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Navratri 2019: युद्ध देवी के नाम से जानी जाती हैं तनोट माता, 1965 की जंग में पाक सेना को दिखाया चमत्कार

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जैसलमेर। शारदीय नवरात्रि 2019 शुरू हो चुके हैं। देशभर में रविवार से माता के विभिन्न रूपों की विशेष पूजा अर्चना का सिलसिला शुरू हो गया है। आईए नवरात्रों के मौके पर जानते हैं एक ऐसी देवी मां के बारे में, जिन्हें युद्ध देवी के नाम से भी जाना जाता है। उनके चमत्कारों के सामने पाकिस्तान की पूरी फौज खौफ खाती है। इस बात का गवाह वर्ष 1965 में भारत-पाकिस्तान के बीच हुआ युद्ध है।

Tanot mata mandir jaisalmer History & Story in Hindi

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हम बात कर रहे हैं तनोट माता की, जिनका राजस्थान के जैसलमेर जिला मुख्यालय से 130 किलोमीटर दूर भारत-पाकिस्तान सरहद पर भव्य मंदिर है। नवरात्र 2019 के उपलक्ष्य में 29 सितम्बर से माता तनोट राय मंदिर में खास मेला शुरू हो गया है। चहुंओर से आस्था का सैलाब उमड़ रहा है।

पाक ने तनोट मंदिर के पास बरसाए तीन हजार गोले

पाक ने तनोट मंदिर के पास बरसाए तीन हजार गोले

जैसलमेर में भारत पाक सीमा पर बने तनोट माता के मंदिर से भारत पाकिस्तान युद्ध 1965 की कई अजीबोगरीब यादें जुडी हुई हैं। यह मंदिर भारत ही नहीं बल्कि पाकिस्तानी सेना के फौजियों के लिए भी आस्था का केन्द्र रहा है। 1965 के भारत पाक युद्ध से माता की कीर्ति और अधिक बढ गई जब पाक सेना ने भारतीय सीमा के अन्दर भयानक बमबारी करके लगभग 3000 हवाई और जमीनी गोले दागे, लेकिन तनोट माता की कृृपा से एक भी गोला नहीं फटा। इस घटना के गवाह के तौर पर आज भी मंदिर परिसर में 450 गोले रखे हुए हैं, जो युद्ध के बाद मंदिर के पास की जमीन में दबे मिले थे।

खुद के सैनिकों पर ही हमला करने लगी पाक सेना

खुद के सैनिकों पर ही हमला करने लगी पाक सेना

पाक सेना 4 किलोमीटर अंदर तक घुस आई थी, लेकिन युद्ध देवी के नाम से प्रसिद्ध तनोट माता के चमत्कार के कारण पाक सेना को न केवल उल्टे पांव लौटना पड़ा बल्कि अपने सौ से अधिक सैनिकों के शवों को भी छोड़कर भागना पड़ा। तनोट माता के बारे में कहा जाता है कि युद्ध के समय माता के प्रभाव ने पाकिस्तानी सेना को इस कदर उलझा दिया था कि रात के अंधेरे में पाक सेना अपने ही सैनिकों को भारतीय सैनिक समझकर उन पर गोलाबारी करने लगे थे।

भारत-पाक युद्ध 1971 में दिखाया चमत्कार

भारत-पाक युद्ध 1971 में दिखाया चमत्कार

1971 के युद्ध में भी पाकिस्तान की सेना ने फिर हमला किया था, परन्तु 1965 की ही तरह उन्हें फिर से मुंह की खानी पड़ी। उनके टैंक यहां मिट्टी में फंस गए थे, जिन्हें बाद में भारतीय वायु सेना बमबारी करके धवस्त कर दिया था। तनोट राय माता की शक्ति को देखकर पाक सेना के कमाण्डर शहनवाज खां ने युद्ध समाप्ति के बाद भारत सरकार से माता के दर्शन की इजाजत मांगी। ढाई वर्ष बाद इजाजत मिलने पर शहनवाज खां ने तनोट माता के दर्शन कर मंदिर में छत्र चढ़ाया। जैसलेमर में सरहद पर लगभग 1200 साल पुराने तनोट माता के मंदिर के महत्व को देखते हुए बीएसएफ ने यहां अपनी चौकी बना रखी है। इतना ही नहीं बल्कि मंदिर आरती व देखरेख भी बीएसएफ ही करती है।

तनोट माता का इतिहास

तनोट माता का इतिहास

माता को देवी हिंगलाज माता का एक रूप माना जाता है। हिंगलाज माता शक्तिपीठ वर्तमान में पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रांत के लासवेला जिले में स्थित है। भाटी राजपूत नरेश तणुराव ने तनोट को अपनी राजधानी बनाया था। उन्होंने विक्रम संवत 828 में माता तनोट राय का मंदिर बनाकर मूर्ति को स्थापित किया था। भाटी राजवंशी और जैसलमेर के आसपास के इलाके के लोग पीढ़ी दर पीढ़ी तनोट माता की अगाध श्रद्धा के साथ उपासना करते रहे।

कालांतर में भाटी राजपूतों ने अपनी राजधानी तनोट से हटाकर जैसलमेर ले गए परंतु माता का मंदिर तनोट में ही रहा। तनोट माता का य‍ह मंदिर यहाँ के स्थानीय निवासियों का एक पूज्यनीय स्थान हमेशा से रहा परंतु 1965 को भारत-पाक युद्ध के दौरान जो चमत्कार देवी ने दिखाए उसके बाद तो भारतीय सैनिकों और सीमा सुरक्षा बल के जवानों की श्रद्धा का विशेष केन्द्र बन गई।

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English summary
Tanot mata mandir jaisalmer History & Story in Hindi
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