आजादी के बाद गांव में जो काम कोई नहीं कर सका वो इस महिला ने कर दिखाया
Sikar News, सीकर। आधी आबादी चूल्हा-चौका ही नहीं बल्कि गांव की बागडोर भी अच्छे से संभाल सकती हैं। इन्हें अगर नेतृत्व करने का मौका मिले तो ये वो कर दिखा सकती है, जो कोई नहीं कर पाया। इस बात का सबसे बड़ा उदाहरण राजस्थान के सीकर जिले की ग्राम पंचायत झीगर छोटी (Jhigar Chhoti) की सरपंच किरण देवी है। यूं तो किरण देवी भी झीगर छोटी में अब तक चुने गए सरपंचों की तरह ही एक सामान्य सरपंच है, मगर इन्हें जो बात सबसे अलग कतार में खड़ी करती है, वो है इनकी सोच...। समझ...। और काम करने का अनूठा तरीका।
दरअसल, सरपंचों के चुनाव के बाद अक्सर गांव में नए और पुराने सरपंचों के बीच मनमुटाव देखने को मिलता है। नया सरपंच अपने किसी फैसले में पुराने की राय लेना मुनासिब नहीं समझता, मगर किरण देवी एक नहीं बल्कि गांव में अब तक जिंदा सभी पूर्व सरंपचों को एक जाजम पर बैठाकर और गांव के हर बड़े फैसले में उनकी राय लेती है। यही बात Sarpanch Kiran Devi को राजस्थान के सभी सरपंचों में सबसे अनूठा सरपंच बनाती है।
Jhigar Chhoti में सात पूर्व सरपंच हैं जिंदा
Rajasthan में पंचायती राज व्यवस्था नागौर जिले के बगदरी गांव से 2 अक्टूबर 1959 को लागू हुई है। इसके बाद झीगर छोटी में वर्ष 1960 में सरपंच का पहला चुनाव हुआ। अब तक एक दर्जन से अधिक सरपंच चुने जा चुके हैं, मगर इनमें से सात ही पूर्व सरपंच जिंदा है। इनमें सुखदेवाराम, मांगीलाल, ओमप्रकाश झीगर, कमला देवी, मोतीराम ओला, नथमल जैन व बीरबल सिंह वर्तमान में जिंदा है।
संभवतया राजस्थान की पहली ग्राम पंचायत
इन सरपंचों को एक साथ लेकर इनसे गांव के विकास व समस्याओं के समाधान पर चर्चा करते वर्तमान सरपंच किरण देवी (Sikar Sarpanch Kiran devi ) को अक्सर देखा जा सकता है। तभी तो यहां के लोग यह भी कहते हैं कि आजादी के बाद से गांव में जनप्रतिनिधियों की एकजुटता के लिए जो काम कोई नहीं कर सका वो किरण देवी ने कर दिखाया। दावा तो यह भी किया जा रहा है कि झीगर छोटी संभवतया राजस्थान का ऐसा पहला गांव होगा जहां वर्तमान व सभी पूर्व सरपंच मिलकर फैसला लेते हैं।
पढ़ी-लिखी सरपंच होने का फायदा
साढ़े तीन हजार आबादी वाली ग्राम पंचायत झीगर छोटी की सरपंच 32 वर्षीय किरण देवी एमए-बीएड की हुई है। शायद यही वजह है पढ़ी-लिखी सरपंच होने के कारण किरण देवी की सोच अन्य जनप्रतिनिधियों की तरह चुनावी रंजिश रखने वाली नहीं है। गांव के मनोज सेवदा, मनोज जैन, महिपाल छब्बरवाल, दिनेश सेवदा आदि लोगों को इस बात की खुशी है कि उनके गांव की सरपंच पुराने सरपंचों के अनुभव से गांव के हित में फैसले लेती है।