अनूठी परम्परा : बारिश के लिए 7 साल के बच्चे को बनाया 'मेंढक', बुजुर्गों ने सिर पर बोतल से डाला पानी
बाड़मेर। यूं तो पूरे राजस्थान में बारिश कम ही होती है, मगर प्रदेश में भी अगर सबसे कम बारिश वाले जिलों की बात की जाए तो जेहन में सबसे पहला नाम बाड़मेर-जैसलमेर का आता है।
शायद यही वजह है कि बाड़मेर में बारिश को लेकर वर्षों से एक अनूठी परम्परा चल रही है। जिससे जुड़े लोगों का तर्क है कि जब-जब भी इस परम्परा का निर्वहन किया जाता है तब-तब इत्तेफाक से बारिश हुई है। दरअसल, इस परम्परा का निर्वहन बाड़मेर जिला मुख्यालय से महज 7 किलोमीटर दूर दानजी की होदी इलाके की है। इस बार भी बाड़मेर में अभी तक मानसून मेहरबान नहीं हुआ है। अच्छी बारिश के लिए शुक्रवार को गांव के तालाब में यह परम्परा निभाई गई, जहां सात साल के बच्चे को प्रतिकात्मक मेंढक बनाया गया।
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वह मेंढक की तरह बैठा रहा और गांव के बुजुर्ग उस पर पानी डालते रहे फिर वह बच्चा तालाब में जाकर बैठ गया। ग्रामीणों के अनुसार इस परम्परा को निभाने का मतलब यह होता है कि मेंढकों को इंतजार है कि तालाब पानी से लबालब हो और वे उसमें रह सकें। वहीं कुछ लोग इसे महज अंधविश्वासन भी मानते हैं।
बाड़मेर
में
अब
तक
सूखा
सबसे
बड़े
जिलों
में
से
एक
बाड़मेर
इस
बार
भी
अब
तक
सूखा
है।
ऐसे
में
अकाल
की
चपेट
में
आने
की
आशंका
है।
अकाल
और
बाड़मेर
का
नाता
नया
नहीं
है
बल्कि
सदियों
का
है।
राज्य
सरकार
ने
भी
लगभग
95
फीसद
जिले
को
अकाल
ग्रस्त
घोषित
कर
दिया
है।
ऐसे
सैकड़ों
गांव
हैं,
जहां
पर
सरकारी
जलापूर्ति
के
अतिरिक्त
पशुओं
के
चारे
की
व्यवस्था
भी
सरकार
कर
रही
है।
स्थानीय भाषा में कहते हैं बाकले चढ़ाना
बाड़मेर आगोर निवासी मदन सिंह ने बताया कि इस अनूठी परम्परा को स्थानीय भाषा में बाकले चढ़ाना कहा जाता है। मान्यता है कि अकाल मौत का काल बनी आत्माएं बारिश को रोक लेती हैं और अकाल की स्थिति बनती हैं। ऐसे में लोग उन भूतों व प्रेत आत्माओं को खुश करने के लिए बाकले बनाकर चढ़ाते हैं और उनका मानना है कि ऐसे में बारिश हो जाती है और अकाल से राहत मिलती है। वहीं, बाड़मेर आगोर निवासी प्रताप सिंह की मानें तो यह परंपरा को उन्होंने अपने पूर्वजों से सीखी थी। अकाल की स्थिति में हर बार यही जतन करते हैं और इसका लाभ भी मिलता है।