देश को हिंदू राष्ट्र के रास्ते विकसित बनाने की बात करने वाले भ्रम में हैं: मौलाना मदनी
Saharanpur news, सहारनपुर। जमियत उलमा-ए-हिंद के राष्ट्रीय अध्यक्ष मौलाना सैय्यद अरशद मदनी ने कहा कि जो लोग यह समझते हैं कि देश को हिंदू राष्ट्र के रास्ते पर लगाकर उसे एक विकसित देश बना देंगे वो भ्रम में हैं। यह देश शांति, एकता और एकजुटता के रास्ते पर चल कर ही विकास के रास्ते पर जा सकता है और इस विकास में देश के हर नागरिक का सहयोग शर्त है। मदनी ने स्पष्ट किया कि हमारी लड़ाई किसी विशेष राजनीतिक दल से नहीं बल्कि उन लोगों से है जो देश की सदियों पुरानी संस्कृति और आपसी मेल-जोल की परंपरा को समाप्त कर उसे एक वैचारिक देश में ढालना चाहते हैं।
मौलाना अरशद मदनी ने कहा कि देश निस्संदेह इतिहास के सबसे गंभीर दौर से गुजर रहा है जिन परंपराओं और आधार पर आजाद भारत की बुनियाद रखी गई थी उसे जानबूझकर खोखला कर दिया गया है। इसलिए संविधान की प्रतिष्ठा के साथ-साथ लोकतंत्र को भी जबरदस्त खतरा पैदा हो चुका है। उन्होंने कहा कि एक विशेष विचारधारा को पूरे देश में लागू करके संवैधानिक चरित्र को तबाह करने की कोशिशें हो रही हैं। अल्पसंख्यकों के अधिकारों की निरंतर अनदेखी हो रही है और यदि यह सबकुछ आगे भी इसी तरह जारी रहा तो हमारे बड़ों ने जिस भारत का सपना देखा था वो न केवल साकार नहीं होगा बल्कि टूट कर बिखर सकता है।
उन्होंने कहा कि ऐसे हालात में हम पर दोहरी जिम्मेदारी है, एक ओर जहां हमें देश में एकता, शांति और अखण्डता को बढ़ावा देना है। वहीं न्यायप्रिय लोगों को साथ लेकर हमें इन शक्तियों से लोहा भी लेना है, जो देश को एक वैचारिक राज्य में बदल देना चाहती है। मदनी ने कहा कि पिछले कुछ वर्षों के दौरान अल्पसंख्यकों विशेषकर मुसलमानों के साथ जो कुछ होता रहा है उसे यहां दोहराने की आवश्कता नहीं। हर दिन नए मुद्दे उठाकर मुसलमानों को न केवल उकसाने का प्रयास हो रहा है बल्कि उन्हें दीवार से लगा देने का योजनाबद्ध षड्यंत्र भी होता रहा है। कहा कि एक विशेष विचारधारा पर आधारित देश भक्ति का प्रोपेगंडा कर मुसलमानों की देशभक्ति पर सवाल खड़े किए जाते रहे हैं। लेकिन इस सब के बावजूद मुसलमानों ने जिस सब्र का प्रदर्शन किया है वो अद्भुत है। इसके लिए देश का एक बड़ा न्याय प्रिय वर्ग भी उन्हें प्रशंसा की दृष्टि से देखता है।
उन्होंने कहा कि देश की वर्तमान स्थिति विशेषकर मुस्लिम अल्पसंख्यक और दलितों के लिए विभाजन के समय से भी गंभीर और खतरनाक हो चुकी है। एक तरफ जहां संविधान की प्रतिष्ठा को समाप्त करने की साजिश की जा रही है। वहीं न्याय के चरित्र को भी समाप्त कर देने के लिए खतरनाक तरीका अपनाया जा रहा है।
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