देखिए, पहली बार सामने आया कोरोना टेस्ट का वीडियो, 6 घंटे के प्रोसेस में जरा सी चूक से संक्रमण का खतरा
राजकोट। कोरोना वायरस का संक्रमण देश-दुनिया में दिन-दर-दिन तेजी से फैलता जा रहा है। डॉक्टर, मेडिकल स्टाफ और सुरक्षाकर्मी अपनी जान जोखिम में डालकर कोरोना-पीड़ितों की देखभाल कर रहे हैं। कोरोना के संक्रमण की पुष्टि एवं इलाज की प्रक्रिया को कई चरणों से गुजरना होता है। कोई मरीज कोरोना पॉजिटिव है या निगेटिव, इसकी प्रक्रिया के बारे मेंं पता लगाने के लिए वनइंडिया के संवाददाता ने पीडीयू कॉलेज स्थित माइक्रोबायोलॉजी लैब में उन डॉक्टर्स से संपर्क किया। जहां उन्होंने बताया कि, इस पूरी प्रक्रिया में सबसे पहला चरण मरीज के नमूने की जांच करने का है। छह घंटे की इस प्रक्रिया में जरा सी ग़लती से संक्रमित होने का खतरा होता है।
इन 10 की टीम होती है खतरे के बीच
लैब के डीन डॉक्टर गौरवी ध्रुव और उनकी टीम द्वारा कोरोना टेस्ट की प्रक्रिया लाइव दिखाई गई। जिसमें सैंपल लेने के बाद का पूरा प्रोसेस और रिपोर्ट आने तक के चार चरण का ब्यौरा दिया गया। इस प्रोसेस में टीम के 3 रेसिडेंट डॉक्टर, 3 प्रोफेसर और 3 टेक्नीशियन एवं पियून समेत 10 लोग शामिल होते हैं। उन्हें ही संक्रमण होने का खतरा हर पल बना रहता है। इसलिए, ये लोग किसी बॉर्डर पर खड़े सैनिक की तरह खतरे से लड़ने के लिए तैयार रहते हैं।
बायोसेफ्टी कैबिनेट में होता है पहला प्रोसेस
सबसे पहले संदिग्ध मरीज के गले से स्वोब लिया जाता है। बाद में बायोसेफ्टी केबिनेट में इस स्वोब के 3 मिली से 200 माइक्रो लीटर में केमिकल डालकर वायरस के नमूने लेते हैं। इस प्रोसेस को एलिकोटिंग कहते हैं। जो सबसे ज्यादा खतरनाक होने के कारण बायोसेफ्टी कैबिनेट में ही किया जाता है।
आरएनए एक्सट्रेशन (अलग करना)
सैंपल में कई तरह के वायरस होते हैं और वायरस के मध्य में आरएनए भी होता है। दूसरे प्रोसेस में सभी के आरएनए को अलग किया जाता है। उसको भी लाइस कर अगले पीसीआर विभाग में भेजा जाता है। जहां पर वायरस की पहचान की जाती है। बता दें कि, आरएनए वायरस के बंधारण का महत्वपूर्ण पार्ट है। यानि इस प्रोसेस में हुई ग़लती से परिणाम गलत हो सकता है।
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पीसीआर सेक्शन में रिएजेन्ट तैयार होता है
बायोसेफ्टी कैबिनेट में कोरोना वायरस के डिटेक्शन के लिए तैयार किए गए केमिकल और आरएनए को पीसीआर सेक्शन में भेजा जाता है। जहां वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन द्वारा तैयार किए गए कोड पर से इस सैंपल का रिएजेन्ट तैयार होता है। जिसको बाद में टेस्टिंग मशीन में रखा जाता है।
55 से 90 डिग्री में होती है टेस्टिंग
रिएजेन्ट को मशीन में रखने के बाद 55 से 90 डिग्री के अलग-अलग तापमान में रखा जाता है। जिसमें आरएनए में हो रहे मल्टीप्लिकेशन का परिणाम चार्ट के रूप में दिखाई देता है।
पॉजिटिव की पुष्टि के लिए प्रोसेस दोहराया जाता है
यह परिणाम कोरोना के ही जिनेटिक कोड से मेच हो तो रिपोर्ट पॉजिटिव अन्यथा निगेटिव मानी जाती है। हालांकि, पॉजिटिव को घोषित करने से पहले पूरा प्रोसेस दोहराया जाता है।
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