Bihar Assembly Elections 2020: 6 प्रधानमंत्रियों के साथ काम करने वाले पासवान 51 साल में पहली बार रहेंगे चुनाव से दूर
पटना। बिहार के सबसे सीनियर लीडर रामविलास पासवान 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में सक्रिय नहीं रहेंगे। वे बीमार हैं। रामविलास पासवान को संसदीय राजनीति का 51 साल का अनुभव है। वे भारत के एक मात्र ऐसे नेता हैं जिनको छह प्रधानमंत्रियों के कैबिनेट में काम करने का तजुर्बा है। अभी तक वे देश और बिहार की राजनीति के अनिवार्य अंग रहे हैं। लेकिन ऐसा पहली बार होगा को उनके बगैर लोजपा को किसी चुनाव में उतरना पड़ेगा। ऐसे तपे- तपाये नेता की गैरमौजूदगी जरूर खलेगी। ऐसे में लोजपा के नये कप्तान चिराग पासवान की चिंता बढ़ गयी है। चिराग पासवान निर्णायक मोड़ पर खड़े हैं। एक तरफ उनकी नीतीश से ठनी हुई तो दूसरी तरफ उन्हें चुनावी रणभूमि में अपने पिता के बिना उतरना पड़ेगा। 2014 में चिराग पासवान ने ही रामविलास पासवान को एनडीए में शामिल होने के लिए मनाया था। लेकिन छह साल में वक्त बदल गया। 2020 में अब चिराग पासवान की वजह से ही एनडीए में गतिरोध की स्थिति है।
महाराजगंज उपचुनाव और चिराग बन गये नेता
जून 2013 में बिहार के महाराजगंज लोकसभा सीट पर उपचुनाव होना था। नीतीश कुमार ने यहां से अपने करीबी मंत्री पी के शाही को उम्मीदवार बनाया था। नीतीश मुख्यमंत्री थे और उन्होंने इस चुनाव को जीतने के लिए अपनी पूरी ताकत झोंक दी थी। लालू यादव ने इस चुनाव में चर्चित नेता प्रभुनाथ सिंह को मैदान में उतारा था। ये सीट राजद की थी। कांटे की लड़ाई थी। लालू यादव ने राजद की स्थिति मजबूत करने के लिए रामविलास पासवान की मदद मांगी। लालू ने पासवान को बुलावा भेजा। उस समय रामविलास पासवान बीमार थे। उन्होंने लालू से कहा, मैं तो बीमार हूं, चिराग को वहां भेज रहा हूं। चिराग पासवान महाराजगंज पहुंचे। दो साल पहले ही उनकी फिल्म ‘मिले ना मिले हम' रिलीज हुई थी। राजनीति का कोई तजुर्बा नहीं था। लोकसभा चुनाव के लिए बड़े-बड़े नेताओं के साथ मंच से भाषण देना था। काम आसान नहीं था। लेकिन चिराग ने हौसला कायन रखा। जब उन्होंने प्रभुनाथ सिंह के प्रचार में पहला भाषण किया तो लालू और दूसरे बड़े नेता दंग रह गये। चिराग ने रामविलास पासवान की गैरमौजूगी में आत्मविश्वास के साथ चुनाव प्रचार की जिम्मेदारी संभाली। इस चुनाव में नीतीश की ताकत धरी की धरी रह गयी। राजद के प्रभुनाथ सिंह करीब एक लाख 37 हजार वोटों से चुनाव जीत गये। जदयू की हार से नीतीश की किरकिरी हो गयी। इस चुनाव को जीतने के बाद प्रभुनाथ सिंह ने रामविलास पासवान से चिराग पासवान की बहुत तरीफ की थी। महाराजगंज लोकसभा उपचुनाव ने चिराग को अभिनेता से नेता बना दिया। रामविलास पासवान ने मौके को ताडा और 2013 में ही चिराग को लोजपा संसदीय बोर्ड का अध्यक्ष बना दिया।
चिराग के कहने पर रामविलास ने छोड़ी थी जिद
फरवरी 2014 की बात है। तीन, चार महीने बाद लोकसभा के चुनाव होने थे। रामविलास पासवान का लालू यादव से चुनावी गठबंधन था। वे कांग्रेस से तालमेल कर बिहार में लोकसभा का चुनाव लड़ना चाहते थे। लेकिन बात नहीं बन रही थी। रामविलास गुजरात दंगे के मुद्दे पर भाजपा से बहुत पहले नाता तोड़ चुके थे। लोजपा कश्मकश में थी कि अब क्या किया जाए। ऐसी उहापोह की स्थिति में युवा चिराग पासवान ने आगे बढ़ कर रास्ता दिखाया। चिराग ने धारा के खिलाफ जाते हुए नरेन्द्र मोदी के साथ चुनाव लड़ने की पेशकश की। रामविलास को ये मंजूर न था। उन्होंने कहा कि धर्मनिरपेक्षता के लिए मैंने नुकसान सह लिया लेकिन सममझौता नहीं किया। चिराग ने साहस दिखाया और नरेन्द्र मोदी से साथ जाने के लिए अड़ गये। उन्होंने रामविलास पसावान को समझाया कि जब लोजपा ही जिंदा नहीं बचेगी तो वे किस मंच पर राजनीति करेंगे। चिराग ने कहा, लोजपा को अगर जिंदा रखना है तो 2014 के लोकसभा चुनाव में नरेन्द्र मोदी से साथ जाना होगा। चिराग की उम्र तब तीस-एकतीस साल की रही होगी लेकिन उन्होंने तभी कह दिया था कि नरेन्द्र मोदी ही अब भारतीय राजनीति का भविष्य हैं। रामविलास ने पार्टी हित में अपनी जिद छोड़ दी।
जब लालू को जेल में देख रोये थे पासवान
फरवरी 2014 में रामविलास पासवान ने अपनी राजनीतिक संभावनाओं पर चर्चा के लिए कुछ परिचित पत्रकारों को बुलाया था। पासवान ने सोचा था कि कुछ संवाददाता आएंगे और टेबल पर बैठ कर ही बात हो जाएगी। माइक वगैरह का कोई इंतजाम नहीं था। लेकिन उस दिन पासवान के यहां मीडियाकर्मियों की भारी भीड़ जुट गयी। सब तरफ हल्ला मच गया था कि आज पासवान कुछ कहने वाले हैं। खैर, बैठकी जमी। माइक नहीं रहने की वजह रामविलास को जोर-जोर से अपनी बात कहनी पड़ी। रामविलास ने बेबाकी से कहा, हम छोटी पार्टी हैं और हमें चुनावी तैयारियों के लिए अधिक वक्त चाहिए। हमने कांग्रेस और लालू यादव से सीटों की तस्वीर साफ करने के लिए कई बार कहा। लेकिन बात नहीं सुनी गयी। इसलिए हम नये विकल्प पर गौर करने के लिए मजबूर हैं। चिराग ने कहा, वहां गतिरोध कायम था। हम क्या करते ? कुछ तो सोचना ही था। पासवान ने बात जारी रखी, मैंने सोनिया गांधी और सीपी जोशी से दो दो बार मुलाकात की। फोन पर बाती की लेकिन उन्होंने हमारी संभावित सीटों के बारे में कुछ भी नहीं कहा। हमारा गठबंधन लालू यादव से था। लालू से भी हमने कई बार बात की। इसी बीच अक्टूबर 2013 में लालू यादव जेल चले गये। हम उनसे जेल में भी मिलने गये। जेल में उनकी हालत देख कर मेरी आंखों से आंसू निकल गये। लालू यादव जब दिसम्बर 2013 में जेल से बाहर आये तो हमने फिर बात की। हमने लोजपा के महासचिव अब्दुल खालिद को भी लालू के पास भेजा। लेकिन मेरी उपेक्षा जारी रही। इस बीच लालू और कांग्रेस की तरफ से यह कहा जाने लगा, दो-तीन सीट पर लड़ना हैं तो लड़ें नहीं तो जाएं, लोजपा की हैसियत ही क्या है। इस तौहीन से बहुत ठेस लेगी। रामविलास ने आगे कहा, ये सच है कि मैं भाजपा के साथ जाना नहीं चाहता था। मेरे अपने उसूल हैं। लेकिन मैं कोई डिक्टेटर नहीं। जब चिराग के नेतृत्व में लोजपा संसदीय बोर्ड ने नया विकल्प चुनने पर मुहर लगा दी तो मेरे विरोध का कोई मतलब नहीं रह गया। मैंने पार्टी हित के लिए अपनी जिद छोड़ दी। इस तरह चिराग ने रामविलास पासवान को फिर भाजपा के साथ जोड़ा था।
2020 में कहां है लोजपा ?
2014 में चिराग की वजह से लोजपा की हैसियत जीरे से हीरो की हो गयी। 2009 के लोकसभा चुनाव में रामविलास पासवान तो चुनाव हारे ही थे लोजपा का खाता तक नहीं खुल पाया था। लेकिन चिराग के फैसले की वजह से 2014 में लोजपा के छह सांसद चुने गये। संसद में लोजपा, लालू के राजद से भी बड़ी पार्टी बन गयी थी। 2019 में भी लोजपा की ताकत बरकरार रही। लेकिन अब वही चिराग 2020 के विधानसभा चुनाव में टकराव के रास्ते पर चल रहे हैं। वे जानते थे कि चालीस-पचास या 93 सीटों की मांग कभी मानी नहीं जाएगी। फिर माहौल को गरमाये रखा। नीतीश कुमार से पंगा लेकर उन्होंने लोजपा अनिश्चय के भंवर में डाल दिया है। वे एनडीए में बने रहेंगे, नीतीश के खिलाफ चुनाव लड़ेंगे या फिर किसी नये विकल्प पर गौर करेंगे ?
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