट की वजह वह एक पूरा साल चूक गईं। पांच साल बाद दर्द और निराशा को दूर की यादें बनाते हुए निखत ने थाईलैंड के जितपोंग जुतामास पर जीत के साथ फ्लाईवेट (52 किग्रा) विश्व चैंपियन का ताज हासिल कर लिया।
निखत ने अपना रास्ता खुद बनाया है- जमील
भावुक पिता जमील ने द इंडियन एक्सप्रेस को बताया, "विश्व चैंपियनशिप में गोल्ड जीतना एक ऐसी चीज है जो मुस्लिम लड़कियों के साथ-साथ देश की प्रत्येक लड़की को जीवन में बड़ा हासिल की प्रेरणा मिलेगी। जहां लड़का हो या लड़की, अपना रास्ता खुद बनाना पड़ता है और निखत ने अपना रास्ता खुद बनाया है।"
इस खेल में लड़कियों को शॉर्ट्स और ट्रेनिंग शर्ट पहनने की आवश्यकता होती है, जमील परिवार के लिए यह आसान नहीं था। बच्चों के खेल और पढ़ाई को पूरा करने के लिए पिता ने निजामाबाद में शिफ्ट होने का फैसला करने से पहले 15 साल तक सऊदी अरब में एक सेल्स सहायक के रूप में काम किया।
'लड़की को ऐसा खेल नहीं खेलना चाहिए'
निखत की दो बड़ी बहनें डॉक्टर हैं। छोटी बहन बैडमिंटन खेलती है। पिता के बताया कि कभी-कभी, रिश्तेदार या दोस्त हमें बताते हैं कि एक लड़की को ऐसा खेल नहीं खेलना चाहिए जिसमें उसे शॉर्ट्स पहनना पड़े। लेकिन हम जानते थे कि निखत जो चाहेगी, हम उसके सपने का समर्थन करेंगे।
2017 में कंधे की चोट के बाद निखत ने साल 2018 में बेलग्रेड अंतरराष्ट्रीय में खिताब जीतने के अलावा सीनियर नेशनल में कांस्य पदक के साथ रिंग में वापसी की।
सीनियर लेवल पर जाना आसान राह नहीं थी
उन्हें 2018 सीडब्ल्यूजी और एशियाई खेलों के लिए भारतीय टीम में ब्रेक नहीं मिला लेकिन उनके पिता जमील ने उन्हें प्रेरित किया।
उन्होंने कहा, "जब उसने वर्ल्ड यूथ खिताब जीता, तो वह 15 साल की थी और उसे यह समझने में कुछ समय लगा कि यहां से सीनियर लेवल पर जाना आसान नहीं होगा।"
मुस्लिम लड़कियों ने निखत को देख ट्रेनिंग शुरू कर दी
पिता ने बताया कि वे जब भी निखत अपने करियर में बड़े मंच पर मौका पाने से चूक गईं तो उनका दिमाग वो सब सोचता रहता था। तब निजामाबाद के कई बॉक्सरों की कहानियां उनको सुनाई गई, हर चीज का आखिर एक समय होता है। निखत जूनियर स्तर पर टाइटल पर टाइटल जीत चुकी थीं। निखत को देखकर दो और मुस्लिम लड़कियों ने नेशनल बॉक्सिंग कैम्प में हिस्सा लिया और तब पिता ने बेटी को बताया कैसे वह दूसरों के लिए एक प्रेरणा बन रही है।
नई वेट कैटेगरी में खुद को शिफ्ट करना अगली चुनौती
पिछले तीन वर्षों के दौरान, जरीन ने पूर्व लाइट-फ्लाईवेट (51 किग्रा) विश्व चैंपियन रूस की एकातेरिना पाल्टसेवा और दो बार की पूर्व लाइट फ्लाई-वेट विश्व चैंपियन कजाकिस्तान की नाजिम काजैबे को हराया था। उन्होंने विश्व चैंपियनशिप से पहले स्ट्रैंड्जा मेमोरियल में टोक्यो ओलंपिक की रजत पदक विजेता तुर्की की बुसेनाज काकिरोग्लू को हराया।
अब निखत के अगली चुनौती पेरिस ओलंपिक 2022 के लिए नई वेट कैटेगरी में खुद को शिफ्ट करना है। वे 54kg के लिए खुद को तैयार करेंगी। इसमें नई चुनौतियां होंगी। ओलंपिक से पहले कॉमनवेल्थ गेम्स और एशियन गेम्स हैं।
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पसंदीदा बिरयानी बनाई जा रही है
भारतीय महिला टीम के राष्ट्रीय कोच भास्कर चंद्र भट्ट ने कहा, 'निखत के पास गति है, जिसे केवल उस वजन के हिसाब से ढलने की जरूरत है।'
जमील परिवार निखत की वापसी की तैयारी कर रहा है। पिता ने कहा, "पिछले 2-3 वर्षों से, उसने अपनी पसंदीदा बिरयानी और निहारी को मिस किया है। एक बार जब वह शिविर से फ्री हो जाती है, तो 1-2 दिन के लिए इनका पूरा जायका ले सकती है। इसके बाद वह फिर से बिजी हो जाएगी।"
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