चारू उपाध्याय : ₹ 70 लाख कमाती है राजस्थान की बेटी, जानिए लक्ष्मणगढ़ से लंदन तक का सफर
सीकर। यह कहानी है छोटे से कस्बे की उस लड़की की, जिसने कामयाबी के शिखर को छूआ है। नाम है चारू उपाध्याय। लंदन में बतौर सॉफ्टवेयर इंजीनियर काम कर रही है।
चारू उपाध्याय लक्ष्मणगढ़ सीकर
वन इंडिया हिंदी से बातचीत में चारू के परिजनों ने बयां की बेटी की सफलता की पूरी कहानी। किस तरह से उनकी बेटी ने अपनी प्रतिभा के दम पर लंदन की प्रतिष्ठित कंपनी में जगह बनाई है।
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कौन हैं सॉफ्टवेयर इंजीनियर चारू?
बता दें कि चारू उपाध्याय मूलरूप से सीकर जिले के लक्ष्मणगढ़ कस्बे में मुकुंदगढ़ रोड पर वार्ड 34 की रहने वाली हैं। यहां के डॉ. रामकुमार उपाध्याय व डॉ निरुपमा उपाध्याय के घर जन्मी चारू लंदन में कार्यरत है।
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चारू उपाध्याय का परिवार
चारू उपाध्याय की माता पीएचडी डिग्री धारक हैं। वहीं, पिता डॉ. रामकुमार उपाध्याय संजीवनी अस्पताल चलाते थे। उनका पिछले साल अक्टूबर में निधन हो गया। चारू के दो बड़ी बहन ऋचा शर्मा व रितु शर्मा और छोटा भाई प्रियदर्शी उपाध्याय है।
एक बेटी की मां है चारू
चारू वर्किंग वुमन होने के साथ-साथ एक बेटी की मां हैं। गुड़गांव के अभिषेक दीक्षित के साथ इनकी शादी हुई है। अभिषेक भी बतौर सॉफ्टवेयर इंजीनियर लंदन में कार्यरत हैं।
लक्ष्मणगढ़ में हुई पढ़ाई
चारू की मां निरुपमा ने बताया कि उन्हें अपनी बेटी पर गर्व है। वह बचपन से ही होनहार थी। लक्ष्मणगढ़ के बगड़िया स्कूल से शुरुआती पढ़ाई पूरी करने के बाद यहीं पर मोदी विश्वविद्यालय से उसने बीटेक की डिग्री प्राप्त की। इसके बाद निजी कंपनी में जॉब लग गई थी।
पुणे-गुड़गांव में भी किया जॉब
चारू के भाई प्रियदर्शी के अनुसार लंदन जाने से पहले उनकी बहन इंडिया में ही जॉब करती थी। चारू ने इंफोसिस कंपनी में पुणे और टेक महिंद्रा में गुड़गांव में कार्यरत थी। ढाई साल पहले ही लंदन गई है। वहां उसका सालाना पैकेज 70 लाख रुपए है।
लक्ष्मणगढ़ की पहली बेटी बनी
बता दें कि सीकर जिला मुख्यालय से करीब 28 किलोमीटर दूर लक्ष्मणगढ़ कस्बे की चारू संभवतया वो पहली बेटी है, जो 70 लाख के पैकेज पर लंदन की नामचीन कपंनी जेपी मॉर्गन सॉफ्टवेयर में जॉब कर रही है।
आसान है इंजीनियरिंग की पढ़ाई
चारू कहती हैं कि बहुत से युवाओं को इंजीनियरिंग की पढ़ाई लगती है, मगर इंसान का पढ़ाई के प्रति नजरिया सही हो तो इंजीनियरिंग ही नहीं बल्कि कोई भी उच्च शिक्षा प्राप्त करना आसान हो जाता है। मैंने भी पॉजीटिव सोच के साथ बीटेक किया था।