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Kargil Vijay Diwas : पढ़िए जंग के मैदान से 23 साल पहले लिखी गईं फौजियों की वो आखिरी चिट्ठियां...

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जयपुर। 26 जुलाई को आज पूरा देश कारगिल विजय दिवस मना रहा है। 23 साल पहले जम्मू कश्मीर की वादियों में घुसपैठ कर​ हिन्दुस्तान की सरजमीं पर कब्जा करने के मंसूबों से आए पाकिस्तान के सैनिकों को मुंहतोड़ जवाब देते हुए भारत के 527 जवान शहीद हुए थे। इनमें राजस्थान के शेखावाटी अंचल के सीकर-चूरू जिले के सात-सात और झुंझुनूं जिले के 22 जांबाज भी शामिल थे। मई और जुलाई 1999 के बीच करीब दो माह चले कारगिल युद्ध के मैदान से शेखावाटी के जवानों ने अपने घरों पर खत लिखे थे, जो उनके आखिरी खत बन गए।

Rajasthan Soldiers in kargil war 1999

वन इंडिया की 'कारगिल में राजस्थान के फौजी' सीरीज में पढ़िए वीर सपूतों की वो चिट्ठियां, जो उन्होंने 23 साल पहले​ लिखी थीं। वो भले ही धुंधली हो चुकी हैं, मगर आज भी सैनिकों के जज्बात और हौसलों को बयां कर रही हैं। शहीदों के परिजनों ने आज भी इन चिटि्ठयों को आखिरी निशानी के तौर पर अपने सीने से लगा रखा है। चिटि्ठयों को पढ़कर हम और आप हमारे लिए अपना जीवन कुर्बान करने वाले सैनिकों को और भी करीब से जान पाएंगे। पढ़िए आखिरी खत में लिखे सैनिकों के जज्बात...।

शहादत के 6 दिन पहले नरेश ने लिखा था-'1971 में पिताजी शहीद हुए थे, मैं भी पीछे नहीं हटूंगा'

शहादत के 6 दिन पहले नरेश ने लिखा था-'1971 में पिताजी शहीद हुए थे, मैं भी पीछे नहीं हटूंगा'

आदरणीय दादाजी, सादर चरण स्पर्श
मैं अपने स्थान पर भगवान की दया से राजी खुशी से हूं और आशा करता हूं कि आप भी अपने स्थान पर भगवान की दया से राजी खुशी से होंगे। आगे समाचार यह है कि आपका डाला हुआ पत्र मुझे मिला, जिसे पढ़कर सभी के बारे समाचार मालूम हुए। वर्षा हुई या नहीं पत्र में लिखना और जमीन किसी को मत देना। माताजी गर्मी तो अच्छी पड़ रही होगी। सेहत का ध्यान रखना। आप सभी को मालूम है कि लड़ाई चल रही है। आप दिल मत तोड़ना। जिस प्रकार पिताजी ने 1971 में भारत और पाकिस्तान की लड़ाई में पीछे मुड़कर नहीं देखा और मातृभूमि के लिए शहीद हो गए। उसी प्रकार मैं भी पीछे नहीं हटूंगा। ​आप सब को गर्व होना चाहिए कि आपक का बेटा मातृभूमि के लिए लड़ाई लड़ रहा है। जब लड़ाई खत्म हो जाएगी तब छुटटी लेकर आऊंगा। आप चिंता मत करना आपको पत्र मिलते ही जल्दी पत्र डालना। भूल मत करना, जिससे मेरा मन लगा रहे। माताजी और दादाजी को चरण स्पर्श। भाई राजेश, सुरेश राजकुमार को राम-राम, दीपक व मीनू को प्यार। अच्छा अब पत्र बंद करता हूं। पत्र में कोई गलती हो तो माफ करना। अच्छा जयहिंद।
-आपका अपना बेटा नेरश, (यह पत्र 17 जाट रे​जीमेंट में तैनात नरेश कुमार ने 1 जुलाई 1999 को अपने परिवार को लिखा। इसके बाद वे 7 जुलाई को शहीद हो गए।)

जंग के मैदान में थे शीशराम, घरवालों को लिखा 'मेरी तरफ से किसी तरह की चिंता मत कीजिएगा'

जंग के मैदान में थे शीशराम, घरवालों को लिखा 'मेरी तरफ से किसी तरह की चिंता मत कीजिएगा'

आदरणीय माताजी, पिताजी को चरण स्पर्श
मैं अपने स्थान पर राजी खुशी से हूं और आप भी अपने स्थान पर पूरे परिवार के साथ राजी खुशी होंगे। वी​रसिंह मेरे पास पहुंच गया है। बता रहा था कि घर पर चिंता बहुत कर रहे हैं। इसलिए मैं यह दूसरा खत लिख रहा हूं। मेरी तरफ से किसी प्रकार की चिंता नहीं करनी है। मैं अपनी जगह पर अच्छी प्रकार से हूं। मेरी तरफ से पूरे परिवार के बड़ों को चरण स्पर्श तथा छोटों को प्यार भरा नमस्कार।
-आपका शीशराम (यह पत्र शीशराम ने 24 जून 1999 को लिखा। इसके बाद वे 6 जुलाई को शहीद हो गए।)

सीताराम ने आखिरी खत में भाई को लिखा था 'माताजी-पिताजी का ध्यान रखना'

सीताराम ने आखिरी खत में भाई को लिखा था 'माताजी-पिताजी का ध्यान रखना'

प्रिय राजू, खुश रहो
मैं अपने स्थान पर कुशल रहते हुए भगवान से समस्त परिवार की कुशलता की प्रार्थना करता हूं। किसी प्रकार की कोई परेशानी हो तो पत्र में आवश्यक रूप से लिखना। पत्र का जवाब जल्दी देना भूल मत करना। सबका ध्यान रखना। माताजी-पिताजी, ताऊजी-ताईजी को तथा चाचाजी-चाचीजी को सादर चरण स्पर्श। सभी छोटों को प्यार।
-सीताराम, पलसाना सीकर (यह पत्र सीताराम ने 29 अप्रैल 1999 को लिखा था। इसके 1 माह 20 दिन बाद वे शहीद हो गए।)

शहीद शीशराम ने लिखा-'बेटे विक्रम के लिए घड़ी लाऊंगा'

शहीद शीशराम ने लिखा-'बेटे विक्रम के लिए घड़ी लाऊंगा'

आदरणीय माताजी-पिताजी व चाचाजी-चाचीजी चरण स्पर्श
मैं मेरे स्थान पर राजी खुशी से हूं। आशा करता हूं कि आप भी अपने स्थान पर कुशल मंगल होंगे। काफी दिनों बाद आपका पहला पत्र मिला। मैंने तीन हजार रुपए भेज दिए हैं। वह सुरेन्द्र सिंह कड़वासरा के साथ भेजे हैं। सुरेन्द्र की बहन की शादी के चलते वो शेर सिंह का पैसे दे जाएगा। वो आप तक पहुंचा देगा। बाद में छुट्‌टी आऊंंगा। डॉ. सत्यवीर को 200 रुपए दे देना। बेटे विक्रम को स्कूल भेजते रहना। उसको बोलना आऊंगा तब उसके लिए घड़ी लेकर आऊंगा। मेरी तरफ से किसी प्रकार की चिंता मत करना। दादाजी को चरण स्पर्श बताना।
-शीशराम निमड़ (यह पत्र 10 जून 1999 को लिखा। 6 जुलाई 1999 को वे शहीद हो गए।)

अगर मुझे आने का मौका न मिले तो भी बेटी अनिता की शादी अच्छे से करना-सुमेरसिंह

अगर मुझे आने का मौका न मिले तो भी बेटी अनिता की शादी अच्छे से करना-सुमेरसिंह

पूज्य माताजी-पिताजी का चरण स्पर्श
मैं मेरी जगह से कुशल रहते हुए आपकी कुशलता की कामना करता हूं। हिम्मत का लिखा पत्र मिला पढ़कर अच्छा लगा। बेटी अनिता की शादी का सावा निकलवाकर भेज देना। जनवरी से लेकर मार्च के महीने तक मेरा आने का मौका ना भी मिले, शादी अच्छे तरीके से करना। किसी को कहने का मौका ना मिले। मां का ख्याल रखना।
-सुमेर सिंह, चूरू (यह पत्र 1 जून 1999 को लिखा। परिजनों को पत्र मिलने के 12 दिन बाद ही सुमेर सिंह शहीद हो गए)

दयानंद ने पत्नी को अंतिम खत में लिखा था इसी माह 15 तारीख को छुट्‌टी पर आऊंगा

दयानंद ने पत्नी को अंतिम खत में लिखा था इसी माह 15 तारीख को छुट्‌टी पर आऊंगा

प्रिय बिमला,
आदरणीय माताजी-पिताजी को चरण स्पर्श। मैं मेरे स्थान पर ईश्वर की कृपा से कुशल-मंगल के साथ रहते हुए आपके उज्जवल भविष्य कि कामनाएं करता हूं। आपका लिखा हुआ पत्र मिला, जिसे पढ़कर सारे समाचार अवगत किए। इस महीने की 15 तारीख से छुट्‌टी आऊंगा। तेजपाल काे स्कूल भेजते रहना। अपना ध्यान रखना।
- दयाचंद कोलीड़ा सीकर ने (1 जून को यह पत्र लिखा था। 15 जून 1999 को शहीद हो गए।)

कारगिल वियज दिवस पर पढ़िए वीर सपूतों की कहानी

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English summary
Kargil War Hero's Last Letter written to Their families in Shekhawati
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