मिसाल: सावित्री की जान बचाने के लिए, मोहम्मद अशरफ खान ने तोड़ा रोजा
नागौर। धर्म की आड़ लेकर मानवता को कलंकित करने वालों के सामने लाडनूँ के मोहम्मद अशरफ ने मिसाल पेश की है। चूरू जिले के सुजानगढ़ में प्रसव के दौरान जीवन की जंग लड़ रही एक प्रसूता सावित्री देवी को खून देने में जब रोजा आड़े आया तो मोहम्मद अशरफ ने खुशी खुशी रोजा तोड़ा और महिला की जान बचा ली।
मोहम्मद अशरफ खान ,नागौर जिले के लाडनूँ के जावा बास निवासी जमाल खान के पुत्र हैं और पेशे से पत्रकार हैं। रमजान के इस पाक महीने में मोहम्मद अशरफ ने इंसानियत और भाईचारे की एक अनूठी मिसाल पेश की है। उन्होंने ये साबित करके दिखा दिया कि इंसानियत से बढ़कर कोई धर्म नहीं होता है।
मोहम्मद अशरफ ने बताया कि हर रोज की तरह शनिवार सुबह उन्होंने व्हाट्सएप्प चेक किया। व्हाट्सएप्प पर एक ग्रुप में मोहम्मद आवेश की एक पोस्ट में लिखा था कि सुजानगढ़ के रहने वाले सांवरमल जाट के भाई की पत्नी सावित्री देवी का ब्लड ग्रुप बी नेगेटिव है, उसको प्रसव के दौरान रक्त की जरूरत है। इस ग्रुप का खून आस-पास के ब्लड बैंक में भी नही मिल रहा है।
मोहम्मद अशरफ का ब्लड ग्रुप बी नेगेटिव ही है। वे आम तौर पर रक्तदान करते रहते हैं। सोशल मीडिया पर मैसेज पढ़कर उन्होंने दिए गए नम्बर पर सम्पर्क किया और ब्लड देने की इच्छा जताई। इसके बाद वे लाडनूं से सुजानगढ़ पहुँचे, जहां अस्पताल के डॉक्टरों ने बताया कि खून देने से पहले उन्हें कुछ खाना पड़ेगा। तभी उनका खून लिया जा सकेगा। मतलब उन्हें रोजा तोड़कर नाश्ता करना होगा।
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मोहम्मद अशरफ ने इस मौके पर एक पल भी ना सोचा और इंसानियत की खातिर रोजा तोड़ते हुए नाश्ता किया और खून देकर सावित्री देवी की जान बचा ली। अशरफ खान का मानव सेवा का यह भाव उन लोगों के लिए सबसे बड़ा सबक है, जो मजहब के नाम पर मानवता को पीछे धकेल देना चाहते हैं।
लाडनूँ ,सुजानगढ़ क्षेत्र में सभी वर्गों के लोग अशरफ की सराहना कर रहे हैं। लोगों का कहना है कि रक्तदान सबसे बड़ा दान होता है। अशरफ से और लोगों को भी सीख लेनी चाहिए। अशरफ खान ने बताया कि सबसे बड़ा मानव धर्म होता है। यदि मेरे एक रोजा तोड़ने से एक व्यक्ति की जान बच सकती है तो यह मेरा सौभाग्य है। यही मेरे लिए सबसे बड़ा पुण्य होगा।
मानव सेवा का यह सौभाग्य हर किसी को प्राप्त नहीं होता। आज पूरे इलाके में इस अनोखे भाईचारे की चर्चा हो रही है। जबकि सावित्री देवी की जान बचाने वाले अशरफ खान ने इसे नेकी का काम बताया और इसे किसी एहसान का दर्जा देने से साफ इंकार कर दिया।