अनिल बिश्नोई : ये हैं वन्यजीवों के दोस्त, 30 साल में शिकारियों से बचाए 10 हजार हिरण
हनुमानगढ़। वन्यजीवों से दोस्ती करना कोई अनिल बिश्नोई से सीखें। ये मोर, तीतर, हिरण, नीलगाय, खरगोश, लोमड़ी, कछुओं व सांपों को अपने बच्चों की तरह प्यार करते हैं। शिकारियों पर पैनी नजर रखते हैं। यही वजह है कि अकेले अनिल बिश्नोई बीते तीन दशक में 10 हजार से ज्यादा हिरणों की जान बचा चुके हैं।
अनिल बिश्नोई, लखासर, हनुमानगढ़
राजस्थान के हनुमानगढ़ जिला मुख्यालय से 45 किलोमीटर दूर स्थित गांव लखासर के रहने वाले अनिल बिश्नोई ने वन इंडिया हिंदी से बातचीत में वन्यजीवों के संरक्षण की उन्होंने वर्ष 1990 में ठानी थी। उस वक्त अनिल बिश्नोई कॉलेज की पढ़ाई कर रहे थे। इनका लक्ष्य पढ़-लिखकर शिक्षक बनना था। उसी दौरान श्रीगंगानगर के सूरतगढ़ के कॉलेज में बिश्नोई समाज का राष्ट्रीय सम्मेलन हुआ। उसमें वनों और वन्यजीवों पर मंडरा रहे खतरे पर चर्चा हुई।
वन्यजीवों का संरक्षण करना ठाना
सम्मेलन में समाज के विद्वानों ने युवाओं से अपने-अपने क्षेत्र में सक्रिय होकर पेड़ों की कटाई रोकने और वन्यजीवों के संरक्षण का आह्वान किया। उस सम्मेलन के बाद अनिल ने शिक्षक बनने की बजाय खेती करने की ठानी और साथ में वन्यजीवों के सरक्षण के लिए काम करना तय किया।
अकेले ही चले थे, कारवां बढ़ता गया
48 वर्षीय अनिल बताते हैं कि कुत्तों के हमलों और शिकारियों के तीर व गोलियों से घायल हुए वन्यजीवों को घर पर रखकर उनका उपचार करवाना शुरू किया। शुरुआत मैंने अकेले ने की थी। फिर लक्ष्मण बिश्नोई, महावीर बिश्नोई, विजय सहारण, दिलीप सीगड़, कुलदीप व इंद्रपाल समेत अनके लोग शामिल हैं।
अब बन गया रेस्क्यू सेंटर
अनिल बिश्नोई और उनकी टीम पहले घायल वन्यजीवों को अपने घर पर रखकर उनको उपचार करती फिर उन्हें खेतों में सुरक्षित छोड़ देते थे। दो साल पहले इनकी मांग पर राजस्थान सरकार ने पीलीबंगा में रेस्क्यू सेंटर खोल दिया है।
100 किमी में 10 हजार हिरण
बता दें कि हनुमानगढ़ से रायसिंहनगर तक के सौ किलोमीटर के क्षेत्र में 10 हजार हिरण विचरण करते हैं। अनिल बिश्नोई और उनकी टीम क्षेत्र में शिकारियों पर नजर रखती है। वन्यजीवों का शिकार करने पर उनके खिलाफ मुकदम तक दर्ज करवाए जाते हैं।
सेवा का हुआ सम्मान
राजस्थान में बिश्नोई समाज की पूरी कौम पेड़ों और वन्यजीवों के संरक्षण की दिशा में काम करती है। इस काम की बदौलत अनिल बिश्नोई को राज्य स्तरीय अमृता देवी पर्यावरण संरक्षण 2009, डालमिया सेवा संस्थान चिड़ावा की ओर से पानी पर्यावरण संरक्षण 2011 समेत अनेक पुरस्कार भी मिल चुके हैं।
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