शहीद शैलेंद्र सिंह: 10 दिन बाद 2 माह की छुट्टी पर घर आने वाले थे, अब तिरंगे में लिपटा आएगा पार्थिव शरीर
रायबरेली। उत्तर प्रदेश के रायबरेली जिले के रहने वाले शैलेंद्र प्रताप सिंह कश्मीर के सोपोर में शहीद हो गए। शहादत की खबर आने के बाद शहीद के घर पर कोहराम मच गया। शहीद का पार्थिव शरीर घर पर आने का इंतजार हो रहा है। बता दें, शैलेंद्र प्रताप 10 दिन बाद 15 अक्टूबर को घर आने वाले थे। ट्रांसफर की वजह से उन्हें दो महीने की छुट्टी मिली थी। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने शहीद के परिजनों के प्रति मेरी संवेदनाएं व्यक्त करते हुए 50 लाख रुपए की आर्थिक सहायता और परिवार के एक सदस्य को सरकारी नौकरी देने की घोषणा की है। इसके साथ ही कहा कि जनपद रायबरेली की एक सड़क का नामकरण वीर श्री शैलेंद्र जी की स्मृति में होगा।
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10 साल पहले सीआरपीएफ में भर्ती हुए थे शैलेंद्र सिंह
रायबरेली के डलमऊ क्षेत्र के अल्हौरा गांव के मूल निवासी शैलेंद्र सिंह 10 साल पहले सीआरपीएफ में भर्ती हुए थे। शैलेंद्र सिंह का सोपोर से रामपुर तबादला हो चुका था। 10 दिन बाद 15 अक्टूबर को वह घर आने वाले थे। ट्रांसफर के चलते दो महीने की छुट्टी मिली थी, लेकिन कल हुए आतंकवादी हमले में शैलेंद्र सिंह शहीद हो गए। सेना के अधिकारियों ने फोन से घरवालों को सूचना दी तो गांव में मातम मच गया।
2 साल के बेटे के सिर से उठा पिता का साया
शहीद के पिता नरेंद्र बहादुर सिंह आईटीआई में कार्यरत थे। 10 साल पहले वह आईटीआई से सेवानिवृत्त हुए थे और पूरे परिवार के साथ मलिकमऊ कॉलोनी में रह रहे हैं। शैलेंद्र तीन बहनों के बीच अकेले भाई थे। दो बहनों-शीलू और प्रीति की शादी हो चुकी है। शैलेंद्र सिंह की शादी सलोन क्षेत्र में हुई थी। पत्नी चांदनी सिंह और सात साल का इकलौता बेटा तुषार सिंह दादी-बाबा के पास रहते थे। तुषार कक्षा दो में पढ़ता है। तुषार के सिर से अब पिता का साया उठ गया। पत्नी का रो-रोकर बुरा हाल है।
'अब बिना भइया के कैसे जीवन बीतेगा'
बता दें, शैलेंद्र की सबसे छोटी बहन ज्योति पिता-मां के साथ ही रहती है। शैलेंद्र आखिरी बार फरवरी महीने में छुट्टी पर घर आए थे, उन्होंने छोटी बहन की शादी की तैयारियों के लिए ही शहर के मलिकमऊ कॉलोनी स्थित घर पर कुछ काम करवाया था कुछ काम छूट गया था। शहीद के परिजनों ने बताया कि आखिरी बार जब शैलेंद्र घर आए थे तो कह गए थे कि अगली बार जब छुट्टी पर आएंगे तब काम पूरे कराएंगे। छोटी बहन के लिए लड़का भी देखा जा रहा था। मौसा ज्ञानेंद्र ने बताया कि दो-तीन जगह बात भी चली लेकिन बात बन नहीं पाई थी। भाई की शहादत के बाद छोटी बहन ज्योति का रो-रोकर बुरा हाल है। वह बार-बार यही कहती रही, 'अब बिना भइया के कैसे जीवन बीतेगा।'