28 साल बाद 'आजाद' हुआ 3 बहनों का इकलौता भाई, 1991 में हुआ था अपहरण, असम में मिली ये यातनाएं
बाड़मेर। गुमानाराम के परिवार के लिए यह किसी चमत्कार से कम नहीं। 28 साल से जिस बेटे का इंतजार था वो रहस्यमयी ढंग से लौट आया। तीन बहनों के इस इकलौटे भाई की वापसी के साथ ही घर का कोना-कोना खुशियों से सराबोर हो गया। जगजीत सिंह की गजल चिट्ठी ना कोई संदेश जाने वो कौनसा देश जहां तुम चले गए...सरीखी यह मामला राजस्थान के बाड़मेर जिले के गांव हमीरपुरा का है।
प्रेम कुमार भार्गव 1991 में हुआ था लापता
बता दें कि वर्ष 1991 में बाड़मेर के हमीरपुर का 14 वर्षीय प्रेम कुमार भार्गव एक ट्रक पर बतौर सहायक काम करता था। वह मेड़ता रोड से रहस्यमयी ढंग से लापता हो गया था। परिजनों ने उसे खूब तलाशा। मंदिर-देवरों पर मन्नतें मांगी। पुलिस थाने में उसकी गुमशुदगी भी दर्ज करवाई, मगर उसका कोई सुराग नहीं लगा।
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मेड़ता रोड से आसाम पहुंच गया था प्रेम
वर्ष 2019 की दिवाली यह परिवार कभी नहीं भूल पाएगा। 30 अक्टूबर 2019 को अचानक प्रेम अपने चाचा डूंगराराम भार्गव के घर पहुंचा। 42 साल के हो चुके प्रेम कुमार को देखकर एक बारगी तो भार्गव परिवार के माजरा समझ नहीं आया और फिर उसने 28 साल पुरानी कुछ यादें ताजा करते हुए खुद का उनका लापता बेटा प्रेम बताया। प्रेम के लौट आने की सूचना पर पूरे घर में खुशी की लहर दौड़ गई।
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प्रेम ने बताया असम कैसे पहुंचा वो
प्रेम भार्गव ने परिजनों को बताया कि 28 साल पहले मेड़ता रो पर उसके सिर पर किसी ने धारदार हथियार से वार किया, जिससे वह बेहोश हो गया। होश आया तो खुद को अनजान जगह पाया। जहां दूर दूर तक चाय के बागान थे। कई महीने बाद पता चला कि वह असम में है। वहां उसे बंधुआ मजदूर बनाकर रखा गया था। चाय के बागानों में काम करवाया जाता था। मना करने पर यातनाएं दी जाती थी।
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28 साल ऐसे आजाद हुआ प्रेम
आसाम में बंधक बनकर रहे बाड़मेर के प्रेम कुमार भार्गव की 28 साल वापसी की कहानी भी बेहद रोचक है। बकौल, प्रेम कुमार कुछ माह पहले वहां जंगल में आग लग गई और वहां से फरार होने का मौका मिल गया। साथियों के साथ तीन माह पैदल चलने के बाद बिहार पहुंचा। वहां से ट्रेन के जरिए बीते बुधवार को बाड़मेर पहुंचा और लोगों से पूछता पूछता चाचा के घर पहुंच गया।