Digendra Singh : 'Kargil में 9 साथी शहीद हो गए थे, मैं अकेला लड़ता रहा, पाक मेजर खान का सिर काटा'
सीकर। कारगिल युद्ध 1999 को आज 26 जुलाई 2023 को 24 साल पूरे हो गए। देशभर में कारगिल विजय दिवस मनाया जा रहा है। 60 दिन चली कारगिल की जंग में भारतीय सेना को सबसे पहली जीत 13 जून 1999 की सुबह द्रास सेक्टर की तोलोलिंग पहाड़ी पर मिली थी। जीत के हीरो थे 2 राज रिफ बटालियन के वो 10 कमांडो जिन्होंने दुश्मन की छाती पर चढ़कर वार किया। उन 10 कमांडो में से 9 शहीद हो गए थे। इकलौता जिंदा बचे कमांडो दिगेंद्र कुमार सिंह ने वन इंडिया हिंदी से खास बातचीत में बयां कि कारगिल में भारत की पहली जीत की पूरी कहानी। महावीर चक्र विजेता दिगेंद्र कुमार सिंह मूलरूप से राजस्थान के सीकर जिले के नीमकाथाना के रहने वाले हैं। आइए जानते हैं कारगिल विजय की पूरी कहानी खुद दिगेंद्र कुमार सिंह की जुबानी....
ऐसी फतह की थी तोलोलिंग की पहाड़ी
वर्ष 1999 में मई का महीना। जगह थी जम्मू कश्मीर के द्रास सेक्टर की तोलोलिंग पहाड़ी की बर्फीली चोटियां। इन पर पाकिस्तानी सैनिक घुसपैठ कर कब्जा किए बैठे थे। तोलोलिंग को मुक्त करवाने में भारतीय फौज की तीन यूनिट फेल हो गई थीं। तीनों यूनिट के 68 सैनिक शहीद हो चुके थे। ऐसे में भारतीय सेना की सबसे बेहतरीन बटालियन 2 राज रिफ को तोलोलिंग पहाड़ी मुक्त करवाने की जिम्मेदारी सौंपने का फैसला लिया गया।
बेस्ट सेक्शन कमाडो का चयन
211 किलोमीटर दूर कुपवाड़ा में तैनात 2 राज रिफ बटालियन 1 जून 1999 को द्रास सेक्टर पहुंची। जवानों ने दो दिन तक इलाके की रैकी की। 3 जून की सुबह करीब साढ़े आठ बजे द्रास सेक्टर के गुमरी में सेना प्रमुख जनरल वीपी मलिक का दरबार (सैनिकों का सम्मेलन) लगा, जिनमें सभी सेक्शन कमांडरों के एक तरफ बैठाया और बाकी जवानों को रेस्ट करने को कहा गया। फिर उन्होंने कहा कि मुझे ऐसा सेक्शन कमांडर चाहिए जो तोलोलिंग पहाड़ी पर जीत का तिरंगा लगा सके। सभी सेक्शन कमांडरों ने तोलोलिंग पहाड़ी पर हमला कर उसे पाकिस्तानी फौज के कब्जे से मुक्त करवाने की अपना-अपना प्लान बताया। उनको किसी कमांडर ने पसंद नहीं आया। हर प्लान को वे नो-नो करते रहे।
जय हिंद सर, बेस्ट कमांडो ऑफ इंडियन आर्मी नायक दिगेंद्र कुमार सिंह
अंत में सेनाध्यक्ष ने कहा कि कोई पुख्ता प्लान बताओ जिसके सक्सेस होने की उम्मीद सबसे ज्यादा हो। तब सेक्शन कमांडरों के बीच बैठा मैं (दिगेन्द्र कुमार सिंह) खड़ा हुआ। बोला-जय हिंद सर, बेस्ट कमांडो ऑफ इंडियन आर्मी नायक दिगेंद्र कुमार सिंह उर्फ कोबरा। तब मेरी उम्र 30 साल थी। आर्मी चीफ मलिक साहब मेरा नाम सुनते ही मुझे पहचान गए। बोले-हां बेटा कोबरा। तुम वो ही हो ना जिसने 13 मई को 4 उग्रवादियों को मार गिराया था। श्रीलंका में भी अच्छा काम किया था और हजरतबल में एक गोली से 144 उग्रवादियों को सरेंडर करवाया था। बहुत सुना है तुम्हारे बारे में।
दिगेंद्र कुमार सिंह के साथ थे ये कमांडो
मैंने अपना प्लान बताया। सर, दुश्मन तोलोलिंग पहाड़ी की चोटी पर बैठा है। हमारी तीन यूनिट ने सामने हमला किया। तीनों ही कामयाब नहीं हुईं। मेरा प्लान दुश्मन को उसी की भाषा में जवाब देने का है। मतलब पहाड़ी के पीछे की तरफ से चढ़ाई करके उन पर हमला करना। आर्मी चीफ को मेरा प्लान सबसे सटीक लगा। उन्होंने 2 राज रिफ बटालियन के सीओ कमांडर कर्नल रविन्द्र नाथ को दिया कि दिगेन्द्र सिंह के प्लान पर काम किया जाए। मेरे समेत 2 राज रिफ सबसे खतरनाक 10 कमांडो मेजर विवेक गुप्ता देहरादून, सुबेदार भंवरलाल भाकर नागौर, सुमेर सिंह राठौड़ खारा दूधवा चूरू, सीएचएम यशबीर सिंह मेरठ, हवलदार सुल्तान सिंह भिंड मुरैना, नायक सुरेंद्र बुलंदशहर, नायक चमन मेरठ, लांस नायक बच्चन सिंह मुज्जफनगर, राइफलमैन जसवीर सिंह की एक टीम बनाई गई।
14 घंटे की मशक्कत के बाद बांधा रस्सा
हम सभी कमांडो जंग के मैदान बने द्रास सेक्टर में दुश्मन से लड़ते-लड़ते सप्ताहभर बाद तोलोलिंग पहाड़ी की पीछे की तरफ पहुंचे। नौ जून को हम 10 कमांडो तोलोलिंग की पहाड़ी पर बनी पाकिस्तानी चैक पोस्ट नीचे थे। पोस्ट हमसे 90 मीटर दूर थी। हमने नीचे सबसे पहले फायर बेस बनाया। फिर हमने तोलोलिंग की दुर्गम पहाड़ी में क्लिप ठोक-ठोककर 14 घंटे की मशक्कत के बाद तोलोलिंग की चोटी तक रस्सा बांध दिया। दुश्मनों को सामने से चार्ली कम्पनी और डेल्टा कम्पनी के जवानों ने फायरिंग करके उलझाए रखा था। ताकि उनका हमारी तरफ नहीं जाए।
12 जून की रात आठ बजे तोलोलिंग की पहाड़ी की चोटी पर
हर एक कमांडो अन्य हथियारों के अलावा 10 से 20 ग्रेनेड भी अपने साथ लेकर आया था। 12 जून की रात साढ़े 8 बजे हम सभी 10 भारतीय कमाडो तोलोलिंग की पहाड़ी की चोटी पर पहुंचे। हमने तय किया कि दुश्मन के बंकर के लूपोल (जहां से गन फायर होता है) में ग्रेनेड डालकर उसे तबाह करेंगे। हम कहने को सिर्फ दस कमाडो थे, मगर हमारा हौसला पाकिस्तान के एक हजार सैनिकों से ज्यादा था। जैसे ही हमारे सामने पाकिस्तानी फौज का पहला बंकर आया मैं आगे बड़ा और लूपोल से ग्रेनेड डालने लगा तभी पाकिस्तानी सैनिक ने बंदूक निकाली। दनादन फायर किया। मेरे सीने में तीन, अंगूठे और पैर में एक-एक गोली लगी। दो गोली मेरी एके-47 पर लगी। फिर भी मैंने ग्रेनेड डालकर वो बंकर तबाह कर दिया था।
पाकिस्तान सेना के 11 बंकर किए धवस्त
बंकर में ग्रेनेड फटते ही आवाज आई थी 'या अल्लाह हू अकबर, काफिरों का यह चौथा हमला भी फेल करेंगे'। वो या अली और हम जय बजरंग बली बोलकर एक दूसरे पर अंधाधुंध फायरिंग शुरू कर दी। मेरे सभी नौ साथी कमांडो शहीद हो चुके थे। मेरे सिर खून सवार हो गया था। मैंने अकेले ने एक के एक करके उनके 11 बंकर धवस्त कर दिए। 48 पाकिस्तानी फौजियों को मौत के घाट उतार दिया। पाकिस्तान सेना के मेजर अनवर खान का सर मैंने कलम कर दिया। नौ साथी शहीद होने के बाद भी मैं लड़ता रहा। 13 जून की सुबह करीब 4 तोलोलिंग की चोटी पर दोनों तरफ भारतीय सेना के अन्य जवान भी पहुंच गए। सुबह साढ़े पांच बजे मैंने अनवर खान के हुए सिर में ही तिरंगा गाड़ दिया था। भारत-पाकिस्तान 1999 की जंग की यह सबसे पहली जीत थी।
महावीर चक्र विजेता दिगेंद्र कुमार सिंह के शहीद साथी कमांडो
1 मेजर विवेक गुप्ता देहरादून, महावीर चक्र
2
सुबेदार
भंवरलाल
भाकर
नागौर,
वीर
चक्र
3.
सुमेर
सिंह
राठौड़
खारा
दूधवा
चूरू,
सेना
मेडल
4
सीएचएम
यशबीर
सिंह
मेरठ,
वीर
चक्र
5.
हवलदार
सुल्तान
सिंह
भिंड
मुरैना,
वीर
चक्र
6
.
नायक
सुरेंद्र
बुलंदशहर,
प्रशंसा
पत्र
7.
नायक
चमन
मेरठ,
प्रशंसा
पत्र
8.
लां
बच्चन
सिंह
मुज्जफनगर,
प्रशंसा
पत्र
9.
राइफलमैन
जसवीर
सिंह,
प्रशंसा
पत्र
Kargil Vijay Diwas : पढिए जंग के मैदान से 20 साल पहले लिखी गईं फौजियों की वो आखिरी चिट्ठियां...