Laila Majnu Mazar : राजस्थान के गांव बिंजौर में हर दिन वैलेंटाइन डे मनाते हैं प्रेमी जोड़े
श्रीगंगानगर। 7 फरवरी को रोज डे के साथ ही वैलेंटाइन वीक की शुरुआत हो चुकी है। 14 फरवरी को वैलेंटाइन डे तक यह पूरा हफ्ता प्यार करने वालों के नाम रहेगा। इस बीच जानिए राजस्थान के गांव बिंजौर के बारे में जहां सालभर मोहब्बत का मेला लगता है। यहां बनी लैला मजूनं की मजार पर पहुंचकर प्रेमी जोड़े हर दिन वैलेंटाइन डे मनाते हैं।
सरहद के पास है लैला मजनूं की मजार
लैला मजनूं की मजार भारत-पाकिस्तान की सीमा पर राजस्थान के श्रीगंगानगर जिले के अनूपगढ़ के तहसील के गांव बिंजौर में स्थित है। सरहद की कंटीली तारों से महज 10 किलोमीटर दूर बनी लैला मजनूं की मजार मोहब्बत के साथ-साथ आपसी सौहार्द की भी मिसाल है। यहां पर सभी धर्म और जाति के लोग पहुंचते हैं। मेला कमेटी के सदस्यों और अन्य बुजुर्गों की मानें तो तारबंदी से पूर्व पाकिस्तान से भी बड़ी संख्या में लोग यहां आते थे। वर्ष 1971 के बाद मेले में पाकिस्तान से लोगों का आना लगभग बंद हो गया।
मजार पर 15 जून में लगता है मेला
हर साल 15 जून को लैला मजनूं मजार का सालाना मेला लगता है, जिसमें देशभर से हजारों प्रेमी जोड़े और नवविवाहित दम्पति शिरकत करते हैं। मजार पर नमक, झाड़ू, नारियल, चद्दर व प्रसाद आदि चढ़ाकर एक दूसरे की लंबी उम्र की कामना करते हैं। बिंजौर राजस्थान का संभवतया इकलौता ऐसा गांव है, जो अपने बूते 68 साल से यह मेला मना रहा है। यहां आने वाले प्रेमी जोड़ों के रहने, खाने-पीने की सारी व्यवस्थाएं भी यहां के लोग ही अपने स्तर पर करते हैं। चढ़ावे से जो रुपया इकट्ठा होता है, उसे इसी मजार पर ही खर्च किया जाता है।
बीएसएफ की चौकी का नाम लैला मजनूं
बता दें कि भारत और पाकिस्तान की 1070 किलोमीटर अंतरराष्ट्रीय सीमा में से 210 किलोमीटर श्रीगंगानगर जिले से लगती है। लैला मजनूं की मजार सीमा से सटी हुई है। श्रीगंगानगर सीमावर्ती जिला होने के कारण यहां बीएसएफ की तैनाती है। खास बात यह है कि लैला मजनूं की मजार के सम्मान में बीएसएफ ने यहां की सीमा चौकी का नाम ही मजनूं रखा हुआ है। पहले इसका नाम लैला-मजनूं था।
बिंजौर में क्यों बनी लैला मजनूं की मजार
राजस्थान के गांव बिंजौर में लैला मजनूं की मजार क्यों बनी? दोनों का इस गांव से क्या संबंध था? आखिर लैला-मजनूं बिंजौर आए क्यों? जैसे कई सवालों के जवाब किसी के पास नहीं हैं। सबके अलग-अलग मत हैं, मगर प्रचलित धारणा के अनुसार लैला-मजनूं 11 वीं शताब्दी में पैदा हुए थे। मदरसे में तालीम के दौरान ही मजनूं को लैला नाम की एक लड़की से इश्क हो गया। दोनों का प्यार परवान चढ़ा और मजनूं ने लैला के परिवार वालों से उसका हाथ मांगा, लेकिन उन्होंने इंकार कर दिया। फिर लैला-मजनूं घर से भागकर पाकिस्तान के सिंध प्रांत से करीब 690 किलोमीटर दूर श्रीगंगानगर के अनूपगढ़ के बिंजौर गांव पहुंचे।
मौत, हत्या, आत्महत्या की भी कहानी
लैला के भाई भी उन्हें मारने के लिए पीछे पीछे गांव बिंजौर पहुंच गए। बिंजौर में उस वक्त मिट्टी के बड़े बड़े टीले हुआ करते थे, जिनमें दोनों ने अपनी जिंदगी के आखिरी लम्हे गुजारे और प्यास से तड़प-तड़प कर जान दे दी। उसी जगह दोनों को पास-पास दफना दिया गया था। विभिन्न इतिहासकारों की किताबों के अनुसार एक कहानी यह भी है कि लैला के भाइयों ने मजनूं की अनूपगढ़ में आकर हत्या कर दी थी। तब दोनों एक पेड़ के नीचे बैठे थे। इससे पहले कि भाई लैला को पकड़ते, उसने भी उसी जगह पर आत्महत्या कर ली थी।
कैसे पहुंचे लैला मजनूं की मजार तक
यूं तो लैला मजनू मजार पर सालभर प्रेमी जोड़े उमड़ते हैं, मगर अक्टूबर से फरवरी तक का मौसम अच्छा रहता है। इस दौरान यहां पर तापमान 10 से 23 डिग्री सेल्सियस के बीच रहता है। मार्च से मई के महीनों में तापमान 32 से 40 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच जाता है। गर्मियों के मौसम में आपको यहां की यात्रा करने से बचना चाहिए। अगर लैला मजनूं के सालाना मेले में शामिल होना चाहते हो तो जून में आना पड़ेगा।
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