मिसाल : छात्रा लीला ने पैरों से लिखकर उत्तीर्ण की 10वीं कक्षा, करंट लगने से कट गए थे दोनों हाथ
बाड़मेर। हौसला हों तो जीवन नहीं रुकता। ठहरती नहीं जिंदगी यदि इरादे मजबूत हों और कठिनाइयां परास्त होती है यदि आगे बढ़ने का जज्बा जिंदा रखें। इस बात को राजस्थान के बाड़मेर जिले के हापों की ढाणी की छात्रा लीला साबित कर दिखाया है।
59.37 फीसदी अंक हासिल किए
राजस्थान माध्यमिक शिखा बोर्ड अजमेर की ओर से मंगलवार को दसवीं बोर्ड का रिजल्ट जारी किया है। इसमें बाड़मेर की छात्रा लीला ने भी सफलता हासिल की है। यूं तो लीला ने दसवीं बोर्ड में 59.37 अंक हासिल किए है, मगर लीला के जीवन संघर्ष के सामने यह कामयाबी काफी बड़ी है।
2003 में आई करंट की चपेट में
बता दें कि बाड़मेर में हापों की ढाणी निवासी भूरसिंह की बेटी लीला कंवर 23 सितंबर 2003 को घर पर खेल रही थी। इसी दौरान करंट की चपेट में आ गई। करंट लगने के बाद गंभीर रूप से झुलसी लीला को उपचार के लिए पहले बाड़मेर और फिर अहमदाबाद ले जाया गया था। वहां लीला के दोनों हाथ काटने पड़े थे। भूरसिंह को बेटी लीला की जिंदगी को लेकर कुछ नहीं सूझ रहा था, क्योंकि बचपन में लीला ने अभी स्लेट थामी ही थी और उसके हाथ कट गए तो पिता ने सोचा अब जिंदगी कैसे कटेगी?
जब पांवों से लिखना किया शुरू
करंट वाले हादसे के कुछ दिन बाद बच्चों के साथ लीला भी स्कूल जाने लगी तो उसकी लगन देखकर शिक्षकों ने उसे प्रोत्साहित किया कि पांवों से लिखना सीखें। लीला की दिलचस्पी बढ़ी और वह हाथों के अभाव में पावों से लिखने लगी और उसके पांव कॉपी-किताब पर ऐसे जमे कि उसके पढ़ने-लिखने का सिलसिला शुरू हो गया।
कृत्रिम हाथ लगे लेकिन नहीं जमे
वर्ष 2016 में लीला के कृत्रिम हाथ लगवाए गए, लेकिन कृत्रिम हाथ काम नहीं आए। उनको खूंटी पर टांग दिया और लीला पांवों के बूते ही लिखने लगी। अब माध्यमिक शिक्षा दसवीं बोर्ड के परिणाम में लीला ने पैरों से परीक्षा देकर 59.37 फीसदी अंक हासिल किए हैं। लीला हापों की ढाणी स्थित सरकारी स्कूल में अध्यनरत है।
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