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पंजाब: चुनाव लड़ने के मुद्दे पर किसान नेताओं की एक राय नहीं, सियासी दलों को हो सकता है इसका फ़ायदा

पंजाब विधानसभा चुनाव के मद्देनज़र जहां सभी सियासी पार्टियां चुनावी तैयारियों में जुटी हुई हैं। वहीं पंजाब के किसान भी चुनावी रण में उतरने ता मूड बना रहे हैं।

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चंडीगढ़, 15 दिसंबर, 2021। पंजाब विधानसभा चुनाव के मद्देनज़र जहां सभी सियासी पार्टियां चुनावी तैयारियों में जुटी हुई हैं। वहीं पंजाब के किसान भी चुनावी रण में उतरने ता मूड बना रहे हैं। लेकिन इसमें भी सभी किसान संगठन की एक राय नहीं है, कोई चुनाव लड़ने के पक्ष में है तो कोई किसी भी सूरत में चुनावी रण में उतरना नहीं चाहते हैं। वहीं सियासी दलों की निगाहें भी विभिन्न हलके से किसानों को लीड कर रहे किसान नेताओं पर टिकी हुई हैं। इसलिए कृषिउतपादक समूह यह चाहते हैं कि किसान किसी भी राजनतिक पार्टियों का दामन नहीं थामते हुए एक बैनर तले चुनाव लड़ें,लेकिन 32 किसान संगठन और अन्य संगठनों में चुनावी रण में उतरने को लेकर दुविधा बनी हुई है।

किसान नेताओं की एक राय नहीं

किसान नेताओं की एक राय नहीं

किसान आंदोलन स्थगित होने और तीन कृषि कानूनों की वापसी के बाद अब पंजाब में किसान संगठनों पर विधानसभा चुनाव में दांव आजमाने का दबाव बढ़ने लगा है। लेकिन सभी किसान नेताओं की चुनाव लड़ने को लेकर सोच अलग-अलग है। कुछ किसान नेताओं का मानना है कि किसान एकजुट होकर सियासी दलों पर दबाव बना कर अपनी बात मनवाने तक सही है। चुनावी रण में उतरना इसलिए सही नहीं है क्योंकि किसान जिस तरह से अपने मुद्दे को लेकर आंदोलन कर रहे थे, उसी तरह राजनीति में आने के बाद अलग-अलग वर्ग के लोगों की अलग-अलग परेशानियां होंगी जिसे सुलझाना हमारा कर्तव्य रहेगा। अगर हम सभी वर्ग के लोगों के मुद्दे नहीं सुलझा पाएंगे तो किसानों का नाम ख़राब होगा। वहीं अन्य राजनेताओं और किसान नेताओं में क्या फ़र्क़ रह जाएगा। इसलिए किसानों को सियासत से दूरी बनाए रखना चाहिए।

सियासी दलों को हो सकता है फ़ायदा

सियासी दलों को हो सकता है फ़ायदा

पंजाब में कुछ किसान संगठन ऐसे भी है जो किसी न किसी पार्टी के साथ जुड़े हुए हैं। अगर भारतीय किसान यूनियन की बात की जाए तो बीकेयू के लक्खवाल ग्रुप शिरोमणि अकाली दल के साथ जुड़ा हुआ है। वहीं भारतीय किसान यूनियन का मान समूह कांग्रेस पार्टी को समर्थन करता है। इसके साथ ही भारतीय किसान यूनियन में एक समूह राजेवाल भी है जो किसी पार्टी के समर्थन में नहीं है लेकिन पंजाब में उनकी पकड़ अच्छी है। किसान आंदोलन के वक्त विभिन्न विचारधाराओं के संगठन मोर्चा बनाकर एक बैनर तले आ गए थे। अब कृषि कानूनों की वापसी के बाद चुनाव लड़ने और नहीं लड़ने पर सभी मोर्चे की एक राय नहीं हो पा रही है। जो किसान संगठन किसी सियासी दल से ताल्लुक रखते हैं ज़ाहिर सी बात है कि अगर किसान एक बैनर तले चुनाव नहीं लड़ेंगे तो अपनी विचारधारा के तहत किसान संगठन सियासी दलों को समर्थन कर सकते हैं।

'एक बैनर तले चुनाव लड़ें किसान'

'एक बैनर तले चुनाव लड़ें किसान'

पंजाब में विधानसभा चुनाव लड़ने को लेकर किसान नेताओं की एक राय नहीं बन पा रही है। इसका सियासी फ़ायदा राजनीतिक पार्टिया ना उठा लें। इसलिए कृषि उत्पादक समूह और किसान नेताओं को एक बैनर तले लाने की कोशिश की जा रही है। इस बाबत जालंधर आलू उत्पादक संघ के महासचिव जसविंदर सिंह संघा किसान नेता गुरनाम सिंह चढूनी के साथ संपर्क में हैं। संघा ने कहा कि किसानों का एक दल होने और आगामी विधानसभा चुनाव में उतरने के लिए कृषि समूहों के बीच लंबे समय से चर्चा चल रही है। उन्होंने कहा कि किसानों को अपने मंच का विस्तार करते हुए चुनावी रण में उतरना चाहिए। किसी भी सियासी दल के साथ गठबंधन करने के बजाय अपने दम पर चुनाव लड़ना चाहिए, ताकि सियासत से दूर कृषि और किसानों के मुद्दे पर ध्यान दिया जा सके।


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English summary
Farmer leaders have no opinion on the issue of contesting elections
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