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Dashrath Singh Shekhawat : इस फौजी के पास हैं 51 डिग्री, LLB करके 250 फौजियों के केस भी लड़े

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झुंझुनूं। सरकारी नौकरी लगने के बाद अक्सर लोग आगे की पढ़ाई छोड़ देते हैं। आर्मी ज्वाइन कर लेने और दुर्गम इलाकों में तैनाती के चलते तो पढ़ाई जारी रखना आसान काम नहीं है, मगर इस मामले में राजस्थान के फौजी डॉ. दशरथ सिंह शेखावत की कहानी जुदा और प्रेरणादायक है। इन्होंने फौज में रहते हुए भी पढ़ाई जारी रखी और आए दिन नई डि​ग्री लेते रहे। इनके पास एक-दो नहीं बल्कि 51 डिग्री, डिप्लोमा, प्रमाण पत्र हैं।

Jhunjhunu soldier dr.dashrath singh shekhawat has 51 degrees

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डाॅ. दशरथ सिंह बताते हैं कि भूमि सुधार विषय पर पीएचडी करने के साथ साथ 15 विषयों में मास्टर्स, आठ में स्नातक, विधि से संबंधित 11 और सेना से संबंधित आठ विषयों में डिग्री, डिप्लोमा और सर्टिफिकेट प्राप्त किए हैं। दशरथ सिंह राजस्थान के झुंझुनूं जिले की नवलगढ़ तहसील के गांव खिरोड़ के रहने वाले हैं। इंटरनेशनल बुक ऑफ रिकाॅर्डस में हाल में उनका नाम "मोस्ट एजुकेशनली क्वालिफाइड पर्सन ऑफ द वर्ल्ड" यानी विश्व के सबसे ज्यादा शैक्षणिक योग्यता वाले व्यक्ति के रूप में दर्ज किया है।

Jhunjhunu soldier dr.dashrath singh shekhawat has 51 degrees

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फौजी डाॅ. दशरथ सिंह के पढ़ाई प्रति जुनून का ही नतीजा है कि इनका चयन राजस्थान में द्वितीय श्रेणी शिक्षक और राजस्थान प्रशासनिक सेवा में भी हुआ, लेकिन फौज को नहीं छोड़ा। वर्तमान में भारतीय सेना के दक्षिण पश्चिम कमान में विधि परामर्शी के रूप में काम कर रहे दशरथ सिंह सेना के साथ ही सैनिकों के कानूनी विवाद सुलझाने में भी पैरवी करते हैं।

कारगिल युद्ध में भी रहे शामिल

कारगिल युद्ध में भी रहे शामिल

भारतीय सेना की नौ राजपूताना रेजिमेंट के सैनिक रहे दशरथ सिंह को पहली पोस्टिंग पंजाब में मिली थी। इसके बाद उल्फा आंदोलन के दौरान असम में रहे। फिर राष्ट्रीय राइफल्स के पहले बैच में शामिल कर कश्मीर भेज दिया गया। यहां डोडा जैसे आतंकवाद ग्रस्त क्षेत्र में उन्होंने साढ़े तीन साल निकालेे। लगातार फील्ड ड्यूटी के बाद उन्हें कुछ समय के लिए लखनऊ भेजा गया, लेकिन इसी दौरान संसद पर हमले की घटना हुई तो इन्हें वापस कश्मीर भेज दिया गया और बाद में ये कारगिल युद्ध में शामिल रहे। करीब 16 साल तक सेना की सेवा करने के बाद ये सेना से रिटायर हो गए। दशरथ सिंह को पढ़ने का शौक बचपन से ही था, लेकिन पैसा नहीं था। दादा और पिता भी सेना में थे, लेकिन परिवार काफी बड़ा था। दसवीं तो कर ली, लेकिन काॅलेज में प्रथम वर्ष के बाद ही सेना में चला गया। सेना में रहते हुए भी यह कसक रही कि पढ़ाई पूरी नहीं कर पाया। बस इसी कमी को पूरा करने के लिए लगातार पढ़ाई का सिलसिला शुरू किया। पहली डिग्री बैचलर ऑफ आर्टस की ली और इसके बाद से लगातार पढ़ाई का सिलसिला जारी है।

500 से ज्यादा परीक्षा दी

500 से ज्यादा परीक्षा दी

आखिरी डिग्री समाजशास्त्र में एमए की ली है और अभी गांधी पीस स्टडीज में डिप्लोमा कर रहे हैं। दशरथ सिंह ने एलएलबी, एलएलएम, बीजेएमसी और बीएड की डिग्री नियमित छात्र के रूप में ली है। बाकी डिग्री और डिप्लोमा इंदिरा गांधी ओपन यूनिवर्सिटी, कोटा ओपन यूनिवर्सिटी, जैन विश्व भारती लाडनूं और दो-तीन निजी विश्वविद्यालयों से प्राप्त की है। सेना की सेवा के दौरान तो एक ही विश्वविद्यालय की परीक्षा देता था, लेकिन अब दो-तीन पाठयक्रम एक साथ चलते हैं। वे अब तक 500 से ज्यादा परीक्षाएं दे चुके हैं और लगभग सभी एक ही बार के प्रयास में 50 से 75 प्रतिशत अंकों के साथ पास की है।

मई जून की छुट्टी में देते परीक्षा

मई जून की छुट्टी में देते परीक्षा

उन्होंने बताया कि सेना में रहते हुए दो महीने की छुट्टी हर साल मिलती है। मैं यह छुट्टी मई या जून में ही लेता था। इसी दौरान सब जगह परीक्षाएं होती हैं, इसलिए घर आकर पढ़ाई और परीक्षाएं देने का ही काम रहता था। सेना में नौकरी के दौरान कभी होली-दिवाली या अन्य त्योहारों के लिए छुट्टी नहीं ली। रिटायरमेंट के बाद तो पढ़ाई ही सब कुछ हो गई। सरकारी नौकरी मिली, लेकिन लगा कि समाज और परिवार से दूर रह कर देश की सेवा करने वाले सैनिकों के लिए कुछ करना चाहिए, क्योंकि सैनिक जब रिटायर हो कर घर लौटता है तो उसे कई तरह की परेशानी का सामना करना पड़ता है और यह ज्यादातर कानूनी पचड़ होते हैं, जो सैनिको को समझ नहीं आते। इसीलिए कानून की डिग्री हासिल कर वकालत शुरू कर दी। दो वर्ष पहले सेना ने बुला लिया और अब जयपुर में सेना की सप्तशक्ति कमांड में विधि परामर्शी के रूप में सेना, सैनिकों और पूर्व सैनिकों से जुड़े मामले देखता हूं। अब तक 250 से ज्यादा सैनिकों के केस लड़े हैं और ज्यादातर में सफलता हासिल हुई है।

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