शांता कुमार भी क्या आडवानी की तरह बेआबरू होकर भाजपा से रुखसत होंगे!
Shimla news, शिमला। राजनीति में वक्त बदलते देर नहीं लगती। कुछ ऐसा ही हिमाचल भाजपा के दिग्गज नेता कांगड़ा से सांसद शांता कुमार का है। दो दिन पहले तक शांता कुमार अपने आपको जवान होने की दुहाई देते हुये फिर से चुनाव मैदान में उतरने की हुंकार भर रहे थे। लेकिन जिस तरीके से लाल कृष्ण आडवानी का टिकट के लिये पत्ता कटा। उससे भाजपा के अडवानी के बाद मार्गदर्शक मंडल के दूसरे सदस्य शांता कुमार भी शुक्रवार को खुद ही टिकट की दौड़ से बाहर हो गये। हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा संसदीय क्षेत्र से मौजूदा भाजपा सांसद शांता कुमार ने लोकसभा चुनाव लड़ने से इंकार कर दिया है।
हिमाचल में अपने जमाने में भाजपा को खड़ा करने वाले दो बार प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे शांता कुमार अपनी ही पार्टी में असहज महसूस कर रहे हैं। यही वजह है कि उन्होंने अपना पत्ता कटने से पहले ही फिर से चुनाव लड़ने से इंकार किया और अंतिम फैसला पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व पर छोड़ दिया है। शांता कुमार ने कहा कि वह चुनाव लड़ने के इच्छुक नहीं है। लेकिन फैसला केंद्रीय नेतृत्व को करना है। शांता ने कहा कि उन्होंने पार्टी को बताया है कि वह चुनाव नहीं लड़ना चाहते हैं। लेकिन चुनाव लड़वाना चाहता हूं। इस बीच, प्रदेश भाजपा के अध्यक्ष सतपाल सत्ती ने कहा है कि कांगड़ा से शांता कुमार चुनाव नहीं लड़ेंगे और कांगड़ा से नया चेहरा मैदान में होगा।
12 सितंबर 1934 जन्में शांता कुमार दो बार हिमाचल के सीएम रहे हैं। उन्होंने प्रांरभिक शिक्षा के बाद जेबीटी की पढ़ाई की और एक स्कूल में टीचर लग गए। लेकिन आरएएस में मन लगने की वजह से दिल्ली चले गए। वहां जाकर संघ का काम किया और ओपन यूनिवसर्सिटी से वकालत की डिग्री की। पंच के चुनाव से राजनीति की शुरुआत की। शांता कुमार ने 1963 में पहली बार गढज़मूला पंचायत से जीते थे। उसके बाद वह पंचायत समिति के भवारनां से सदस्य नियुक्त किए गए. बाद में 1965 से 1970 तक कांगड़ा जिला परिषद के भी अध्यक्ष रहे। सत्याग्रह और जनसंघ के आंदोलन में भी शांता कुमार ने भाग लिया और जेल की हवा भी खाई। 1971 में शांता कुमार ने पालमपुर विधानसभा से पहला चुनाव लड़ा और कुंज बिहारी से करीबी अंर्त से हार गए। एक साल बाद प्रदेश को पूर्णराज्य का दर्जा मिल गया और 1972 में फिर चुनाव हुए शांता कुमार खेरा से विधानसभा पहुंचे।
साल 1977 में आपातकाल के बाद जब विधानसभा चुनाव हुए तो जनसंघ की सरकार बनी और शांता कुमार ने कांगडा के सुलह विधानसभा से चुनाव लड़ा और फिर प्रदेश के मुखिया बने। लेकिन सरकार का कार्यकाल पूरा नहीं कर सके। इसके बाद 1979 में पहली बार काँगड़ा लोकसभा के चुनाव जीते और सांसद बने। साल 1990 में वह फिर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने, लेकिन 1992 में बाबरी मस्जिद घटना के बाद शांता कुमार एक बार फिर अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर सके।
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