राजस्थान का संकट: जब कलराज मिश्र ने दिया था यूपी राजभवन पर धरना
जयपुर- राजस्थान की सियासत में इन दिनों जयपुर में जिस तरह का घटनाक्रम चल रहा है, उस तरह का एक वाक्या ढाई दशक पहले यूपी की राजधानी लखनऊ में भी दोहराई जा चुकी है। सबसे बड़ी बात कि इन दोनों घटनाओं में एक किरदार समान है, भले ही आज उसके सामने हालात बदल चुके हैं। यहां बात हो रही है राजस्थान के राज्यपाल कलराज मिश्र की। पिछले दिनों जिस तरह से कांग्रेसी मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने राजस्थान के गवर्नर हाउस को राजनीति का अखाड़ा बना दिया था, वह स्थिति 25 साल पहले लखनऊ के राजभवन में भी आ चुकी है। तब राजस्थान के मौजूदा गवर्नर ने लखनऊ राजभवन में वही भूमिका निभाई थी, जो अभी जयपुर में सीएम गहलोत ने निभाई है। आप पूरी कहानी समझिए कि इतने वर्षो बाद कहानी कैसे अपने आपको फिर से दोहरा रही है।
Recommended Video
जब कलराज मिश्र ने दिया था यूपी राजभवन पर धरना
ऊपर की दो तस्वीरें 25 साल के सियासी फासले को बयां कर रही हैं। पहली तस्वीर जून, 1995 की लखनऊ स्थित उत्तर प्रदेश के राजभवन की है और दूसरी तस्वीर 24 जुलाई, 2020 की जयपुर स्थित राजस्थान के गवर्नर हाउस की है। पहले में कलराज मिश्र यूपी भाजपा अध्यक्ष होने के नाते उत्तर प्रदेश राजभवन में धरने की अगुवाई कर रहे हैं और दूसरी तस्वीर में वह गवर्नर बनकर राजभवन के भीतर बैठे हैं और बाहर राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की अगुवाई में कांग्रेस और उसके समर्थक विधायक उनके खिलाफ धरना-प्रदर्शन कर रहे हैं। 25 साल के लंबे अंतराल के बाद राजनीति के हालात कितने बदल गए हैं कि एक ही इंसान देश के दो राजभवनों के दो छोड़ पर खड़ा नजर आ रहा है। एक में वह तत्कालीन राज्यपाल पर सियासी दबाव बनाने की कोशिश कर रहे हैं, दूसरे में वह खुद सियासी दबाव के शिकार हो रहे हैं। अलबत्ता राज्यपाल के खिलाफ आवाज उठाने वाले दोनों किरदारों में महत्वपूर्ण अंतर जरूर है। एक में तत्कालीन सत्ताधारी दल के खिलाफ विपक्ष की ओर से आवाज उठाई जा रही है और दूसरे में सत्ताधारी दल ही राज्यपाल के खिलाफ सियासी बिगुल फूंक रहा है।
कांग्रेस लगा रही है राज्यपाल पर राजनीति का आरोप
दरअसल, आज कांग्रेस राजस्थान के राज्यपाल कलराज मिश्र पर राजभवन के राजनीतिकरण का आरोप लगा रही है। पार्टी की दलील है कि विधानसभा का सत्र बुलाना मुख्यमंत्री का अधिकार है, लेकिन राज्यपाल उसके इस अधिकार का हनन कर रहे हैं। क्योंकि, राज्यपाल ने सत्र के आह्वान की आवश्यकताओं को लेकर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से कुछ सवालात किए थे और आखिरकार कुछ शर्तों के साथ सत्र बुलाने की अनुमति दे भी चुके हैं। विरोध के तौर पर सोमवार को कांग्रेस ने राजस्थान को छोड़कर देशभर के कई राजभवनों के सामने धरना-प्रदर्शन की कोशिश भी की। जबकि पहले मुख्यमंत्री गहलोत यह भी धमकी दे चुके हैं कि राज्यपाल ने उनकी बात नहीं मानी तो जनता राजभवन घेर भी सकती है। हालांकि, शायद बाद में उन्हें एहसास हुआ कि मुख्यमंत्री होने के नाते राज्य में कानून-व्यवस्था और राज्यपाल की सुरक्षा उनकी संवैधानिक जिम्मेदारी है और शायद इसीलिए उन्होंने यहां राजभवन के आगे धरना-प्रदर्शन के कार्यक्रम से तोबा कर लिया।
लखनऊ गेस्ट हाउस कांड का विवाद क्या था
अब आपको बता दें कि यूपी में क्या हुआ था कि कलराज मिश्र ने गवर्नर हाउस में धरना दिया था। असल में तब वहां सपा और बसपा की सरकार थी और मुलायम सिंह यादव उस सरकार में मुख्यमंत्री हुआ करते थे। लेकिन, धीरे-धीरे मुलायम और मायावती में सियासी तलवारें खिंचने लगीं। आखिरकार 2 जून, 1995 को देश के सियासी इतिहास का वो काला दिन आया जब लखनऊ का कुख्यात गेस्ट हाउस कांड हो गया। उस दौरान समाजवादी पार्टी के नेताओं पर गेस्ट हाउस में मायावती के साथ अभद्रता के आरोप लगे। कहा गया कि अगर भाजपा के कुछ नेताओं ने दखल नहीं दिया होता तो बहुत कुछ अपमानजनक हो सकता था। खुद कलराज मिश्र भी कह चुके हैं कि मायावती को बचाने वालों में वो भी शामिल थे। उस घटना ने यूपी की राजनीति में नया मोड़ लिया और तत्कालीन बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष कलराज मिश्र की अगुवाई में पार्टी तत्कालीन राज्यपाल मोतीलाल वोरा का घेराव करने राजभवन परिसर पहुंच गई।
राजस्थान के सियासी ड्रामे का आखिरी स्क्रिप्ट कौन लिखेगा?
असल में राजस्थान के सियासी संकट में रोजाना नया मोड़ आ रहा है। पूर्व उपमुख्यमंत्री और तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष सचिन पायलट की अगुवाई में कांग्रेस के कुल 19 विधायकों की बगावत से यह संकट शुरू हुआ, जो पहले हाई कोर्ट पहुंचा, फिर बीच में ही सुप्रीम कोर्ट भी पहुंच गया। हाई कोर्ट से गहलोत गुट को फौरी तर पर झटका लगा तो स्पीकर ने सुप्रीम कोर्ट से अपने अधिकारों को लेकर लगाई गई याचिका वापस भी ले ली और पार्टी ने इस विषय को सियासी तौर पर लड़ने का फैसला किया। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के खेमे ने मीडिया में राज्यपाल पर आरोप लगाना शुरू किया कि वो सदन में बहुमत साबित करना चाहते है, लेकिन कलराज मिश्र उन्हें उनका वाजिब हक नहीं दे रहे। लेकिन, जब राज्यपाल ने आधिकारिक तौर पर गहलोत सरकार से कोरोना काल में विधानसभा सत्र बुलाने का एजेंडा पूछा तो उसमें बहुमत साबित करने की बात गोल कर दी गई और कोरोना जैसे मामलों पर चर्चा करने का राग अलापा गया। भारी सियासी विवाद के बाद राज्यपाल ने विधानसभा सत्र बुलाने की मांग तो मान ली है, लेकिन कोविड-19 के मद्देनजर सभी एहतियाती कदम उठाने और विश्वास प्रस्ताव पर वोटिंग की स्थिति में सुप्रीम कोर्ट की ओर से हाल में दिए गए सभी निर्देशों के पालन की शर्त लगा दी है। अब देखने वाली बात होगी कि राजस्थान के इस सियासी ड्रामे का आखिर फाइनल सीन क्या होता है और उसकी आखिरी स्क्रिप्ट लिखता कौन है?
इसे भी पढ़ें- कांग्रेस का दावा- पायलट गुट के 3 विधायक 48 घंटे में पहुंचे जाएंगे होटल