पंजाब सरकार का बड़ा निर्णय, थाने में दर्ज नहीं की FIR तो हो सकती है दो साल तक की जेल
चंडीगढ़। अपराधों पर अंकुश लगाने के लिए पंजाब में पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) दिनकर गुप्ता ने एक बड़ा फैसला लिया है। उन्होंने कहा कि, जुर्म किसी भी थाने के इलाके में हो, पीड़ित पक्ष की जीरो एफआइआर दर्ज करनी ही होगी। पीड़ित किसी भी थाने में अपनी शिकायत दर्ज करा सकता है। बाद में केस को घटना से संबंधित थाना क्षेत्र में ट्रांसफर कर दिया जाएगा।
पंजाब के डीजीपी का बड़ा फैसला
डीजीपी की ओर से इस बारे में सर्कुलर जारी कर दिया गया है। जिसे सभी पंजाब के सभी जिलों के पुलिस कमिश्नर व एसएसपी को भेज दिया गया है। सर्कुलर में कहा गया है कि, किसी के साथ कोई आपराधिक घटना हो जाए तो वो जिस भी थाने में जाकर शिकायत करेगा, वहां पुलिस को उसकी जीरो एफआइआर दर्ज करनी होगी। पुलिस किसी दूसरे थाने के इलाके का मामला बताकर पीड़ित की शिकायत दर्ज करने से इनकार नहीं कर सकती।
सर्कुलर में यह कहा गया है
डीजीपी ने सर्कुलर में साफ कर दिया है कि, खासकर महिलाओं एवं बच्चों से जुड़े अपराध के मामलों में इस आदेश का सख्ती से पालन हो। अगर कोई इन हिदायतों का पालन नहीं करता तो उस पुलिस वाले के खिलाफ धारा-166 ए आईपीसी के अधीन कार्रवाई की जाए। इसमें उच्च अधिकारी का आदेश न मानने पर 6 माह से 2 साल तक की जेल व जुर्माने का प्रावधान है।
आदेश न मानना पड़ जाएगा भारी
आदेश को न मानने पर जेल व जुर्माने के साथ ही आरोपी पुलिसकर्मियों या अधिकारियों के खिलाफ विभागीय कार्रवाई भी की जाएगी। सर्कुलर के मुताबिक, जीरो एफआईआर को अनिवार्य करने के पीछे का कारण अपराधियों पर शिकंजा कसना है। इसलिए डीजीपी ने यह फैसला लिया है कि, राज्य में अब जुर्म कहीं भी हो किसी भी थाने में जीरो एफआइआर दर्ज की जा सकेगी।
जीरो एफआईआर के बाद यह भी करना होगा
डीजीपी के यह भी आदेश हैं कि, जीरो एफआईआर दर्ज करने भर से उक्त थाना पुलिस की जिम्मेदारी खत्म नहीं हो जाएगी, बल्कि जिस किसी थाने में जीरो एफआइआर दर्ज की गई है वहां की पुलिस को पीड़ित को सुरक्षा, मेडिकल सहूलियत या जांच मुहैया करानी होगी, आरोपितों की गिरफ्तारी व मौके से जरूरी सुबूत एकत्रित करने होंगे। इसके बाद ही एफआइआर किसी संबंधित इलाके की पुलिस को भेजी जा सकती है।
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जानिए आखिर क्या होती है जीरो एफआइआर
आपराधिक दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी), की धारा-154 के तहत पुलिस के पास जीरो एफआइआर दर्ज करने की जिम्मेदारी है। इसका तात्पर्य है कि, अगर कोई व्यक्ति या पीड़ित किसी थाने में जुर्म की शिकायत या सूचना देता है, लेकिन वह इलाका उस थाने के अधीन नहीं आता तो भी वह एफआइआर दर्ज कर सकता है। ऐसा अभी तक महिलाओं से रेप के मामलों में हो रहा था।