134 बच्चों की मौत के सवाल पर बोले राजकोट के सरकारी अस्पताल के डॉक्टर- कुदरत भी जिम्मेदार है..
राजकोट. गुजरात में राजकोट के सरकारी अस्पताल एक माह के अंदर 134 बच्चों की मौत होने पर विपक्षियों ने राज्य सरकार कटघरे में खड़ी कर दी है। कांग्रेस राज्य के मुख्यमंत्री एवं उपमुख्यमंत्री पर लगातार सवाल दाग रही है। वहीं, मीडिया ने जब राजकोट सिविल हॉस्पिटल से बच्चों की मौत के कारण जानने चाहे तो सिविल सर्जन डॉक्टर मनीष मेहता ने कहा, ''विगत अक्टूबर महीने में 87, नवंबर में 71 और दिसंबर में 111 बच्चों की मौतें हुईं। इन मौतों की मुख्य वजह ये रही कि दूसरे अस्पतालों से नवजातों को काफी देर से इधर रेफर किया गया। अन्य प्राइवेट अस्पताल यदि समय रहते गंभीर मरीजों, नवजात एवं प्रसूता को यहां भिजवाते तो आंकड़ा कम होता।'
'हर
माह
मौत
का
आंकड़ा
इतने
के
ही
आसपास
रहता
है'
सिविल
सर्जन
डॉक्टर
मनीष
मेहता
ने
यह
भी
कहा
कि
प्रति
माह
मौत
का
आंकड़ा
इतने
के
आस-पास
ही
रहता
है।
नवजात
बच्चों
की
मौत
की
बड़ी
वजह
यह
भी
है
कि
ज्यादातर
बच्चों
का
वजन
कम
होता
है,
ऐसे
में
उन्हें
बचाना
मुश्किल
होता
है।
हालांकि,
यहां
डॉक्टरों
की
कमी
होने
की
बात
गलत
है।
कुदरत
भी
ऐसी
मौतों
के
लिए
जिम्मेदार
है।''
डॉक्टर
ने
यह
भी
माना
कि
अभी
अस्पताल
के
एनआईसीयू
में
ढाई
किलो
से
कम
वजन
वाले
बच्चों
को
बचाने
की
व्यवस्थाएं
और
क्षमता
नहीं
है।
सामान्यत:
एनआईसीयू
में
विशेष
नर्सिंग
देखभाल,
तापमान
नियंत्रण,
संक्रमण
मुक्त
हवा
की
विशेष
जरूरत
होती
होती
है।
बच्चा
अगर
कम
वजन
का
है,
तो
उसके
लिए
एक
नर्स
मौजूद
होनी
ही
चाहिए।
इधर,
अहमदाबाद
सिविल
अस्पताल
के
सुपरिटेंडेंट
ने
कहा..
राजकोट
के
अलावा
अहमदाबाद
में
भी
दिसंबर2019
में
काफी
बच्चों
की
मौत
हुई।
अहमदाबाद
के
एक
सरकारी
अस्पताल
(अहमदाबाद
सिविल
अस्पताल)
में
85
बच्चों
की
मौतें
दर्ज
की
गईं।
वहीं,
नवंबर
में
74,
के
साथ
अक्टूबर
में
94
बच्चों
ने
दम
तोड़ा।
अहमदाबाद
सिविल
अस्पताल
के
सुपरिटेंडेंट
डॉक्टर
गुणवंत
राठौर
का
कहना
है,
'हर
महीने
400
से
ज्यादा
बच्चे
अस्पताल
में
दाखिल
किए
जाते
हैं।
उस
हिसाब
से
मृत्युदर
सिर्फ
20
प्रतिशत
है।
सुविधाओं
की
कोई
कमी
नहीं।
निजी
अस्पतालों
से
बच्चा
क्रिटिकल
कंडीशन
में
सरकारी
अस्पताल
भेजा
जाता
है।
ऐसे
में
बच्चों
की
मौत
पर
आंकड़ा
केवल
सरकारी
अस्पतालों
में
देखने
को
मिलता
है।
प्रति
माह
तकरीबन
400
बच्चे
अस्पताल
में
दाखिल
होते
है।
जिसमें
से
80
फीसदी
बच्चे
स्वस्थ
होकर
जाते
हैं।'