13 माह बर्फ में रहकर लौटेगा सीकर का राजीव, माइनस 39 डिग्री तापमान में कई बार हुआ मौत से सामना, Video
सीकर। खून जमा देने वाली सर्दी। तापमान माइनस 39 डिग्री सेल्सियस। 200 किलोमीटर प्रति घंटा की रफ़्तार से चलती ठंडी हवाएं। दूर-दूर तक सिर्फ बर्फ ही बर्फ। इंसानी आबादी का कोई नामो-निशां नहीं। कई बार बर्फीले तूफान में फंसे। मौत भी मानो छूकर निकल गई, मगर इरादे बुलंद रहे। हौसला नहीं टूटा। भारत का खास मिशन जो पूरा करना था। यह कहानी है राजस्थान के सीकर जिले की फतेहपुर तहसील के गांव रिणाऊ निवासी राजीव कुमार बिरड़ा की।
18 को केपटाउन से हुए रवाना
भारत के राष्ट्रीय अंटार्कटिक एवं समुद्री अनुसंधान केन्द्र के मिशन पर अंटार्कटिका महाद्वीप में गए राजीव बिरड़ा 19 जनवरी 2020 को लौटे हैं। वो दक्षिण अफ्रीका की राजधानी केपटाउन से 18 जनवरी की फ्लाइट से इथियोपिया होते हुए भारत पहुंचे हैं। वन इंडिया हिंदी से बातचीत में राजीव बिरड़ा ने बयां किया अपने तेरह माह का वो सफर जिसमें पहाड़ सी चुनौतियां हैं। जिंदगी गवां देने का डर है और मिशन को पूरा करने की जिद है।
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क्या है अंटार्कटिका मिशन
राजीव बिरड़ा के अनुसार अंटार्कटिका पृथ्वी का दक्षिणतम महाद्वीप है। 54 लाख वर्ग मील क्षेत्रफल के लिहाज से यह पांचवां सबसे बड़ा महाद्वीप है। यहां का 98 फीसदी हिस्सा औसतन 1.6 किलोमीटर मोटी बर्फ की चादर से ढका हुआ है। विश्व की सबसे ठंडी, शुष्क और तेज हवाओं वाली जगह अंटार्कटिका में वैज्ञानिकों की टीम जलवायु परिवर्तन समेत विभिन्न विषयों पर शोध करने के लिए जाती है। वर्ष 2018 में गई टीम में सीकर के गांव रिणाऊ निवासी राजीव बिरड़ा भी शामिल हैं।
भारत के मैत्री स्टेशन पर रहे राजीव
राजीव बिरड़ा बताते हैं कि अंटार्कटिका में भारत के तीन स्टेशन हैं। मैत्री, दक्षिण गंगौत्री और भारतीय। दक्षिण गंगौत्री छह मिशन के बाद बर्फ में दबकर नष्ट हो गया था। राजीव तीसरी बार अंटार्कटिका मिशन पर गए हैं। 34वें और 36वें मिशन में भारतीय स्टेशन पर रहे। इस बार 38वें पर मिशन पर मैत्री स्टेशन मिला। खास तौर से बनाए गए इन स्टेशनों में टीम के रहने, भोजन और संचार के साधन हैं।
चिकित्सा सुविधा मुहैया करवाने की थी जिम्मेदारी
भारत सरकार की ओर से 38वें अंटार्कटिका मिशन के लिए राजीव बिरड़ा का चयन बतौर नर्सिंग ऑफिसर के रूप में हुआ। मिशन पर काम करने वाले वैज्ञानिक समेत 24 लोगों की टीम को चिकित्सा सुविधा मुहैया करवाने का जिम्मा राजीव बिरड़ा का था। बर्फ से ढके अंटार्कटिका में स्वास्थ्य बनाए रखना सबसे बड़ी चुनौती थी।
सौ किलोमीटर दूर से लाते थे राशन
बकौल राजीव बिरड़ा, दक्षिण अफ्रीका की राजधानी केपटाउन से हर दो माह बाद जहाज राशन, पानी और ईंधन लेकर आता था। खाने का सामान डिब्बों में बंद और फ्रोजन होता था। यह जहाज मैत्री स्टेशन से सौ किलोमीटर दूर आईएल इंडियन बैरियर तक पहुंच पाता था। यहां से टीम के सदस्यों को अंटार्कटिका के लिए बनी विशेष गाड़ियों में बैठकर जहाज तक पहुंचना होता था। सौ किलोमीटर के रास्ते में कभी भी भयंकर बर्फीले तूफान आ जाते थे, जिनका एक ही जगह डेरा डालकर दो-दो दिन तक थमने का इंतजार करना पड़ता था। उस सफर के दौरान जिंदा रहने के संसधान हमारे सीमित होते थे।
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तीन माह में सिर्फ छह मिनट बात
भारत के अंटार्कटिका मिशन पर जाने वाली टीम का घर वालों से नियमित संचार सम्पर्क नहीं था। शुरुआत की तीन माह दिसम्बर से फरवरी तक प्रत्येक सदस्य को सैटेलाइट फोन के जरिए घर पर बात करने के लिए महज छह मिनट मिलते थे। इसके बाद के माह में प्रत्येक सदस्य को बीस मिनट मिलने लगे थे। सैटेलाइट फोन के अलावा ईमेल के जरिए सम्पर्क कर सकते थे। राजीव बिरड़ा समेत राजस्थान के तीन बेटों ने इस मिशन में हिस्सा लिया।
राजीव बिरड़ा का परिवार व उपलब्धियां
34वें और 36वें अंटार्कटिका मिशन के भारत सरकार के पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय की ओर से राजीव बिरड़ा को पोलर मैन की उपाधि प्रदान की जा चुकी है। जिला कलेक्टर सीकर भी इन्हें दो बार सम्मानित कर चुके हैं। फतेहपुर शेखावाटी उपखंड के गांव रिणाऊ में जीवण राम और गीता देवी के घर जन्मे राजीव की शादी संजू से हुई। इनके एक बेटी हर्षिता है।
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