हिन्दुस्तान चांद पर और बाड़मेर के ये तारे ज़मीन पर
बाड़मेर। एक तरफ जहां हिन्दुस्तान चांद पर पहुंच गया, वहीं दूसरी ओर बाड़मेर के ये तारे जमीं पर ही हैं। इन्हें स्कूल के नाम पर महज टूटी छप्पर नसीब हो रही है। यहां ना छत है। ना बैठने को फर्श और ना ही कोई ब्लैक बोर्ड-घंटी। शौचालय, पेयजल और पोषाहार की सोचना तो बेमानी ही होगी।
झोपड़ी के नीचे चल रहा स्कूल
यह पांचवीं तक का सरकारी स्कूल है, जो राजस्थान में भारत-पाकिस्तान की सीमा पर बसे बाड़मेर जिला मुख्यालय से महज 10 किलोमीटर आटी गांव में स्थित है। स्कूल की तस्वीर ही यहां के हालात, सरकार के दावों और नेताओं के वादों की कड़वी हकीकत बयां कर रही है। छह साल से ना तो स्कूल की तस्वीर बदली और ना ही तकदीर।
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पानी भी घर से लेकर आते हैं बच्चे
शिक्षक राजेन्द्र चौधरी के अनुसार स्कूल में 40 बच्चों का नामांकन है। सभी बच्चे समय पर स्कूल आते हैं। बच्चों की ख्वाहिश है कि वे भी ब्लैक बोर्ड के जरिए पढ़ें, लेकिन यह भवन विहीन स्कूल है। बच्चों को यहां मूलभूत सुविधाओं का आलम यह है कि उन्हें पीने का पानी व और बैठने के लिए दरी तक घर से लेकर आनी पड़ रही है।
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बारिश में करनी पड़ती है छुट्टी
शिक्षक पवन कुमार बताते हैं कि यहां मौसम भी बच्चों की परीक्षा लेता है। बरसात के दिनों में अक्सर अवकाश करना पड़ता है। कई बार तो ऐसा हुआ है कि स्कूल चल रही थी और अचानक बारिश आ गई तो बच्चे व उनकी पाठ्यसामग्री भीग गई। वहीं, भीषण गर्मी और हांड कंपकंपा देने वाली सर्दी भी इम्तिहान लेती है।
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राजनीति की शिकार हुई स्कूल
ग्रामीण छोटूसिंह की मानें तो स्कूल की समस्या जग जाहिर है। कई बार जिला प्रशासन व जनप्रतिनिधियों को अवगत करवा चुके हैं, मगर वादों के अलावा कुछ नहीं मिला। वोट मांगने तमाम नेता आए। इसके बावजूद छह साल से स्कूल की हालत जस की तस है। स्कूल स्टाफ की मानें तो स्कूल स्थानीय राजनीति की शिकार हो रही है। स्कूल के भवन के लिए एक बार बजट भी पास हो गया था, लेकिन ग्रामीणों के बीच स्कूल भूमि के चिन्हिकरण को लेकर हो रहे विवाद के कारण भवन नहीं बन पाया।
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