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अटल जी के 'दोस्त' जसवंत सिंह से अब तक नहीं बताई गई उनके मरने की बात

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बाड़मेर। प्रधानमंत्री व भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी के नहीं रहने को लेकर पूरा देश शोक में है, लेकिन उनके दशकों तक परमप्रिय सखा रहे भाजपा के दिग्गज नेता जसवंत सिंह इस बात से अनभिज्ञ हैं। उन्हें सदमे से बचाए रखने के लिए परिजनों ने अटल बिहारी के अंतिम संस्कार की बात अब तक छिपाए रखी है। जसवंत सिंह अटल बिहारी सरकार में विदेश मंत्री रहे थे और उस दौरान उन्हें वाजपेयी का हनुमान माना जाता था। जसवंत सिंह के पुत्र भाजपा विधायक मानवेंद्र सिंह के अनुसार उन्होंने अपने पिता को अब यह भनक तक नहीं लगने दी कि उनके अजीज अटलजी नहीं रहे।

one one tells former foreign minister jaswant singh about the death of atal bihari vajpayee

मानवेंद्र सिंह बाड़मेर के शिव विधानसभा क्षेत्र से विधायक हैं। उनके अनुसार उन्होंने अपने पिता अभी तक अटल बिहारी वाजपेयी की मौत की खबर से बेखबर हैं। उन्हें डर है कि अटल बिहारी वाजपेयी के नहीं रहने की बात सुनकर कहीं वे किसी सदमे के शिकार न हो जाएं। करीब तीन साल पहले घर में गिर जाने की वजह से उनके सिर में गहरी चोट लग गई थी। इसके बाद से उनकी हालत में खास सुधार नहीं आया है। वे अब न तो कुछ बोल पाते हैं और न ही कुछ महसूस कर पाते हैं। अटल जी के अंतिम समय की तरह ही उनकी भी हालत हो गई है। मानवेंद्र सिंह ने यह बात अपने ब्लॉग में भी लिखी है। मानवेंद्र ने लिखा कि विज्ञान के चमत्‍कार पर उन्‍हें इतना यकीन नहीं कि वह अपने पिता को अटल जी की मौत की जानकारी देने का जोखिम उठाएं। जसवंत सिंह काफी दिनों से बीमार चल रहे हैं। कुछ समय पहले ब्रेन हेमरेज की वजह से वे कोमा में चले गए थे। तब से डॉक्टरों की निगरानी में हैं।

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मानवेंद्र सिंह ने लिखा है कि वाजपेयी जी और मेरे पिता की दोस्ती 40 वर्षों से अधिक पुरानी है। मेरे पिता को अटल जी का हनुमान भी कहा जाता है। जिन्ना पर लिखी किताब पर विवाद के बाद मेरे पिता जी को भाजपा से निष्काषित कर दिया गया था। तब एक मात्र व्यक्ति अटल जी थे, जिनसे मेरे पिता ने अपना हाल बयां किया था। अपनी बीमार स्थिति के बावजूद, वाजपेयी जी ने उनकी पीड़ा और निष्कासन के दर्द को समझा था। मानवेंद्र सिंह ने अपने ब्लॉग में भी लिखा है कि उन्होंने (अटलजी) ने मेरे पिताजी को कुछ ऐसी बातें कही थीं, जिन्हें मैं सार्वजनिक नहीं कर सकता। एक सेहत की वजह से परेशानी में थे और दूसरा किताब पढ़े बिना लगाए गए बेतुके आरोपों से। दोनों ने उस समय अपने दर्द को एक-दूसरे से साझा किया। गौरतलब है कि जसवंत सिंह वर्ष 2014 में राजस्थान के बाड़मेर से लोकसभा चुनाव लड़ना चाहते थे, लेकिन विवाद व निष्कासित होने के कराण उन्हें पार्टी ने टिकट नहीं दिया।

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