एयर पॉल्यूशन: रायपुर की हवा में लेड, निकेल और मैंगनीज़
रायपुर। छत्तीसगढ़ की राजधानी तेज़ी से विकास के पहियों पर दौड़ रही है। लेकिन सरपट दौड़ते इस शहर के लोग अब हाफ़ने लगे हैं। जी हां ज्यादातर लोगों को यहां फेफड़ों से संबंधित बीमारियां हो रही हैं। यही नहीं, त्वचा में रैशेज़, आंखों में जलन और तो और यहां के लोग सुबह नींद से उठने के बाद भी थकान महसूस करते हैं। इसका सबसे बड़ा कारण है शहर की प्रदूषित हवा। रायपुर की हवा में PM2.5 की मात्रा अधिक है, यह हम आपको पहले ही बता चुके हैं, लेकिन अब आपको यह जानकर हैरानी होगी कि यहां की हवा में धातु के सूक्ष्म कण भी मौजूद रहते हैं। वो भी ऐसे धातु, जो किसी ज़हर से कम नहीं- लेड, मैंगनीज़, निकेल और सिलिकन। ये वो तत्व हैं, जिनके बीच में अधिक समय तक रहने पर किसी भी स्वस्थ्य इंसान को कैंसर जैसी बीमारी पकड़ सकती है।
हाल ही में रायपुर के प्रदूषण के प्रति संवेदनशील इलाकों में एक अध्ययन किया गया। स्टेट हेल्थ रिसोर्स सेंटर के द्वारा किये गये इस अध्ययन में रायपुर की हवा में ऐसे धातु पाये गये, जो ज्यादा समय तक रहने पर कैंसर जैसी बीमारियों को अंजाम दे सकते हैं।
हर मौसम में जहरीली है रायपुर की हवा
इस अध्ययन के अंतर्गत रायपुर के पांच इलाकों की हवा के सैम्पल अमेरिका के ओरेगोन में चेस्टर लैबनेट भेजे गये। यहां पर इन सभी नमूनों की जांच की गई। ये सैम्पल रायपुर के कालीबाड़ी, अमलीडीह, उरला, बीरगांव और टाटीबंध से लिये गये थे।
सभी इलाकों में पाया गया मैंगनीज़
रायपुर के सभी पांच इलाकों में जहां सेंसर लगाये गये थे, वहां हवा में मैंगनीज़ के कण पाये गये। विश्व स्वास्थ्य संगठन की गाइडलाइन्स के मुताबिक हवा में 0.15 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर से अधिक मात्रा में मैंगनीज़ का होना हानिकारक है। वहीं अमेरिकी ईपीए के मानक 0.05 ug/ m3 से ऊपर होने पर हवा को असुरक्षित मानते हैं। अब रायपुर की हवा में इसकी मात्रा इन दोनों से अधिक पायी गई है। अगर स्वास्थ्य पर प्रभाव की बात करें तो निरंतर मैंगनीज़ के दायरे में रहने वाले लोगों के नर्वस सिस्टम यानी तंत्र प्रणाली प्रभावित हो सकती है। इसका असर आंखों पड़ता है। साथ ही आंखों और हाथों के बीच का कोऑर्डिनेशन यानी समन्वय कम होने लगता है। कमजोरी आती है और चक्कर भी आते हैं। इतना घातक होने के बावजूद भारत में ऐसे कोई मानक नहीं हैं, जो मैंगनीज़ की हवा में मौजूदगी को सुरक्षित या असुरक्षित करार दे सकें।
बच्चों के लिये घातक हवा में लेड
अमेरिकी ईपीए 3 के मानक के अनुसार हवा में 0.15 ug/m3 लेड यानी सीसा घातक है। जबकि रायपुर की हवा के तीन नमूनों में लेड की मात्रा इससे अधिक पायी गई है। बच्चों पर इस धातु का बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है, क्योंकि उनका बढ़ता शरीर लेड को जल्दी अवशोषित करता है। निरंतर लेड धातु के शरीर के अंदर जाने से दिमाग पर असर पड़ता है। इससे याददाश्त पर भी असर पड़ता है। लेड से प्रभावित होने वाले बच्चों का दिमाग बाकी बच्चों की तुलना में कम चलता है। उनका आईक्यू भी कम पाया जाता है।
इम्यून सिस्टम को कमजोर कर रहा निकेल
विश्व स्वास्थ्य संगठन की गाइडलाइन्स के अनुसार अगर हवा में निकेल की मात्रा 0.0025 ug/m3 से अधिक है, तो समझ लीजिये इस हवा में सांस लेना आपके लिये सेहतमंद नहीं है। रायपुर के सभी पांच नमूनों में निकेल पाया गया। डॉक्टरों की मानें तो यह धातु हमारे इम्यून सिस्टम का कमजोर कर देता है। यानी शरीर में बीमारियों से लड़ने की ताकत कम होने लगती है। लंबे समय तक दूषित हवा में रहने पर सांस लेने में भी दिक्कत होने लगती है। यही नहीं अधिक समय तक ऐसी हवा में रहने पर कैंसर होने का खतरा भी बढ़ जाता है।
हवा में सिलिकन
रायपुर की हवा के नमूनों में सिलिकन भी पाया गया। यह सिलिका के रूप में यहां के हर इलाकों की हवा में मौजूद रहता। इस्पात की फैक्ट्रियों में कोयले के जलने के बाद जो राख निकलती है, उसमें अच्छी मात्रा में सिलिकन होता है। यही राख जब हवा के साथ उड़ कर शहर में फैलती है, तब साथ-साथ सिलिका भी फैल जाता है। स्वास्थ्य पर असर की बात करें तो सिलिकन के दायरे में निरंतर आने पर श्वास संबंधी बीमारियां लग सकती हैं।
सरकार को सलाह
एसएचआरसी ने इस पर एक रिपोर्ट छत्तीसगढ़ सरकार को भेजी है, जिसमें प्रदूषण फैलाने वाली फैक्ट्रियों के खिलाफ सख्त नियम बनाने की बात कही गई है। रायपुर के निवासियों के स्वास्थ्य पर नये सिरे से अध्ययन कराया जाये। साथ ही श्वास संबंधी बीमारियों के इलाज के लिये जिला अस्पतालों में विशेष प्रबंध किये जाने चाहिये। इसके अलावा प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को भी यह रिपोर्ट भेजी गई और प्रदूषण फैलाने वाली फैक्ट्रियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की बात कही गई।