अतीत के पन्ने: पीएम बनने के लिए केसरी ने गिरायी थी गुजराल सरकार?
नई दिल्ली। कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष सीताराम केसरी बिहार के रहने वाले थे। पटना से सटे दानापुर में उनका पुस्तैनी घर है। दिवंगत सीताराम केसरी कांग्रेस के दिग्गज नेता थे। वे एक दशक से अधिक समय तक पार्टी के कोषाध्यक्ष रहे। वे इंदिरा गांधी, राजीव गांधी और नरसिम्हा राव के मंत्रिमंडल में केन्द्रीय मंत्री भी रहे थे। कांग्रेस के ही दिग्गज नेता में शुमार प्रणव मुखर्जी की बातों पर अगर यकीन करें तो सीताराम केसरी ने 1997 में प्रधानमंत्री बनने की महत्वाकांक्षा में इंद्र कुमार गुजराल की सरकार गिरा दी थी। इस जोड़तोड़ की राजनीति में न सीताराम केसरी का भला हुआ न संयुक्त मोर्चा सरकार का। सीताराम केसरी कांग्रेस के शीर्ष परसीताराम केसरी सितम्बर 1996 में कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष बने थे। राजीव गांधी की हत्या के बाद सोनिया गांधी सक्रिय राजनीति से दूर थीं। गांधी परिवार के बिना कांग्रेस चल रही थी। सीताराम केसरी पार्टी का अध्यक्ष तो बन गये थे लेकिन गांधी परिवार के ईर्द-गिर्द रहने वाले अभिजात्य कांग्रेसी उनको पसंद नहीं करते थे। पिछड़े वर्ग से आने वाले सीताराम केसरी ने कांग्रेस की सोशल इंजीनियरिंग में बदलाव की शुरुआत की। कांग्रेस को पिछड़वाद से जोड़ा।
क्या केसरी पीएम बनना चाहते थे ?
इसी दौर में लालू प्रसाद कांग्रेस के करीब आये। केसरी ने गुजराल सरकार से समर्थन वापस लिया था एच डी देवेगौड़ा के प्रधानमंत्री पद से हटने के बाद संयुक्त मोर्चा की सरकार का नेतृत्व इंद्र कुमार गुजराल ने संभाला था। इस सरकार को कांग्रेस बाहर से समर्थन दे रही थी। कई दलों के मेल से चलने वाली यह सरकार अंदर से बहुत कमजोर थी। इसी बीच नवम्बर 1997 में जैन कमिशन की अंतरिम रिपोर्ट मीडिया में लीक हो गयी। इसके बाद तो बवाल मच गया। जैन कमिशन की रिपोर्ट में कहा गया था कि द्रमुक यानी द्रविड़ मुनेत्र कड़गम का संबंध श्रीलंका के लिट्टे से था। द्रमुक लिट्टे को बढ़ावा देने में शामिल रहा है। लिट्टे ने ही राजीव गांधी की हत्या की थी। सीताराम केसरी ने कांग्रेस अध्यक्ष की हैसियत से तत्कालीन प्रधानमंत्री इंद्र कुमार गुजराल को धमकी दी कि अगर उन्होंने मंत्रिमंडल से द्रमुक के मंत्रियों को बाहर नहीं किया तो वे सरकार से समर्थन वापस ले लेंगे। संयुक्त मोर्चा की सरकार में हड़कंप मच गया।
केसरी उस समय प्रधानमंत्री बनने की ख्वाब बुनने लगे थे
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व राष्ट्पति प्रणव मुखर्जी के मुताबिक सीताराम केसरी उस समय प्रधानमंत्री बनने की ख्वाब बुनने लगे थे। अस्थिर और अल्पमत सरकारों के दौर में उन्हें लगता था कि शायद वे अपनी यह राजनीतिक महत्वाकांक्षा पूरी कर सकते हैं। जब कांग्रेस अध्यक्ष सीताराम केसरी ने गुजराल सरकार से समर्थन वापस लेने की धमकी दी थी उस समय संसद का शीतकालीन सत्र चल रहा था। बीच बचाव के लिए कई बैठकें हुईं। मसला हल ना होता देख गुजराल ने एक दिन कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं सीताराम केसरी, प्रणव मुखर्जी, अर्जुन सिंह आदि को रात्रिभोज पर बुलाया। गुजराल ने इनसे कहा कि द्रमुक पर कोई सख्त फैसला लेने से देश में गलत संदेश जाएगा। कांग्रेस का अल्टीमेटम उचित नहीं है।केसरी की ही चलीमसला गंभीर हो चला था। संगीन राजनीतिक हालात पर चर्चा करने के लिए कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक हुई। कार्य समिति के अधिकतर सदस्य गुजराल सरकार से समर्थन वापस लिये जाने के खिलाफ थे। लेकिन उस समय सीताराम केसरी की कांग्रेस में मजबूत स्थिति में थे। केसरी ने अपने प्रभाव का इस्तेमाल करते हुए कार्यसमिति की बैठक में समर्थन वापसी का प्रस्ताव पारित करा लिया। इसके बाद कांग्रेस ने संयुक्त मोर्चा की सरकार से समर्थन वापस ले लिया। 28 नवम्बर 1997 को इंद्र कुमार गुजराल की सरकार गिर गयी।
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क्यों गिरायी गयी गुजराल सरकार ?
प्रणव मुखर्जी की मानें तो सीताराम केसरी ने कांग्रेस की वैकल्पिक सरकार बनाने की चाहत में गुजराल सरकार गिरायी थी। केसरी खुद प्रधानमंत्री बनना चाहते थे। उन्हें लगता था कि संयुक्त मोर्चा मध्यावधि चुनाव में नहीं जाना चाहेगा। अन्य दलों के अधिकतर सांसद भी मिड टर्म इलेक्शन का विरोध करेंगे। संयुक्त मोर्चा के कुछ घटक दलों के सहयोग से सरकार संभव हो सकती है। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। सत्ता के लिए आपस में टकराने वाले संयुक्त मोर्चा के नेताओं ने केसरी की उम्मीदों पर पानी फेर दिया। कोई दल या गठबंधन सरकार बनान के लिए बहुमत का आंकड़ा नहीं जुटा पाया। आखिरकार लोकसभा भंग कर दी गयी और मध्यावधि चुनाव का फैसला लेना पड़ा। 1998 के शुरू में मध्यावधि चुनाव हुआ। कांग्रेस की फिर हार हुई। संयुक्त मोर्चा के दलों को भी जोरदार झटका लगा। अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में फिर सरकार बनी। कांग्रेस की इस हार से सोनिया गांधी के वफादारों में बहुत गुस्सा था। हार का ठीकरा केसरी के माथे पर फोड़ा गया। इसके बाद 14 मार्च 1998 को बहुत अपमानजनक तरीके से सीतराम केसरी को अध्यक्ष पद से हटाया गया। केसरी की जगह सोनिया गांधी ने कांग्रेस की कमान संभाली। कांग्रेस एक बार फिर गांधी परिवार की छत्रछाया में आ गयी। अब तो यह मिथक बन गया है कि गांधी परिवार के बिना कांग्रेस की कल्पना नहीं की जा सकती।
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