India China Standoff : गलवान घाटी में ऐसे हदें पार करते हैं चीनी सैनिक, राजस्थान के सैन्य अफसर ने बताया आंखों देखा हाल
भरतपुर। लद्दाख की गलवान घाटी फिर चर्चा में है। वर्ष 1962 के भारत-चीन युद्ध की शुरुआत इसी इलाके से हुई थी। 58 साल बाद अब 15 जून 2020 की रात को गलवान घाटी में चीनी सैनिकों के साथ हुए खूनी संघर्ष में 20 भारतीय सैनिक शहीद हो गए।
सुदेश शर्मा, रिटायर्ड सैन्य अफसर भरतपुर
दुनिया का सबसे मुश्किल रणक्षेत्रों में से एक गलवान घाटी इलाके में किस तरह चीनी सैनिक अपनी हदें पार करते हैं और किन मुश्किलों का सामना करते हुए भारतीय सैनिक सीमा पर डटे रहते हैं। इन सबका आंखों देखा हाल राजस्थान के सैन्य अफसर सुदेश शर्मा ने वन इंडिया हिंदी से बातचीत में बयां किया है। बता दें कि भारतीय वायुसेना से वारंट अधिकारी के पद से रिटायर हुए भरतपुर निवासी सुदेश शर्मा वर्ष 1989 से लेकर 1991 तक गलवान क्षेत्र में तैनात रह चुके हैं। शर्मा ने गलवान घाटी पर भारत-चीन सीमा के भूगोल, जलवायु और वर्तमान स्थिति समेत कई मुद्दों पर बात की।
5 हजार फीट ऊंची है यह रणभूमि
सुदेश शर्मा ने बताया कि मैं बॉर्डर पर आर्मी के लिए संचार के साधनों की व्यवस्था संभालने वाली तकनीकी टीम का हिस्सा था। गलवान घाटी की ऊंचाई समुद्र तल से करीब 15 हजार फीट है। यह देश के अन्य सीमा क्षेत्रों से कठीन इलाका है। यहां पुराने पहाड़ हैं। पहाड़ों पर समतल जगह है। यहां चारों तरफ सिर्फ पत्थर पत्थर ही नजर आते हैं। गलवान घाटी में आक्सीजन की कमी रहती है। यही वजह है कि दूसरे सीमा क्षेत्रों से आने वाले फौजियों को गलवान घाटी क्षेत्र में सीधे तैनात नहीं किया जाता है। जवानों को यहां पोस्टिंग देने से पहले 48 घंटे लेह क्षेत्र में रखा जाता है। ताकि उसका शरीर गलवान घाटी के मौमस के अनुरूप ढल जाए। यहां बाहर और अंदर का प्रेशर अलग-अलग रहता है।
चीनी सैनिक करते हैं अभद्र इशारे
रिटायर्ड ऑफिसर सुदेश शर्मा बताते हैं कि 15 जून की रात को चीनी सैनिकों ने जो हरकत की वो नई बात नहीं है। वे अक्सर भारतीय सैनिकों से उलझते रहते हैं और उकसाने का काम करते रहते हैं। उनकी यह आदत वर्षों पुरानी है। चीनी सैनिक जबरन भारतीय सीमा क्षेत्र में घुस जाते हैं। न केवल अभद्र भाषा का इस्तेमाल बल्कि अश्लील इशारे करते हैं। भारतीय क्षेत्र में झंडे या बैनर लगा देना और पत्थर फेंकना जैसे काम भी करते हैं।
दो किमी पहले ही छोड़ देते हैं हथियार
भारत-चीन के इस सीमा क्षेत्र को लेकर वर्ष 1962 के युद्ध के बाद समझौता हुआ, जिससे तहत गलवान घाटी क्षेत्र में दोनों सेनाएं वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) के दोनों ओर 2 किलोमीटर तक हथियार नहीं रख सकतीं। यहां तक कि गश्त पर जाने वाले जवान भी बंदूक नहीं रखते। वे जानवरों से बचाव के लिए लाठियां रखते हैं। इनमें कई बार कुछ जवान लाठी के रूप में लोहे की रॉड भी रख लेते हैं।
यहां चलती हैं लाठियां और पत्थर
सुदेश शर्मा बताते हैं कि 15 जून की रात को शहीद हुए 20 जवानों की शहादत पर उन्हें गर्व है। वो डटकर सामना नहीं करते तो चीनी सैनिक ना जाने कितने आगे तक भारतीय क्षेत्र में आ जाते। चीनी सैनिकों की आदत है इस तरह से जान बूझकर हदें पार करने की। उन्हें खदेड़ते समय विवाद हो जाता है, हालांकि भारतीय सैनिक काफी संयम रखते हैं। लेकिन फिर भी कई बार झड़प हो ही जाती हैं। यहां विवाद गोलीबारी के रूप में नहीं होता। बल्कि हाथापाई, लाठी बाजी और पत्थरबाजी के रूप में होता है।
पिता ने लड़ी ने 1962 व 1967 की जंग
सुरेश शर्मा के पिता महेश चन्द्र शर्मा ने भी देश के लिए सेवाएं दी हैं। वे 1953 से 1973 तक इंडियन नेवी में बतौर पेटी अफसर कार्यरत रहे। उन्होंने भारत-चीन के बीच 1962 और 1967 में हुई जंग में हिस्सा लिया था।
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