किशनगंगा प्रोजेक्ट पर पाकिस्तान को वर्ल्ड बैंक की तरफ से बड़ा झटका, गारंटर बनने से किया इनकार
हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जम्मू कश्मीर के दौरे पर गए थे और यहां पर उन्होंने 330 मेगावॉट वाले किशनगंगा हाइड्रोइलेक्ट्रिक प्रोजेक्ट का उद्घाटन किया। इस उद्घाटन के बाद पाकिस्तान वर्ल्ड बैंक की शरण में पहुंचा। पाकिस्तान का कहना है कि इस परियोजना का उद्घाटन सिंधु जल संधि का उल्लंघन है।
इस्लामाबाद। हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जम्मू कश्मीर के दौरे पर गए थे और यहां पर उन्होंने 330 मेगावॉट वाले किशनगंगा हाइड्रोइलेक्ट्रिक प्रोजेक्ट का उद्घाटन किया। इस उद्घाटन के बाद पाकिस्तान वर्ल्ड बैंक की शरण में पहुंचा। पाकिस्तान का कहना है कि इस परियोजना का उद्घाटन सिंधु जल संधि का उल्लंघन है। लेकिन वर्ल्ड बैंक में पाकिस्तान को करारा झटका लगा है। पाकिस्तान ने वर्ल्ड बैंक से कहा था कि वह इस प्रोजेक्ट पर नजर रखे और प्रोजेक्ट में एक गारंटर की भूमिका निभाए। पाक की इस मांग पर वर्ल्ड बैंक, भारत और पाकिस्तान के अधिकारियों के बीच कोई सहमति नहीं बन सकी है। पाकिस्तान हमेशा से ही इस प्रोजेक्ट पर विरोध जताता रहा है।
क्या थी पाक की अपील
पाकिस्तान के एक डेलीगेशन ने वर्ल्ड बैंक में भारत पर सिंध जल संधि को तोड़ने का आरोप लगाया और इस मामले को उठाया। वर्ल्ड बैंक ने संधि के तहत ऐसे उपायों पर चर्चा की, जिससे कि मित्रतापूर्ण समाधान तलाशे जा सकें। इस डैम प्रोजेक्ट पर पाकिस्तान हमेशा से ही आपत्ति दर्ज कराता रहा है और अब इस डैम के उद्घाटन से पाक में हलचल मची हुई है। पाकिस्तान का मानना है कि भारत का यह कदम सिंधु जल समझौते का उल्लंघन है। पीएम मोदी के जम्मू कश्मीर दौरे से एक दिन पहले यानी 18 मई को पाकिस्तान की ओर से इस पर एक बयान भी जारी किया गया था।बयान में कहा गया कि यह उद्घाटन बड़ी चिंता का विषय है और भारत ने विवाद को सुलझाए बिना ही यह फैसला ले लिया है। पाक की मानें तो भारत ने ऐसा करके समझौते को तोड़ा है।
क्या है किशनगंगा प्रोजेक्ट
श्रीनगर में बना यह बांध नेशनल हाइड्रोइलेक्ट्रिक पावर कॉरपोरेशन (एनएचपीसी) का वेंचर है। इस बांध की वजह से जम्मू कश्मीर को मु्फ्त बिजली का 13 प्रतिशत हिस्सा मिलेगा। 330 मेगावॉट वाला किशनगंगा हाइड्रोइलेक्ट्रिक प्रोजेक्ट नॉर्थ कश्मीर के बांदीपोर जिले में बहने वाली किशनगंगा नदी पर बना है। पाकिस्तान की तरफ जाते-जाते इस नदी को नीलम नदी के नाम से बुलाया जाने लगता है। वर्ल्ड बैंक के मुताबिक, 'सिंधु जल संधि एक बेहद महत्वपूर्ण अंतरराष्ट्रीय समझौता है, जो भारत-पाकिस्तान को मानवीय जरूरतों को पूरा करने और विकास के लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए प्रभावी जल प्रबंधन की वर्तमान एवं भावी चुनौतियों से निपटने के लिए एक आवश्यक सहयोगी ढांचा प्रदान करता है।'
कोर्ट ने दी थी भारत को मंजूरी
इस प्रोजेक्ट के लिए भारत के पास पश्चिमी नदियों झेलम, चेनाब और सिंधु की धारा मोड़ने का अधिकार इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ आर्बिट्रैशन की ओर से मिला हुआ है। भारत को नदियों के गैर- विनाशकारी प्रयोग के लिए कोर्ट की ओर से यह अधिकार दिया गया था। किशनगंगा नदी, झेलम का ही हिस्सा है। यह बांध जम्मू कश्मीर में बने एनएचपीसी के बाकी हाइड्रोइलेक्ट्रिक प्रोजेक्ट्स से काफी अलग है। यह प्रोजेक्ट रन ऑफ दी रीवर यानी आरओआर स्कीम का पहला प्रोजेक्ट है। इस स्कीम के तहत एक नदी के अंदर से ही सीमित पानी का प्रयोग हाइड्रोइलेक्ट्रिक प्रोजेक्ट के लिए किया जाता है।
क्या है सिंधु जल संधि
19 सितंबर 1960 में इंडिया और पाकिस्तान के बीच सिंधु जल समझौता हुआ था। ये समझौता तत्का्कालीन भारत के प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू और पाकिस्तान के राष्ट्रपति जनरल अयूब खान ने मिलकर किया था। समझौते के मुताबिक भारत पाकिस्तान को सिंधु, झेलम, चिनाब, सतलुज, व्यास और रावी नदी का पानी देता है।