सिद्धू की वजह से कांग्रेस हिट विकेट हो कर आउट तो नहीं हो जाएगी ?
चंडीगढ़, 21 अक्टूबर। 2022 के विधानसभा चुनाव में क्या कांग्रेस पंजाब का किला बचा पाएगी ? अगले साल जिन पांच राज्यों में चुनाव होगा उनमें सिर्फ पंजाब में ही कांग्रेस की सरकार है। लेकिन यह सरकार मुश्किलों में घिरी हुई है। कहने को तो नवजोत सिद्धू ने सुलह कर ली है लेकिन अंदर ही अंदर उनकी नाराजगी बनी हुई है। सिद्धू की वजह से कांग्रेस हिट विकेट हो कर आउट तो नहीं हो जाएगी ?
चन्नी सरकार में गुटबाजी अभी कायम है। अब अगर अमरिंदर सिंह की नयी पार्टी चुनाव मैदान में कूदेगी तो कांग्रेस की चुनावी संभावनाओं पर कितना असर पड़ेगा ? चरणजीत सिंह चन्नी मुख्यमंत्री तो बन गये हैं लेकिन क्या वे अपने चार महीने के शासन से कांग्रेस की सत्ता में वापसी करा पाएंगे ? सिर्फ दलित सिख मुख्यमंत्री के नाम पर कांग्रेस की नैया पार लग जाएगी ?
कांग्रेस ने अपने पैर पर कुल्हाड़ी मार ली ?
छह महीना पहले तक पंजाब में सब कुछ ठीकठाक चल रहा था। अमरिंदर सिंह की सरकार कुछ कमियों के बावजूद मोटे तौर पर ठीक काम रही थी। विपक्ष कमजोर था। 2017 में आम आदिमी पार्टी के 20 विधायक जीते थे और वह मुख्य विपक्षी दल थी। लेकिन जून 2021 आते-आते आम आदिमी पार्टी बिखरती चली गयी। उसके तीन विधायक कांग्रेस में शामिल हो गये। एक विधायक ने इस्तीफा दे दिया। दो और विधायकों ने आप से बगावत की थी लेकिन वे कांग्रेस में शामिल नहीं हुए थे। उनके विधानसभा में अलग बैठने की व्यवस्था है। यानी अब आप के 16 विधायक ही हैं जिनमें से दो सिर्फ नाम के लिए सम्बद्ध हैं। शिरोमणि अकाली दल के 15 विधायक जीते थे। अब इनकी संख्या 14 है। जब कि कांग्रेस के 77 विधायक जीते थे और उपचुनाव जीत कर इनकी संख्या 80 तक पहुंच गयी। 2019 में कैप्टन अमरिंदर सिंह ने सीएम रहते विधानसभा उपचुनाव की चार में तीन सीटें जीत कर अपनी क्षमता का परिचय दिया था। अनुमान लगाया जा रहा था कि कैप्टन, कांग्रेस को फिर जीत दिला देंगे, भले कुछ सीटें कम हो जाएं। लेकिन नवजोत सिंह सिद्धू प्रकरण ने कांग्रेस की राजनीति को छिन्न-भिन्न कर दिया। अमरिंदर सिंह जैसे अनुभवी नेता अब कांग्रेस को हराने के लिए काम करेंगे।
कैप्टन की नयी पार्टी से क्या असर पड़ेगा ?
कैप्टन अमरिंदर सिंह कोई भी पार्टी बनाएं, उसका स्वरूप एक क्षेत्रीय दल का ही रहेगा। उनका प्रभाव कांग्रेसी सोच वाले वोटरों में ही है। इनकी नयी पार्टी को ये वोटर कितना समर्थन देंगे, कुछ कहा नहीं जा सकता। उनके व्यक्तिगत समर्थक और कांग्रेस से नाराज लोग ही उनकी पार्टी की पूंजी होंगे। इसलिए वे कुछ सीटें तो जीत सकते हैं लेकिन सरकार बनाने की बात अभी दूर की कोड़ी लग रही है। उन्होंने शर्तों के साथ भाजपा के साथ सीट शेयरिंग का संकेत दिया है। लेकिन नरेन्द्र मोदी की सरकार कृषि कानूनों के संबंध में शायद ही कोई कॉम्प्रोमाइज करे। भाजपा के साथ कैप्टन का समझौता नहीं भी हो सकता है। वैसे राजनीति में कुछ भी असंभव नहीं है। ऐसी स्थिति अमरिंदर सिंह हरियाणा के दुष्यंत चौटाला की तरह कुछ सीटें (10) जीत कर किंगमेकर बन सकते हैं। लेकिन सिक्के का एक दूसरा पहलू भी है। अमरिंदर सिंह भले कम सीटें जीतें लेकिन बहुकोणीय मुकाबले में वे कांग्रेस को हराने की स्थिति पैदा कर सकते हैं। 2012 में कांग्रेस का आंकड़ा 46 पर आ कर ही थम गया था और वह बहुमत से दूर रह गयी थी। अमरिंदर सिंह को मुख्यमंत्री पद छोड़ने के लिए मजबूर किये जाने से कांग्रेस के कई विधायक नाखुश हैं। चुनाव के समय अगर इन्होंने पाला बदल लिया तो कांग्रेस की जीत की उम्मीदें धुंधली पड़ सकती हैं।
दलित सिख कार्ड कितना कारगर ?
कहा जाता है कि राहुल गांधी ने इसलिए अमरिंदर सिंह की सीएम पद से छुट्टी की थी ताकि वे पंजाब में दलित सिख कार्ड खेल सकें। पंजाब के राजनीतिक इतिहास में चरणजीत सिंह चन्नी पहले सिख दलित हैं जो मुख्यमंत्री बने हैं। राहुल गांधी 2022 के लिए इसे तुरुप का पत्ता मान रहे हैं। पंजाब में दलितों की आबादी करीब 32 फीसदी है। राहुल गांधी ने इस वोट बैंक को साधने के लिए चरणजीत सिंह चन्नी का दांव खेला है। लेकिन यहां देखने वाली बात ये है कि पंजाब में निर्णायक आबादी होने के बाद भी दलित समुदाय वोट बैंक में तब्दील नहीं हो पाया है। इसकी वजह से ही पंजाब में बसपा कभी राजनीतिक शक्ति नहीं बन पायी। जब कि बसपा के संस्थापक कांशीराम पंजाब के होशियारपुर के ही रहने वाले थे। यहां अनुसूचित जाति की आबादी सिख और हिंदू में बंटी हुई हैं। हिंदू और सिख दलित समुदाय में कई वर्ग हैं जिनकी विचारधारा अलग-अलग है। चरणजीत सिंह चन्नी का संबंध दलित सिख के रामदासिया समुदाय से है। दलित सिख या दलित हिंदू एकमुश्त वोट नहीं करते। इनके वोट कांग्रेस, आप और अकाली दल में बंटते रहे हैं। इनकी पहचान एक वोट बैंक के रूप में नहीं है। पंजाब की 117 विधानसभा सीटों से 34 अनुसूचित जाति के लिए रिजर्व हैं। 2017 में कांग्रेस ने इन 34 में 21 सीटें पर जीत हासिल की थी। 9 सीटों पर आम आदिमी पार्टी, 3 सीटों पर शिरोमणि अकाली दल और एक सीट पर भाजपा को जीत मिली थी। अब भविष्य की बताएगा कि चन्नी के सीएम बनने से दलित समुदाय, कांग्रेस के पक्ष में एकतरफा वोट करता है या नहीं।