राजस्थान की कुप्रथा 'मौताणा', जिसके नाम पर होती है रुपयों की 'सौदेबाजी'
जयपुर, 28 नवंबर: 'मौताणा' सुनने में थोड़ा अजीब लग रहा होगा, लेकिन यह राजस्थान के आदिवासी इलाकों की एक ऐसी 'कुप्रथा' है, जो दशकों से चली आ रही है। राजस्थान के लोगों के लिए यह कुप्रथा नई नहीं हैं, लेकिन इसको रोकने के लिए आजतक कोई कानून नहीं बन पाया है। राजस्थान के 5 जिले, जो आदिवासी बाहुल है। यहां दशकों से 'मौताणा' के नाम पर रुपयों की वसूली का खेल चल रहा है। अगर मौताणा नहीं दिया तो फिर तो डराया धमकाया जाता है। हजारों लोग इस कुप्रथा के शिकार बने हैं, लेकिन हालात आज भी जस के तस हैं। आखिर क्या है यह 'मौताणा' की कुप्रथा जानिए इसके बारे में विस्तार से...
मौताणा का क्या है मतलब?
मौताणा एक ऐसी आदिवासी इलाकों की प्रथा है, जिसमें किसी शख्स की मौत के बदले दोषी से पैसे लिए जाते हैं। मौताणा मतलब 'मौत' पर 'आणा' यानी रुपए से है। इसमें प्रथा के मुताबिक अगर किसी शख्स की मौत पर उसके परिवार के लोग मौत के दोषी व्यक्ति से रकम (मुआवजे) की मांग करते हैं। साथ ही जब तक पैसे नहीं दिए जाते, तब तक लाश का अंतिम संस्कार आनी क्रिया-कर्म नहीं किया जाता। ऐसे में दोषी के साथ समझौता नहीं होने पर कई दिनों तक लाश घर पर पड़ी रहती है और शव की बेकद्री होती है।
कब की जाती है 'मौताणे' की मांग
बता दें कि राजस्थान के डूंगरपुर, बांसवाड़ा, उदयपुर, प्रतापगढ़ और पाली जिलों के आदिवासी क्षेत्र में इस प्रथा के नाम पर जमकर वसूली का खेल खेला जाता है। जब किसी शख्स की मौत सड़क दुर्घटना, कुएं में गिरने, आत्महत्या , झगड़ा, हत्या, हमले में या फिर ऐसा कारण जिसमें किसी को दोषी बनाया जा सकें। उससे मौताणे की मांग की जाती हैं। पीड़ित परिवार के लोग घर के सदस्य की मौत का शोक मनाने और अंतिम संस्कार की तैयारियां करने की बजाए आरोपी परिवार से मौत के मुआवजे का दबाव बनाते हैं।
पैसा नहीं मिलता तो फिर होता है चढ़ोतरा
वहीं मौताणा नहीं मिलने पर इसमें दोषी परिवार से बदला लेने की भी प्रथा है, जिसे चढ़ोतरा कहा जाता है। इसके तहत मौताणा नहीं देने वाले दोषी परिवार के घर पर चढ़ाई की जाती है और घर के लोगों से मारपीट और पथराव के साथ-साथ लूट को अंजाम दिया जाता है। यहां तक की घर को आग भी लगा दी जाती है। वहीं हिंसा बढ़ने पर बस पुलिस मामला शांत करवाने और समझौते तक ही सीमित रहती है।
मौताणे के लिए लोगों के घर तक बिके
वहीं कई दशकों से चली आ रही इस कुप्रथा पर अब सख्त कानून बनाने की जरूरत है, क्योंकि आदिवासियों को मौताणा से मुक्त करने के लिए प्रशासन और स्वयंसेवी संस्थाओं ने खूब प्रयास किए है, लेकिन कोई हल नहीं निकला। ऐसे में एक कड़ा कानून ही शव की बेकद्री और वसूली को रोक सकता है। यहां तक की कई परिवारों के मौताणे के चक्कर में घर तक बिक गए तो कई परिवार गांव को छोड़कर भी जा चुके है। अपने परिवार की जान बचाने के लिए लोगों को मौताणा देना पड़ता है।