B.Ed किया युवक बेच रहा गन्ने का जूस, कहता है- जब मोदी चाय बेचकर PM बन सकते हैं तो क्या हम..
शाहजहांपुर। आज हम आपको ऐसे शख्स से रूबरू कराएंगे, जो अच्छी पढ़ाई लिखाई कर अपना भविष्य संवारना चाहता था। अच्छी नौकरी पाकर अपने माता-पिता का नाम रोशन करना चाहता था। मगर, बीएड और तमाम कंप्यूटर कोर्सेस करने के बावजूद भी अब उसे बाजार में जूस का ठेला लगाना पड़ रहा है। उसका कहना है कि एक नौकरी मिल भी गई थी, लेकिन उतनी सैलरी में घर का खर्च पूरा नहीं होता था। तब बाजार में गन्ने के जूस का ठेला लगाने का आइडिया आया। इस काम से अब वह इतना संतुष्ट हो गया है कि उसे जाॅब की जरूरत महसूस नहीं होती।
तमाम कोर्स करने के बावजूद नहीं मिल पाई अच्छी नौकरी
लोग
उसे
जब
पूछते
हैं
तो
उसका
यह
भी
जवाब
होता
है
कि
जब
मोदी
चाय
बेचकर
बड़े
हुए
और
फिर
प्रधानमंत्री
बन
गए।
तो
क्या
हम
जूस
बेचकर
अपने
घर
की
तंगी
दूर
नहीं
कर
सकते?
बीएड
किया
हुआ
यह
नौजवान
है
यूपी
में
शाहजहांपुर
के
थाना
पुवायां
क्षेत्र
के
गांव
हरदयाल
कूचा
नौगवां
का
रहने
वाला
शिवकुमार।
उसके
पिता
रामेश्वर
दयाल
गन्ने
के
जूस
का
ठेला
लगाते
थे।
यही
काम
शिवकुमार
करने
लगा
है।
खैर,
पिता
के
सपने
थे
कि
वे
अपने
बेटे
को
ऐसा
पढ़ाएंगे-लिखाएंगे
कि
वो
अच्छी
नौकरी
ढूंढकर
आराम
की
जिंदगी
जीएगा।
मगर,
हर
किसी
के
नसीब
में
ऐसा
नहीं
होता।
शिवकुमार
ने
बीए
के
बाद
बीएड
किया।
उसके
बाद
कम्प्यूटर
का
बेसिक
कोर्स
किया,
कम्प्यूटर
का
बैकअप
एंड
स्टोरेज
कोर्स
के
बाद
उन्होंने
हार्डवेयर
व
साफ्टवेयर
का
कोर्स
किया।
शेयर
मार्केटिंग
के
आॅफिस
में
भी
जाॅब
की।
मगर,
वहां
महज
5
हजार
रुपए
मिलते
थे।
जो
कि
घर
का
गुजारा
करने
के
लिए
नाकाफी
हैं।
पिता से मिली प्रेरणा और ठेला ही लगाने लगा
बकौल शिवकुमार, ''मैंने शहर जाकर नौकरी की तलाश की, लेकिन प्राईवेट जाॅब में भी उतना पैसा मिलने की उम्मीद नहीं थी। ऐसे में सरकारी नौकरी के लिए भी काफी प्रयास किए। काफी फार्म भरे, लेकिन कुछ नहीं हुआ। करीब एक साल पहले सोचा कि जब मेरे पिताजी ने जूस का ठेला लगाकर मां-तीन बहनें और खुद मुझे पढ़ा-लिखाकर इस लायक बना दिया है तो यही हम भी क्यों नहीं कर लेते। तब सालभर पहले जूस का ठेला लगाने के लिए एक ठेले का इंतजाम किया। पिताजी से इजाजत मांगी और उसके बाद नखासे बाग के पास आकर जूस का ठेला लगाने लगा।''
सगे-संबंधियों ने टोका तो बुरा लगा, बाद में यही किया
शिवकुमार कहते हैं कि उस वक्त जब ठेला लगाना शुरू किया तो आसपास के रहने वाले लोग और रिश्तेदारों ने कहा कि इतनी पढ़ाई करने से क्या फायदा हुआ? जब जूस ही बेचना था तो पढ़ाई क्यों की? क्यों पिता के पैसे को बर्बाद किया? तब मेरी हिम्मत टूटने लगी थी। लेकिन फिर सोचा कि मेनहत में कोई चोरी नहीं होती। तब जूस का ठेला लगाकर दिन-रात इतनी मेनहत की आज जाॅब की जरूरत ही नहीं पङती। क्योंकि आज इस जूस के ठेले से रोज 600 से 700 रूपये रोज कमा लेते हैं। जबकि जब जाॅब करते थे, तब महज पांच हजार रूपए ही कमा पाते थे। इसलिये आज हमारे परिवार की आर्थिक स्थिति काफी बेहतर हो गई।
पीएम मोदी का इस तरह किया जिक्र
पीएम मोदी का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि जब चाय बेचने वाला शख्स देश का पीएम बनकर देश का प्रतिनिधित्व कर सकते हैं, तो फिर हम बीएड करने के बाद जूस बेचकर अपने परिवार की आर्थिक तंगी को दूर क्यों नही कर सकते हैं? उनका कहना है कि काम कोई छोटा या बड़ा नहीं होता है। बस जरूरत होती है उसको मेनहत और लगन के साथ तरक्की करने की, ताकि बगैर नौकरी के भी आप अपने ख्वाहिशें पूरी कर सकें।
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