18 साल की युवती ने कहा- नहीं मानूंगी तीन तलाक की व्यवस्था, क्यों चल रहा है ये भारत में?
महाराष्ट्र के बारामती में 18 वर्षीय विवाहित युवती ने साफ तौर पर तीन तलाक की व्यवस्था को मानने से इन्कार किया है। जानें ऐसा उसने किन हालात में किया।
नई दिल्ली। समान नागरिक सहिंता पर केंद्र सरकार के रुख से हर ओर शोरगुल के बीच महाराष्ट्र स्थित बारामति की 18 वर्षीय विवाहित युवती ने फैसला किया है कि वो अपने पति की ओर दिए गए एकतरफा तलाक के सामने झुकेगी नहीं।
अंग्रेजी अखबार टाइम्स ऑफ इंडिया के अनुसार अर्शिया बागवान ने कहा कि मैं मैं इस्लामिक तीन तलाक की व्यवस्था को नहीं मानूंगी साथ ही मैं तलाक के लिए दिए गए कारण को भी नहीं मानूंगा।
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अर्शिया ने कहा कि बिना मेरा पक्ष सुने 'मैं तुम्हें और नहीं चाहता' यह कैसे तलाक का कारण हो सकता है। जब दुनिया के 22 देश ये इस्लामिक कानून नहीं मानते तो भारत इसे क्यों मान रहा है?
अर्शिया अब अपनी पढा़ई पूरी कर उन मुस्लिम समुदाय की उन महिलाओं के लिए काम करना चाहती हैं जो ऐसे कानूनों के कारण पीड़ित हैं।
16 साल की उम्र में हो गई शादी
अखबार के अनुसार अर्शिया ने बताया कि 'मेरी शादी 16 साल की उम्र में ही कर दी गई थी। मेरे परिजनों ने दहेज दिया था। मेरे पति के घर वाले आर्थिक तौर पर मजबूत हैं और उनकी बारामती के मार्केट एरिया में दुकान है।'
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उन्होंने बताया कि 'शादी के तुरंत बाद सास ने शोषण करना शुरू कर दिया। मुझसे एक कुत्ते की तरह काम करने के लिए कहा जाता था।'
अर्शिया ने यह आरोप भी लगाया कि 'उसकी मां और ससुर के बीच प्रेम संबंध थे। जब मैं गर्भवती थी तो मेरे साथ बुरा व्यवहार किया गया।'
अर्शिया ने आगे बताया कि 'जब मैं अपने परिजनों के घर थी, तभी मुझे तलाक की नोटिस मिली और मुझे मेरे पति ने तुरंत घर बुलाया था।'
मुझे उसके परिजनों से थी दिक्कत
अर्शिया ने कहा कि 'मुझे उससे कोई दिक्कत नहीं थी, सिर्फ उसके परिजनों से थी। मैंने वो तलाक मंजूर हीं किया और कहा कि हम अलग से घर किराए पर लेंगे और अलग परिवार की तरह रहेंगे।'
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लेकिन मेरे पति ने सिर्फ एक स्पष्टीकरण दिया कि वो मुझे और नहीं 'चाहता।' अर्शिया अब खुद और अपने 8 माह के बच्चे के बारे में चिंतित है। उसने कहा कि मेरे और मेरे बच्चे का भविष्य का क्या होगा?
अर्शिया की मां ने कहा कि 'हमने 16 साल की उम्र में इसकी शादी करा कर बड़ी गलती कर गी। जब हमने अपने समुदाय में लोगों से इस पर बात की तो हमें कोई मदद नहीं मिली। क्यों नहीं इस्लामिक समुदाय पर इस पर सवाल कर रहा है?'
इस मसले पर विशेषज्ञों का कहना है कि अगर भारत का संविधान महिलाओं के हक की रक्षा की गारंटी दे रहा है तो मुस्लिम महिलाएं इससे कैसे वंचित रह सकती हैं।