कारगिल युद्ध के 20 साल: शहीद का परिवार बोला- वादे भूल जाती है सरकार
पंजाब। कारगिल युद्ध को भले ही 20 साल गुजर चुके हों लेकिन आज भी उस न भूलने वाले युद्ध में शहीद हुए जवानों को पूरा देश याद करता है। बात करते हैं पंजाब में गुरदासपुर के गांव आलमा के रहने वाले कारगिल शहीद लांसनायक रणबीर सिंह और गांव भटोया के रहने वाले सिपाही मेजर सिंह की। जिन्होंने परिवार की परवाह न करते हुए 30 साल में देश के लिए अपनी जान कुर्बान कर दी। इन दोनों शहीदों के बेटे अपने पिता की तरह आर्मी में भर्ती होकर देश की सेवा करना चाहते हैं। इन दोनों परिवारों को भारत सरकार से गिले-शिकवे हैं। दरअसल जो वादे सरकार ने इनसे किए थे वे 20 साल बीत जाने के बाद भी पूरे नहीं हुए। उनका कहना है कि भारत सरकार कारगिल युद्ध में शहीद हुए शहीदों के परिवारों को भूल चुकी है।
खत मिलने से पहले मौत की खबर
उन पलों को याद करते हुए गुरदासपुर के गांव आलमा के रहने वाले कारगिल शहीद लांस नायक रणबीर सिंह के परिवारवालों ने बताया कि रणबीर सिंह 13 जैक राइफल यूनिट में कोलकाता में तैनात थे। जब कारिगल में जंग का माहौल बन गया तो उनकी पोस्टिंग कारगिल में कर दी गई तब उन्होंने घर के लिए एक खत लिखा था लेकिन, खत पहुंचने से पहले ही उनके शहीद होने की खबर परिवार तक पहुंच गई।
सरकार भूल गई वादे
16 जून 1999 को वह शहीद हो गए और उनकी शहादत के कुछ दिन बाद उन्हें उनका खत मिला जिसमें लिखा हुआ था कि उसकी परीक्षा की घड़ी आ चुकी है, इसलिए घर में सबका ध्यान रखें। उनका खत पढ़कर परिवार बहुत रोया। परिवार को उनकी शहादत पर गर्व है लेकिन देश की सरकार से शिकवे भी हैं कि शहादत के बाद सरकार ने परिवार के साथ जो वादे किए थे कि शहीद की याद में गांव में एक गेट बनेगा लेकिन 20 साल बीत चुके हैं और सरकार ने वादा पूरा नहीं किया गया। शहादत के बाद सरकार शहीदों के परिवारों से वादे तो करती है लेकिन कुछ समय बाद सब कुछ भूल जाती है। इसके बावजूद भी शहीद का बेटा राहुल अपने पिता की तरह आर्मी में भर्ती होकर देश की सेवा करना चाहता है।
गांव में नहीं किया विकास
गुरदासपुर के गांव भटोया के रहने वाले कारगिल शहीद सिपाही मेजर सिंह के परिवारवालों ने बताया कि सिपाही मेजर सिंह को भर्ती हुए 5 साल हुए थे और उनकी पोस्टिंग मामून कैंट में थी और बाद में इसे कारगिल युद्ध में भेज दिया गया। शहीद की मां रखवंत कौर ने बताया कि उसकी दादी की मौत हो चुकी थी। मेरा बेटा आर्मी में जाना नहीं चाहता था लेकिन मैंने उसे जबरदस्ती भेजा। हमें एक महीने बाद पता चला कि कारगिल में युद्ध हो रहा है और हमें पास के गांव के लड़के से पता चला कि उसका बेटा शहीद हो चुका है। 21 मई 1999 को वह शहीद हुआ था लेकिन अभी तक सरकार ने उनसे जो वादे किए थे वह पूरे नहीं हुए। उनके गांव में किसी तरह की कोई सुविधा नहीं है। गांव की गलियां कच्ची हैं, गांव में विकास का कोई काम नहीं हुआ। उनका कहना है कि पहले नेता भी 15 अगस्त और 26 जनवरी को उन्हें सम्मान के लिए बुलाते थे लेकिन कुछ समय बाद सब भूल गए।
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