नक्सलियों को खत्म करने पहली बार जंग में उतरीं सुपर-30 कमांडो, लेंगी अपनों की शहादत का बदला
chhattisgarh news, रायपुर। छत्तीसगढ़ के बस्तर समेत कई इलाकों में आतंक के पर्याय बन चुके लाल लड़ाकों (नक्सलियों) को मुंहतोड़ जवाब देने के लिए अब राज्य पुलिस ने 'सुपर-30 कमांडो' की टीम तैयार की है। इसके लिए डिस्ट्रिक्ट रिजर्व गार्ड (DRG) के एंटी नक्सल फोर्स में पहली बार महिलाओं को शामिल किया गया है। इन 30 में कोई पहले माओवादी रह चुकी महिला है तो कोई नक्सलियों के हमले में शहीद सुरक्षाबल के जवान की विधवा है। कुछ वे महिलाएं भी हैं, जो नक्सलियों के साथ रहीं, लेकिन गौरव और आत्मसम्मान नहीं मिल पाया। साथियों ने ही उनके घरवालों की जिंदगी भी छीन ली। वे महिलाएं अब 'सुपर-30 कमांडो' का हिस्सा हैं और गोरिल्ला वार से लेकर कई तरह की मुठभेड़ की युद्धक कलाओं में निपुण हैं।
3 नक्सल "कमांडरों" को मौत के घाट उतरवाया
अधिकारियों के मुताबिक, रायपुर से करीब 400 किलोमीटर दूर राज्य के नक्सल प्रभावित दंतेवाड़ा जिले में विशेष रूप से इनके दस्ते बनाए गए, जिन्हें 'दंतेश्वरी लड़ाके' या देवी दंतेश्वरी के तौर पर जाना गया। इन 30 महिलाओं ने उप पुलिस अधीक्षक (डीएसपी) दिनेश्वरी नंद के नेतृत्व में शत्रु से निपटने के लिए जंगल में व्यापक स्तर पर ट्रेनिंग ली है। ये महिला कमांडो पिछले एक महीने में 3 नक्सल "कमांडरों" को मौत के घाट उतारने वाली सुरक्षा बलों की "शॉर्ट एक्शन टीम" का हिस्सा रही हैं।
30 भर्तियों के लिए 10 महिला नक्सलियों ने सरेंडर किया
दंतेवाड़ा के पुलिस अधीक्षक अभिषेक पल्लव ने बताया कि 30 भर्तियों के लिए 10 महिला नक्सलियों ने सरेंडर किया, जो पहली पलटन के तौर पर तैयार हुईं। जबकि, 10 अन्य सहायक कांस्टेबल हैं, जो पूर्ववर्ती सलवा जुडूम (anti-Naxal militia) आंदोलन का हिस्सा थीं। जिन्हें जंगलवार कैंप की विशेष ट्रेनिंग के साथ नक्सलियों से सामना करने के लिए डीआरजी की सुपर-30 कमांडो के रूप में तैयार की गई हैं।
अपनों को खोने के गम, जुनून और नक्सलियों के खिलाफ आक्रोश
पहली बार बीते बुधवार को इनमें से आधी महिलाओं को नक्सलियों के सामने मैदान में उतारा गया था। दंतेवाड़ा-सुकमा बार्डर के गोंडेरास में हुई पहली ही लड़ाई में ही इन्होंने अपनी काबलियत दिखा दी। अधिकारियों का कहना है कि ये सुपर-30 कमांडो अपनों को खोने के गम, दर्द-जुनून और नक्सलियों के खिलाफ आक्रोश का मिश्रण हैं। यानी, नक्सलियों के लिए इन महिला कमांडोज के मन में गुस्से का गुबार भरा है। खास बात यह भी है कि, इनमें से ज्यादातर की बोली-भाषा भी नक्सल प्रभावित इलाकों जैसी है और ये भौगोलिक परिस्थितियों को समझने में सक्षम हैं। क्योंकि, इनमें से कई महिलाएं कभी नक्सलियों के साथ ही रहकर आईं।
'नक्सलियों को जवाब बंदूक की नोंक पर दूंगी'
इन महिलाओं को आधुनिक और पारंपरिक हथियार के साथ बाइक चलानी भी आती है। टीम की करीब आधी महिलाएं अच्छी बाइक चालक हैं, साथ ही तैराकी भी जानती हैं। उन्हें रोजाना पुलिस ग्राउंड में अभ्यास कराया जाता है। इन महिलाओं से एक मधु पोडियाम बताती है कि वह कभी हाउस वाइफ थी। घर और खेत के कामों में परिवार का हाथ बंटाती थी। अब वह बंदूक थामे नक्सिलियों के खिलाफ आ खड़ी हुई है, क्योंकि नक्सलियों ने सुहाग ही नहीं बल्कि पूरा परिवार ही उजाड़ दिया था। अब जवाब बंदूक के दम पर ही दूंगी।
'नारी अबला या कमजोर नहीं है'
वहीं, डीआरजी की महिला कमांडो की डीएसपी एवं प्रभारी दिनेश्वरी नंद कहना है कि सुपर-30 से उन्हें अहसास हुआ है कि नारी अबला या कमजोर नहीं है, हर क्षेत्र में अपनी मौजूदगी बखूबी दर्शा रही हैं। चाहे जंग का ही मोर्चा क्यों न हो।
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