जो 10 साल पहले लालू ने किया, आज नीतीश कर रहे हैं!
[अजय
मोहन]
बिहार
में
जदयू
के
विधायक
अनंत
सिंह
को
पुलिस
ने
गिरफ्तार
किया।
खास
बात
यह
है
कि
गिरफ्तारी
के
करीब
8
घंटे
बाद
पुलिस
ने
इसकी
पुष्टि
की।
इस
बीच
क्या
हुआ?
पुलिस
को
कौन
सी
पट्टी
पढ़ाई
गई?
और
राजनीति
के
गलियारे
में
किस
प्रकार
की
हलचल
हुई?
ये
सब
महज
अनसुलझे
सवाल
बने
हुए
हैं,
लेकिन
अगर
इसी
बिहार
के
इतिहास
के
पन्नों
को
10
साल
पीछे
पलटें,
तो
ऐसा
ही
एपिसोड
आपको
नजर
आयेगा।
जी
हां
नीतीश
कुमार
आज
वही
कर
रहे
हैं,
जो
लालू
यादव
ने
10
साल
पहले
किया
था।!
क्या हुआ था 10 साल पहले?
करीब 10 साल पहले विधानसभा चुनाव होने वाले थे। उस वक्त राबड़ी देवी मुख्यमंत्री थीं जिनका रिमोट कंट्रोल लालू प्रसाद यादव के हाथों में था। वो समय था जब राज्य की कानून व्यवस्था चरमरा चुकी थी। राज्य का क्राइम ग्राफ तेजी से बढ़ चुका था और जनता त्रस्त थी। उसी वक्त राज्य में कुछ दबंगों की भी तूती बोलती थी। उन बाहुबलियों के नाम हैं-शहाबुद्दीन, तस्मलुद्दीन, मुन्ना शुक्ला, सूरज भान, आनंद मोहन, पप्पू यादव, आदि।
एक समय था जब बाहुबली शहाबुद्दीन लालू यादव के बेहद करीबी थे। कहा जाता है लालू का वोट बैंक मजबूत करने में शहाबुद्दीन ने बड़ी भूमिका निभाई थी। लेकिन जब शहाबुद्दीन की दबंगई लालू पर हावी होने लगी, तो लालू ने बेहद ईमानदार पुलिस अफसर डीपी ओझा को राज्य का डीजीपी नियुक्त किया। अंदर ही अंदर पुलिस कमिश्नर को दबंगों का सफाया करने के साफ संकेत दे दिये गये।
ऊपर से मिली हरी झंडी ही थी, जिसके चलते बिहार पुलिस ने एक बड़ा जाल बुना और शहाबुद्दीन की गिरफ्तारी के लिये एक बड़ा अभियान चलाया। इस अभियान का अंत प्रतापपुर में एक मुठभेड़ के रूप में हुआ। गोलियां चलीं, जिसमें करीब 13 लोग मारे गये। वह बात अलग है कि उस मुठभेड़ में शहाबुद्दीन बच निकला, लेकिन वह मुठभेड़ यह समझने के लिये काफी थी कि शहाबुद्दीन के सिर पर से लालू का हाथ उठ चुका है।
बिहार की तस्वीर आज 10 साल बाद
1990 के दशक में जब अनंत सिंह एक दबंग के रूप में उठारे, तो जनता दल यूनाइटेड ने अपना दामन फैला। पार्टी से जुड़ने के बाद मानो अनंत को एक संरक्षण सा मिल गया। 2005 में पहली बार अनंत सिंह ने विधायक का चुनाव जीता। विधायक बनने के बाद कारोबार भी तेजी से बढ़ने लगा। नीतीश कुमार के मुख्यमंत्री बनने से अनंत को बड़ा संरक्षण प्राप्त हो गया। लेकिन आज 10 साल बाद जब एक बार फिर से चुनाव नजदीक आये, तब यही अनंत सिंह नीतीश की राहों का कांटा बन गये।
अनंत सिंह जिन पर एक दर्जन से ज्यादा हत्या व अपहरण के मामले दर्ज हैं, अब नीतीश को अखरने लगे। खास बात यह है कि अखरने वाली बात तब आयी, जब नीतीश ने लालू यावद को गले लगाया। यानी 10 साल पुराना पॉलिटिकल वायरस लालू से ट्रांसफर होकर नतीश में आ गया।
इसे इत्तेफाक नहीं कह सकते हैं कि वर्तमान में भी पटना में जीतेंद्र राणा नाम के एसएसपी हैं, जिन्होंने बेबाक होकर अपहरण और हत्या के मामले में अनंत सिंह का नाम लिया है। राणा के खुलासे के बाद ऐसा लगा कि बिहार सरकार अनंत सिंह का बचाव करेगी, लेकिन हुआ उसका उलटा। नीतीश ने बिहार पुलिस को पूरी तरह स्वतंत्र कर दिया, अनंत सिंह के पर काटने के लिये। जाहिर है, यह सब नीतीश ने आने वाले चुनाव में अपने वोट पक्के करने के लिये किया है।
खैर कुल मिलाकर देखा जाये, तो राजनीति में ऐसे खेल बंद नहीं हुए हैं। बस फर्क इतना है कि खिलाड़ी बदल गये हैं।