क्या चूरू में Rahul Kaswan परिवार की 33 साल पुरानी की सांसदी पर Devendra jhajharia लगाएंगे ब्रेक?
Rahul Kaswan vs Devendra jhajharia lok sabha election 2024 Churu: राजस्थान की चूरू संसदीय सीट पर लोकसभा चुनाव 2024 में भाजपा ने पैरालंपिक खिलाड़ी देवेंद्र झाझड़िया को टिकट दिया है जबकि मौजूदा सांसद राहुल कस्वां भाजपा छोड़कर कांग्रेस की टिकट पर मैदान में हैं।
चार बार पिता रामसिंह कस्वां और दो बार खुद राहुल कस्वां चूरू से सांसद रहे हैं। कस्वां परिवार की 33 साल पुरानी सांसदी लोकसभा चुनाव 2024 में बच पाना मुश्किल है, क्योंकि भाजपा के दिग्गज नेता राजेंद्र राठौड़ व राहुल कस्वां की सियासी लड़ाई में कस्वां का टिकट तक कट गया।
लोकसभा चुनाव 2024 में चूरू सीट से टिकट कटने पर राहुल कस्वां ने बगावत कर दी और भाजपा छोड़कर कांग्रेस ज्वाइन कर ली। उधर, भाजपा ने साफ छवि और पीएम मोदी के करीबी खिलाड़ियों में से देवेंद्र झाझड़िया को टिकट देकर चूरू सीट पर राहुल कस्वां की लगातार जीत पर ब्रेक से लगा दिए हैं।
CHuru News in Hindi, चूरू। विरासत में मिली राजनीति को हर कोई नेता पुत्र संभाल नहीं पाता है, मगर इस मामले में राजस्थान के चूरू सांसद राहुल कस्वां ( Rahul Kaswan MP churu ) की कहानी सबसे जुदा है। इन्होंने न केवल विरासत को बखूबी संभाला बल्कि उसे आगे भी बढ़ाया है। जनता के दिलों में जगह बनाने और क्षेत्र का विकास कराने का हुनर कोई इनसे सीखें।
वन इंडिया की 'जानिए अपना सांसद' सीरीज में आज बात करते हैं उस नेता की जो राजस्थान के युवा सांसदों में से एक हैं और साल दर साल जनता के बीच लोकप्रिय होते जा रहे हैं। शायद यही वजह है कि लोकसभा चुनाव 2019 में राहुल कस्वां खुद का रिकॉर्ड तोड़कर भारी मतों से जीते हैं। ये ऐसे हैं जो कभी चूरू में लोहिया कॉलेज के बाहर जीप में रात गुजार चुके हैं तो कभी ई-रिक्शा में बैठकर दिल्ली घूमे हैं।
राजस्थान विधानसभा चुनाव 2023 में चूरू जिले की तारानगर सीट से कांग्रेस के मौजूदा विधायक नरेंद्र बुडानिया से हराने के बाद भाजपा के दिग्गज नेता राजेंद्र राठौड़ ने अपनी हार के लिए जयचंदों को जिम्मेदार बताया। राठौड़ के इस बयान को चूरू से भाजपा सांसद राहुल कस्वां से जोड़कर भी देखा जा रहा है।
चूरू सांसद राहुल कस्वां की बायोग्राफी
राहुल कस्वां का जन्म 20 जनवरी 1977 को चूरू जिले के सादुलपुर में हुआ। इनका पैतृक गांव कालरी है। प्रारम्भिक शिक्षा बिड़ला पब्लिक स्कूल पिलानी में हुई, जहां हॉस्टल में रहकर इन्होंने 1996 में 12वीं तक पढाई पूरी की। बिड़ला पिलानी में सहपाठी आज भी इनके सर्म्पक में हैं।
साल 1999 में राहुल ने दिल्ली विश्वविद्यालय से वाणिज्य संकाय से स्नातक किया। साल 2001 में राहुल कस्वां ने दिल्ली के नेशनल इंस्टीटयूट आफ सेल्स से मैनेजमेन्ट में पोस्ट ग्रेजुएट डिप्लोमा किया। वर्ष 2000 में राहुल कस्वां का विवाह जयपुर के व्यवसायी कुलदीप धनखड़ की पुत्री नीलू के साथ हुआ। पत्नी नीलू कस्वां गुडगांव में निजी कम्पनी में जॉब करती हैं। राहुल कस्वां के दो सन्तान है। रोनित और रेवान्त। बड़ा बेटा रोनित 14 साल का है।
लजवाब खाना बनाते हैं राहुल कस्वां
राहुल कस्वां को कूकिंग का शौक है। जब भी घर पर मौका मिलता है तो ये अपने परिवार और दोस्तों को अपने हाथों से खाना बनाकर परोसते हैं। खेलों में बास्केटबॉल और मार्निंग वॉक पसन्द है। राजनीति में आने से पहले राहुल कस्वां गांव रणधीसर में माइनिंग व्यवसायी थे। यह कार्य इन्होंने साल 2002 में शुरू किया था। अपने पिता रामसिंह कस्वां की प्रेरणा से राजनीति में आए।
इन देशों में किया भारत का प्रतिनिधित्व
पहली बार सांसद बनने के बाद राहुल कस्वां ने जर्मन, नेपाल, श्रीलंका, सिंगापुर आदि देशों में इन्ही देशों के खर्चे पर स्कील इण्डिया, हैल्थ और डवलपमेन्ट पर भारत का प्रतिनिधित्व किया।
लोकसभा चुनाव 2019 में राहुल कस्वां का प्रदर्शन
राहुल कस्वां ने लोकसभा चुनाव 2019 में RAFIQUE MANDELIA Indian National Congress ने 458597 और RAHUL KASWAN Bharatiya Janata Party ने 792999 वोट प्राप्त किए। कस्वां ने 3 लाख 34 हजार 402 वोटों जीत दर्ज की।
लोकसभा
चुनाव
2014
में
बीजेपी
ने
अपने
3
बार
से
लगातार
सांसद
रामसिंह
कास्वां
का
टिकट
काटकर
उनके
बेटे
राहुल
कास्वां
को
टिकट
दिया
था।
बीजेपी
के
टिकट
पर
राहुल
कास्वां
ने
बहुजन
समाज
पार्टी
के
उम्मीदवार
अभिनेष
महर्षि
को
2
लाख
94
हजार
739
मतों
के
भारी
अंतर
से
हराया।
दादा, पिता व मां लम्बे समय तक राजनीति में सक्रिय
चूरू जिले के सादुलपुर/राजगढ़ कस्बा निवासी कस्वां परिवार ने साल 1977 में राजनीति में कदम रखा था। राहुल कस्वां के दादा दीपचन्द कस्वां ने सादुलपुर विधानसभा सीट से पहला चुनाव बतौर निर्दलीय उम्मीदवार लड़ा, लेकिन निर्दलीय प्रत्याशी जयनारायण से हार गए। इसी सीट से 1980 में निर्दलीय चुनाव लड़ते हुए निर्दलीय प्रत्याशी नन्दलाल को हराया। वर्ष 1985 के विधानसभा चुनावों में दीपचन्द कस्वां हार गए। फिर साल 1990 में दीपचन्द के पुत्र रामसिंह कस्वां ने सादुलपुर सीट से विधानसभा चुनाव लड़ा, लेकिन ये भी हार गए।
जब 168 वोटों से जीते रामसिंह कस्वां
वर्ष 1990 के विधानसभा चुनावों के बाद रामसिंह कस्वां ने 1991 के लोकसभा चुनावों में बीजेपी से अपना भाग्य अजमाया और कांग्रेस के जयसिंह राठौड़ को महज 168 वोटों से हराया। वर्ष 1993 के विधानसभा चुनाव में रामसिंह कस्वां ने अपनी धर्मपत्नी कमला कस्वां को बीजेपी की टिकट से चुनाव मैदान में उतारा, लेकिन वे पहला ही चुनाव कांग्रेस के इन्द्रसिंह से 4773 वोटों से हार गईं। लोकसभा चुनाव 1996 में भाजपा ने फिर रामसिंह कस्वां पर दांव लगाया, लेकिन तारानगर के वर्तमान विधायक कांग्रेस के नरेन्द्र बुडानिया के सामने रामसिंह कस्वां को हार का सामना करना पड़ा।
2008 में मां कमला कस्वां बनीं विधायक
राजस्थान विधानसभा चुनाव 1998 में रामसिंह कस्वां ने भाजपा से एक बार फिर भाग्य आजमाया और इस बार की जीत के बाद कस्वां परिवार की जीत का सिलसिला जारी रहा। लोकसभा चुनाव 1999 में रामसिंह कस्वां एक बार फिर भाजपा से टिकट लेकर चुनाव मैदान में उतरे। इस बार उन्होंने कांग्रेस के नरेन्द्र बुडानिया को शिकस्त दी। इस बीच राहुल के पिता रामसिंह कस्वां लगातार 2014 तक सांसद चुने जाते रहे। साल 2003 का विधानसभा चुनाव राहुल कस्वां की मां कमला कस्वां ने भाजपा से लड़ा, लेकिन हार गई। इसके बाद 2008 में फिर भाजपा से चुनाव लड़ा और इस बार सादुलपुर विधायक बनीं।
24 घंटे तक हुई थी वोटों की गिनती
सांसद राहुल कस्वां ने अपनी जिन्दगी का अब तक का यादगार और रोचक पल पिता रामसिंह कस्वां की पहली जीत को बताया। पूर्व सांसद रामसिंह कस्वां ने अपनी पहली जीत 168 वोटो से दर्ज करवायी थी। उस वक्त ईवीएम नहीं थी और मतपत्रों की गिनती हुआ करती थी। उस वक्त चूरू के राजकीय लोहिया कॉलेज में 24 घण्टे मतगणना चली और राहुल कस्वां को अपनी कमांडर जीप में कॉलेज के आगे रात गुजरानी पड़ी थी। सुबह 6 बजे रिजल्ट आया था। पिता की जीत ने सारी थकान उतार दी थी।
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