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मंदसौर: किसान आंदोलन के बाद बदल गई यहां की राजनीति

By प्रकाश हिंदुस्तानी
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नई दिल्ली। लोकसभा चुनाव के अंतिम दौर में मध्यप्रदेश की जिन 8 सीटों पर मतदान होना है, उनमें मंदसौर प्रमुख है। मंदसौर में वर्तमान में भाजपा के सुधीर गुप्ता सांसद हैं, जिन्हें भाजपा ने फिर से टिकट दिया है। 2014 के लोकसभा चुनाव में सुधीर गुप्ता ने कांग्रेस की मीनाक्षी नटराजन को 3 लाख 4 हजार से भी ज्यादा वोटों से हराया था। भाजपा ने सुधीर गुप्ता को ही उचित माना। जबकि कांग्रेस ने राहुल गांधी की करीबी मीनाक्षी नटराजन को उम्मीदवार बनाया। 5 साल बाद क्या मीनाक्षी नटराजन 3 लाख वोटों की भरपाई कर पाएंगी? यह बात सही है कि मंदसौर में पिछले पांच साल में बहुत सी राजनीतिक सरगर्मियां हुई हैं। शिवराज सिंह चौहान की सरकार रहते किसानों पर भी गोलीबारी में 6 किसान मारे गए थे, इस पर कांग्रेस ने मोर्चा संभाला था। भाजपा की किसान विरोधी हरकत के कारण भी किसान भाजपा से दूर होते गए और नतीजे में मध्यप्रदेश में कांग्रेस की सरकार है।

मंदसौर संसदीय क्षेत्र में 2014 जैसी कोई लहर नहीं बची

मंदसौर संसदीय क्षेत्र में 2014 जैसी कोई लहर नहीं बची

भाजपा अध्यक्ष अमित शाह इस इलाके में तूफानी दौरा कर चुके हैं और कह चुके हैं कि नीमच में प्रधानमंत्री आवास योजना में 40 हजार मकान बने हैं, जिसके जवाब में कांग्रेस बता रही है कि केवल 13 हजार मकान ही बने। कमलनाथ मंदसौर संसदीय क्षेत्र में सघन प्रचार अभियान चला चुके हैं। नीमच के सिंगोली और कुकड़ेश्वर में वे आम सभाएं कर चुके हैं और शामगढ़ में भी सघन जनसंपर्क कर चुके हैं। मीनाक्षी नटराजन पंचायत स्तर पर जाकर मतदाताओं से संपर्क कर रही हैं। उनका कहना है कि मैं ग्रामीण मतदाताओं से कर्ज माफी और न्याय के मुद्दे पर बात कर रही हूं। भाजपा प्रत्याशी और वर्तमान सांसद सुधीर गुप्ता से लोगों की शिकायत है कि चुनाव जीतने के बाद उन्होंने मतदाताओं से जीवंत संपर्क नहीं रखा। भाजपा के लक्ष्मीनारायण पांडे यहां से 8 बार सांसद रह चुके हैं। लक्ष्मीनारायण पांडे जैसे दिग्गज को हराने वाली मीनाक्षी नटराजन युवक कांग्रेस में सक्रिय रह चुकी हैं। कांग्रेस को लगता है कि मंदसौर संसदीय क्षेत्र में 2014 जैसी कोई लहर नहीं बची। नगरीय इलाकों में भाजपा का प्रभाव जरूर नजर आता है, लेकिन ग्रामीण अंचलों में कांग्रेस ने अपनी पेठ मजबूत बना ली है। विधानसभा चुनावों में आठ में से सात सीटों पर भाजपा और एक पर कांग्रेस का कब्जा है। इन सात सीटों में भाजपा के नेताओं की जीत का आंकड़ा 70 हजार पर आकर सिमट गया।

यहां विधानसभा चुनाव में भाजपा के नेताओं की जीत मामूली वोटों से हुई

यहां विधानसभा चुनाव में भाजपा के नेताओं की जीत मामूली वोटों से हुई

कांग्रेस को लगता है कि अगर 2014 में भाजपा 3 लाख वोटों से आगे थी और कांग्रेस उसमें से 2 लाख 30 हजार वोटों पर सेंध मारने में कामयाब हुई, तो इस बार फिर कांग्रेस का जीतना मुश्किल नहीं है। कांग्रेस को भाजपा की अंदरूनी गुटबाजी का भी लाभ मिल सकता है, क्योंकि पूर्व सांसद रघुनंदन शर्मा पार्टी से नाराज चल रहे है। रघुनंदन शर्मा चुनाव में कोई प्रचार नहीं कर रहे, यही हाल प्रदेश भाजपा के महामंत्री बंशीलाल गुर्जर का भी है। विधानसभा चुनाव में भाजपा के नेताओं की जीत मामूली वोटों से हुई। उसे ही आधार बनाकर कांग्रेस के कार्यकर्ता और नेता रणनीति बना रहे हैं। जावरा में भाजपा की जीत 551 वोटों से हुई थी, गरोठ में जीत का अंतर 1100 वोट था। पूर्व मुख्यमंत्री वीरेन्द्र कुमार सकलेचा के बेटे और भाजपा नेता ओमप्रकाश सकलेचा की जीत 4200 वोटों से हुई। कांग्रेस को लगता है कि इन विधानसभा सीटों पर उसे बढ़त मिल सकती है। 2014 की जीत के बारे में कांग्रेस को लगता है कि वह मोदी लहर की जीत थी, जो इस बार शायद नहीं है।

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मंदसौर की राजनीति में किसानों की मौत का मुद्दा अब भी गूंज रहा है

मंदसौर की राजनीति में किसानों की मौत का मुद्दा अब भी गूंज रहा है

कांग्रेस के नेता पूरे संसदीय क्षेत्र में 1 जून 2017 को पिपलिया में हुई किसान आंदोलन की याद दिला रहे है। 1 जून से शुरू हुआ, किसानों का न्यूनतम समर्थन मूल्य पाने का आंदोलन तीव्र होता गया, जिसकी परिणती 6 जून को किसानों पर पुलिस के गोली चालन से हुई थी। किसानों का गुस्सा बहुत उग्र और हिंसक हो गया था। शिवराज सिंह चौहान की भाजपा सरकार ने किसानों के आक्रोश को ठंडा करने के लिए मृतकों के परिजनों को 1-1 करोड़ रूपए की सहायता राशि दी थी। उसी के बाद राहुल गांधी ने दोषी पुलिस वालों पर कार्रवाई की मांग की थी और विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की जीत होने पर कर्जमाफी का वादा किया था। मंदसौर की राजनीति में किसानों की मौत का मुद्दा अब भी गूंज रहा है।

भाजपा को मंदसौर सीट से आरएसएस का भी अच्छा समर्थन प्राप्त है

भाजपा को मंदसौर सीट से आरएसएस का भी अच्छा समर्थन प्राप्त है

भाजपा को मंदसौर सीट से आरएसएस का भी अच्छा समर्थन प्राप्त है। मंदसौर के कई नेता संघ में कार्य कर रहे है और उनके संपर्क व्यापक स्तर पर है। भारतीय जनसंघ के उम्मीदवार भी यहां से 3 बार जीत चुके है। मंदसौर से लक्ष्मीनारायण पांडे के अलावा कोई भी नेता दोबारा नहीं जीत पाया। कांग्रेस के भंवरलाल नाहटा और बालकवि बैरागी भी नहीं। इस बार कांग्रेस और भाजपा में एक भूतपूर्व और एक वर्तमान सांसद को टिकट दिया है। संभावना है कि इन्हीं में से किसी की जीत होगी। जो भी जीतेगा, वह दूसरी बार लोकसभा में मंदसौर का प्रतिनिधि होगा। फिलहाल शिवराज सिंह चौहान और कमलनाथ दोनों ने इसे प्रतिष्ठा का प्रश्न बना रखा है। भाजपा यहां से किसान आंदोलन वाली छवि को बदलना चाहती है और कमलनाथ चाहते है कि राहुल गांधी की करीबी मीनाक्षी किसी भी तरह संसद में पहुंचे।

एक क्लिक में जानें अपने लोकसभा क्षेत्र के जुड़े नेता के बारे में सबकुछ

English summary
Politics changed after the farmer movement in Mandsaur
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