राजस्थान: माता के इस मंदिर ने पाकिस्तान के साथ युद्ध में बचाई थी भारत की लाज
जैसलमेर। हिंदू धर्म में कुल 33 करोड़ देवी-देवता हैं। इन देवी देवताओं में भक्तों की उतनी ही श्रद्धा भी है। आज धर्म और श्रद्धा के कुछ रंगों से हम आपको रूबरू कराने वाले हैं। हम आपको राजस्थान के जैसलमेर स्थित भारत-पाक सीमा पर मौजूद एक मंदिर के बारे में बताने वाले हैं। सीमा पर बने तनोट माता मंदिर से भारत-पाकिस्तान युद्ध की कई अजीबों-गरीब यादें जुड़ी हुई हैं। जो देश भर के श्रद्धालुओं को नहीं वरन सेना को अपने आप से जोड़े हुए है। हम आपको आज इसी यात्रा पर लेकर जाने वाले हैं और हम आपको बताएंगे की आखिर कैसे सन 1965 की लड़ाई में इस मंदिर ने भारत की लाज रखी थी।
देश की पश्चिमी सीमा के निगेहबान जैसलमेर जिले की पाकिस्तान से सटी सीमा पर बना तनोट माता का मंदिर अपने आप में अद्भुत मंदिर हैं। यह मंदिर श्रद्धालुओं की आस्था केन्द्र के साथ-साथ भारत-पाक के 65 व 71 के युद्ध का मूक गवाह भी है। 1965 के भारत-पाक युद्ध के दौरान भारतीय सैनिकों और सीमा सुरक्षा बल के जवानों की तनोट माता ने ही मां बनकर रक्षा की थी।
जैसलमेर से थार रेगिस्तान में 120 किमी. दूर सीमा के पास स्थित है तनोट माता का सिद्ध मंदिर। भारत-पाक युद्ध की याद में तनोट माता मंदिर के संग्रहालय में आज भी पाकिस्तान द्वारा दागे गए जीवित बम रखे हुए हैं। शत्रु ने तीन अलग-अलग दिशाओं से तनोट पर भारी आक्रमण किया। दुश्मन के तोपखाने जबर्दस्त आग उगल रहे थे। तनोट की रक्षा के लिए मेजर जय सिंह की कमांड में ग्रेनेडियर की एक कंपनी और सीमा सुरक्षा बल की दो कंपनियां दुश्मन की पूरी ब्रिगेड का सामना कर रही थीं। 1965 की लड़ाई में पाकिस्तानी सेना कि तरफ से गिराए गए करीब 3000 बम भी इस मंदिर पर खरोच तक नहीं ला सके। यहां तक कि मंदिर परिसर में गिरे 450 बम तो फटे तक नहीं।
तनोट पर आक्रमण से पहले शत्रु सेनाओं ने तीनों दिशाओं से भारतीय सेना को घेर लिया था और उनकी मंशा तनोट पर कब्जा करने की थी। क्योकि अगर पाक सेना तनोट पर कब्जा कर लेती तो वह इस क्षेत्र पर अपना दावा कर कर सकती थी। इसलिए दोनों ही सेनाओं के लिए तनोट महत्वपूर्ण स्थान बन गया था। बात है 17 से 19 नवंबर के बीच की। जब दुश्मन की जबरदस्त आग उगलती तोपों ने तनोट को तीनों ओर से घेर लिया था और तनोट की रक्षा के लिए भारतीय सेना की कमान संभाले मेजर जयसिंह के पास सीमित संख्या में सैनिक और असलहा था। शत्रु सेना ने इस क्षेत्र पर कब्जा करने के लिए तनोट से जैसलमेर की ओर आने वाले मार्ग में स्थित घंटियाली के आस पास तक एंटी टैंक माईन्स लगा दिए थे। जिस वजह से भारतीय सेना की मदद के लिए जैसलमेर के सड़क मार्ग से कोई वाहन या टैंक इस ओर नहीं आ सके। इतनी तैयारी और बड़े असलहे के साथ आई पाक सेना का भारतीय सेना के पास मुकाबला करने के लिए अगर कुछ था तो वह था हौसला और तनोट माता पर विश्वास। यह उस विश्वास का ही चमत्कार ही था कि दुश्मन ने तनोट माता मंदिर के आस-पास के क्षेत्र में करीब तीन हजार गोले बरसाए लेकिन इनमें से अधिकांश अपना लक्ष्य चूक गए। इतना ही नहीं पाक सेना द्वारा मंदिर को भी निशाना बना कर करीब 450 गोले बरसाए गए लेकिन माता के चमत्कार से एक भी बम नहीं फटा और मंदिर पर एक दाग तक नहीं आई।
माता के बारे में तो यहां तक कहा जाता है कि युद्ध के समय माता के प्रभाव ने पाकिस्तानी सेना को इस कदर उलझा दिया था कि रात के अंधेरे में पाक सेना अपने ही सैनिकों को भारतीय सैनिक समझ कर उन पर गोलाबारी करने लगी। परिणामस्वरूप स्वयं पाक सेना द्वारा अपनी सेना का सफाया हो गया। आज भी मंदिर परिसर में 450 तोप के गोले रखे हुए हैं। यहां आने वाले श्रद्धालुओं के लिये भी ये आकर्षण का केन्द्र है।
यह मंदिर लगभग 1200 साल पुराना है। इस मंदिर के महत्व को देखते हुए बीएसएफ ने यहां अपनी चौकी बनाई है। इतना ही नहीं बीएसएफ के जवानों द्वारा अब मंदिर की पूरी देखरेख की जाती है। मंदिर की सफाई से लेकर पूजा-अर्चना और यहां आने वाले श्रद्धालुओं के लिए सुविधाएं जुटाने तक का सारा काम अब बीएसएफ बखूबी निभा रहा है। सेना द्वारा यहां पर कई धर्मशालाएं, स्वास्थ्य कैम्प और दर्शनार्थियों के लिए वर्षभर नि:शुल्क भोजन की व्यवस्था की जाती है। नवरात्र के दौरान जब दर्शनार्थियों की भीड़ बढ़ जाती है तब सेना अपने संसाधन लगा कर यहां आने वाले लोगों को व्यवस्थाएं प्रदान करती है। देशभर की विभिन्न शक्तिपीठों के बीच यह अपनी खास पहचान स्थापित करने वाला यह मंदिर भक्तों की मनोकामनाएं पूरी करने के साथ ही सदियों से सीमा का प्रहरी बना हुआ है। यहां पर आने वाला श्रद्धालु मन्नत मांगने के साथ ही यहां एक रूमाल बांधता है। मन्नत पूरी होने के बाद वे ये रूमाल खोलने और मां का धन्यवाद करने आते हैं। इस मंदिर की ख्याति को हिंदी फिल्म 'बॉर्डर' की पटकथा में भी शामिल किया गया था। दरअसल, यह फिल्म ही 1965 युद्ध में लोंगोवाल पोस्ट पर पाकिस्तानी सेना के हमले पर बनी थी।