नई दिल्ली। फिलहाल रियो ओलम्पिक में भारत के लिए पदक किसी से है तो वो है दीपा करमाकर। आर्टिस्टिक जिमनास्ट में पहली बार किसी भारतीय महिला ने फाइनल में पहुंच कर झण्डा गाड़ा है। यूं तो जिमनास्ट का फाइनल 14 अगस्त को है लेकिन जब वो रियो से वापस आएंगी तो उन्हें एक और परीक्षा से गुजरना पड़ेगा।
अंग्रेजी अखबार इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक दीपा के पिता दुलाल करमाकर ने बताया कि रियो से लौटकर उन्हें राजनीतिक विज्ञान में परास्नातक की परीक्षा देनी है। इस परीक्षा के लिए दीपा ने अपने पापा से कह कर गईं है कि उनके लिए नोट्स इकट्ठा कर के रखें। ओलम्पिक के बाद दीपा अपनी पढ़ाई पर ध्यान देंगी। पिता ने बताया कि बहुत कुछ बदल जाने के बाद भी दीपा का फोकस नहीं बदला।
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इससे पहले उनके पिता ने बताया कि मंगलवार ( 9 जुलाई ) को दीपा का जन्मदिन था। बीते 4 साल से वो अपने घर जन्मदिन मनाने नहीं आ पाई है और बीते 17 सालों से उसकी जिंदगी सिर्फ जिमनास्ट के आस पास ही घूम रही है। दुलाल बताते हैं कि 'दीपा को यह भी याद नहीं था इस बार उसका 23वां जन्मदिन था। बीते 17 सालों की मेहनत ने ही उसे रियो के फाइनल तक पहुंचाया है।'
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जब दीपा के सफलता की खबर मिली तो उनके घर आगंतुकों का रेला लग गया। दीपा के कमरे में रखी ट्राफियां, मेडल्स, तस्वीरें और एक टेडी बियर उनकी शानदार यात्रा को समझने में मदद कर रहा था। उनके पिता बताते हैं कि यह सब उनके लिए आसान नहीं था। शुरूआत में हमारे पास को साजो सामान नहीं थे। दीपा ने फेंके हुए सेकेंड हैंड साजो सामान से प्रैक्टिस की। पहले वॉल्ट की प्रैक्टिस उसने एक पुराने स्कूटर के पार्ट्स की मदद से पूरी।
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स्पोर्ट्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया ने दीपा को यह कहते हुए अस्वीकृत कर दिया कि वो कभी जिमनास्ट नहीं बन सकती क्योंकि वो फ्लैट फीट के साथ पैदा हुई हैं। दीपा हर पदक की जीत के साथ खुद को मजबूत बनाती गई।' बता दें कि फ्लैट फीट वह अवस्था होती है जब पैर की चाप सामान्य से कम होती है।
दीपा की जिंदगी में मोड़ तब आया जब उन्होंने 2002 नॉर्थ इस्टर्न गेम्स कंपटीशन में बैलेंसिंग बीम में स्वर्ण पदक हासिल किया था। दीपा की मां गौरी करमाकर बताती हैं कि 'वो उससे पहले जिमनास्ट पसंद नहीं करती थी। प्रैक्टिस कठिन थी और वो बच्ची थी फिर भी वो 2002 के बाद से वो जीत की आदी हो गई।'
दीपा के पिता दुलाल खुद वेटलिफ्टिंग कोच हैं और जब उन्होंने उनके टैलेंट देखा तो दीपा को एक जिमनास्ट बनने के लिए प्रेरित किया। इसके लिए उन्होंने दीपा का दाखिला अगरतला के सबसे पुराने जिम्नैज़ीअम, विवेकानंद ब्यामागार में कराया।