Mahashivratri : राजस्थान के माउंट आबू में होती है भगवान शिव के अंगूठे की पूजा, जानिए वजह
सिरोही। फाल्गुन मास की चतुर्दशी तिथि के मौके पर देशभर में महाशिवरात्रि का पर्व मनाया जाता है। इस दिन भगवान भोले के भक्त उपवास रखकर और शिवालयों में जलाभिषेक करते हैं। शुक्रवार को महाशिवरात्रि 2020 धूमधाम से मनाया जा रहा है। इस उपलक्ष्य में जानिए एक ऐसे शिव मंदिर के बारे में जहां शिवलिंग की बजाय भगवान शिव के अंगूठे की पूजा की जाती है। यह अनूठा शिव मंदिर राजस्थान के सिरोही जिले के माउंट आबू स्थित श्री अचलगढ़ महादेव मंदिर है।
अचलगढ़ महादेव मंदिर माउंट आबू सिरोही
अरावली पर्वत श्रृंखला से घिरे सिरोही स्थित श्री अचलेश्वर महादेव महादेव मंदिर में भगवान शिव के अंगूठे की पूजा किए जाने के पीछे कई दशक से एक कहानी प्रचलित है। मंदिर पुजारी पणजी महाराज बताते हैं कि अरावली पर्वत श्रृखला में शिव के निवास का वर्णन शिव पुराण एवं स्कन्द पुराण में भी मिलता है। उनमें बताया गया है कि भगवान शिव काशी के बाद विविध रूपों में माउण्ट आबू की अरावली पर्वत श्रृंखला में निवास करते हैं।
माउंट आबू अर्धकाशी के नाम से भी विख्यात
इसलिए सिरोही जिले के माउंट आबू को अर्धकाशी के नाम से भी जाना जाता है। महाशविरात्रि के अलावा श्रावण में माउण्ट आबू में देशभर से लोग देवाधिदेव महादेव के दर्शन के लिए आते हैं। पुराणों में भी उल्लेख है कि इन पर्वत श्रृंखला में स्वयं शिव, अन्नत: रूप में विद्यामान हैं। यहीं कारण है कि राजस्थान के सिरोही जिले में सर्वाधिक मठ मंदिर पूरे जिलें में विभिन्न स्थानों पर बने हुए हैं।
माउंट आबू में तपस्या करते थे ऋषि वशिष्ठ
मंदिर पुजारी पणजी महाराज बताते हैं कि स्कन्द पुराण के अनुसार ऋषि वशिष्ठ सिरोही की इस अरावली पर्वत माला में एक गुफा में तपस्या किया करते थे। उनके पास में एक गाय थी नन्दनी। इन्द्र के बज्र के प्रहार से इस पर्वत श्रृंखला में एक ब्रह्म खाई बन गई थी। स्वयं ऋषि वशिष्ठ भी इसी ब्रह्म खाई के पास में ही बैठकर के तपस्या करते थे। इसी स्थान पर ब्रह्म खाई होने से ऋषि वशिष्ठ की गाय नन्दिनी उस ब्रह्म खाई में रोजाना गिर जाती थी।
ब्रह्म खाई को भरने के लिए श्रेष्ठ पुत्र को भेजा
रोजाना की इसी समस्या से परेशान होकर के ऋषि वशिष्ठ ने इस ब्रह्म खाई को भरने की ठानी और आग्रह करने के लिए पर्वतों के राजा हिमालय राज के पास पहुंचे। ऋषि वशिष्ठ के इस आग्रह को हिमालय राज ने जल्द ही स्वीकार कर अपने श्रेष्ठ पुत्र अरावली को इस ब्रह्म खाई को भरने के लिए भेजा। लेकिन खाई गहरी को नहीं भर पाया।
ब्रह्म खाई में समाने लगा नंदीश्वर पर्वत
फिर इसी स्थान पर पूर्ण रूप से फैल कर लेट गया। इसी कारण अरावली पर्वत श्रृंखला विश्व में सर्वाधिक लम्बी पर्वत श्रृंखला मानी जाती है, जो राजस्थान के बीचोंबीच से गुजरकर पंजाब के बॉर्डर तक पहुंचती है। जब हिमालय राज के श्रेष्ठ पुत्र अरावली इस ब्रह्म खाई को पाट पाने में सफल नहीं हो पाएं तो पुन: ऋषि की प्रार्थना पर हिमालय राज ने एक लंगड़े पर्वत नंदीराज को एक विशाल अवरूद्ध सर्प पर सवार कर इस स्थान पर भेजा। यहां पर आने के बाद में नंदीश्वर पर्वत भी इस ब्रह्म खाई में भीतर गहराई तक समाने लगा।
भगवान शिव ने दाहिन पैर के अंगूठे से पर्वत को स्थिर किया
इस बात से चिन्तित होकर ऋषि वशिष्ठ ने देवाधिदेव महादेव से इस ब्रह्म खाई को भरने की प्रार्थना की। ऋषि वशिष्ठ की करूण प्रार्थना की पुकार सुन महादेव ने काशी से ही अपने दाहिने पैर को फैलाकर के अपने अंगूठे से इस नंदीश्वर पर्वत को अधर कर दिया और बाद में इस स्थान का नाम अचलेश्वर महादेव के नाम से विख्यात हो गया। वर्तमान में सिरोह के माउंट आबू में इस स्थान को अचलगढ़ के रूप में जाना जाता है।
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